जेडीयू दिल्ली में अकेले लड़ेगी चुनाव, पूर्वांचली वोटरों के वोट बंटे तो किसका होगा नुकसान , पढ़े विशेष रिपोर्ट 

ROHIT SHARMA / SAURABH KUMAR

देश में इस समय सभी की निगाहें महाराष्ट्र में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर टिकी हुई है, लेकिन इस बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने भी आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान किया है |

जेडीयू ने ऐलान किया है कि वह दिल्ली विधानसभा का चुनाव अपने दम पर ही लड़ेगी | हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है , लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जेडीयू भी शिवसेना की तरह बीजेपी पर प्रेशर पॉलिटिक्स का खेलना शुरू कर दिया है |

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी का उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन न करना और शिवसेना का एनडीए से जाना वजह मानी जा रही है | जेडीयू द्वारा दिल्ली की सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का निर्णय बीजेपी की चिंता बढ़ा सकती है , जेडीयू का अभी तक दिल्ली में कोई राजनीतिक जनाधार नहीं है |

आपको बता दे की दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में करीब 27 से 30 सीटें ऐसी हैं, जहां पर पूर्वांचली मतदाताओं की भूमिका निर्णायक मानी जाती है | दिल्ली के बुराड़ी में आयोजित एक सभा में पार्टी के राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर और झंझारपुर के लोकसभा सांसद रामप्रीत मंडल ने दिल्ली की सभी सीटों पर जेडीयू प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया |

जेडीयू ने कहा कि जिस तरह से नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में विकास किए जा रहे हैं, उसी तरह से दिल्ली में भी विकास किए जाएंगे | जेडीयू ने ऐलान किया है कि अगर दिल्ली में पार्टी की सरकार बनाती है तो बिहार की तरह दिल्ली में भी पूर्ण शराबबंदी कानून लागू की जाएगी |

जेडीयू ने कुछ महीने पहले अरविंद केजरीवाल के उस बयान की भी आलोचना की, जिसमें केजरीवाल ने कहा था कि बिहार के लोग 500 रुपये का टिकट कटा कर दिल्ली आते हैं और 5 लाख रुपये का मुफ्त इलाज कराकर चले जाते हैं |

बता दें कि राजनीतिक दलों के आंकड़ों की मानें तो दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में करीब 27 से 30 सीटों ऐसी हैं जहां पर पूर्वांचली मतदाताओं की भूमिका निर्णायक मानी जाती है | इन सीटों पर 35 से 45 प्रतिशत वोटर पूर्वांचली हैं , अगर आंकड़ों की बात करें तो बीते लोकसभा चुनाव में दिल्ली में करीब 1 करोड़ 38 लाख वोटर्स थे |

वहीं साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वोटरों की संख्या तकरीबन 1 करोड़ 9 लाख थी , आंकड़े बताते हैं कि बीते लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या में जो तेजी आई है, उसमें 65 से 70 फीसदी मतदाता पूर्वांचली हैं |  दिल्ली की कुल मतदाताओं की संख्या में एक तिहाई से भी ज्यादा मतदाता पूर्वांचली हैं |

अगर पूर्वांचलियों की दबदबे की बात करें तो दिल्ली की उत्तर-पूर्वी संसदीय सीट पर करीब 28 से 30 फीसदी, पश्चिमी दिल्ली संसदीय सीट पर तकरीबन 20 से 22 प्रतिशत, चांदनी चौक पर करीब 18 से 20 फीसदी, पूर्वी दिल्ली पर करीब 16 से 20 फीसदी और दक्षिणी दिल्ली पर करीब 15 से 17 फीसदी मतदाता पूर्वांचल से ताल्लुक रखते हैं |

दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की बढ़ती तदाद के सवाल पर वोटर्स मूड रिसर्च के डायरेक्टर तरित प्रकाश के मुताबिक ‘दिल्ली में बीते कुछ वर्षों में पूर्वांचली वोटरों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है | खासकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों की अच्छी खासी तादाद दिल्ली के वोटरों में शामिल हो गए हैं |  कुछ साल पहले हमने दिल्ली में सर्वे किया था , वर्तमान में मेरे पास कोई डाटा नहीं है |

साथ ही उन्होंने बताया की दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या 45 से 50 प्रतिशत तक पहुंच गई होगी! हर चुनाव के बाद पूर्वांचली वोटरों की संख्या में तेजी आ जाती है | खासकर बिहार के लोगों की संख्या में बेतहाशा बढोतरी हुई है. इनमें भी अपर कास्ट के वोटर्स ज्यादा हैं, जिसमें ब्रह्मण वोटरों की तादाद अधिक है. इसी का नतीजा है कि बीजेपी ने मनोज तिवारी को पिछले कुछ सालों से दिल्ली बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है |

खासबात यह है की हाल के दिनों में दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या में बढ़ोतरी के बाद ही सियासी पार्टियों ने पूर्वांचलियों को अहमियत देने की शुरुआत कर दी है. बीजेपी ने जहां मनोज तिवारी को दिल्ली में पूर्वांचल का चेहरा बना रखा है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने गोपाल राय को प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री पद से नवाज रखा है |  दोनों नेताओं का पूर्वांचली वोटरो पर अच्छा खासा प्रभाव है |

वहीं कांग्रेस ने भी पूर्वांचली वोटर्स पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बीजेपी के पूर्व सांसद और हाल ही में पार्टी में शामिल हुए कीर्ति झा आजाद को प्रदेश कांग्रेस कमिटी में महत्वपूर्ण पद दिया है |

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