साहित्य समाज का दर्पण एवं मार्गदर्शक होता है: मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल

Ten News Network

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New Delhi (25/12/2021): मेरठ में प्रत्येक वर्ष तीन दिवसीय साहित्य ‘मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल’ का आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम क्रान्तिधरा साहित्य अकादमी के द्वारा आयोजित किया जाता है। इस साल ‘मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल’ का पंचम फेस्टिवल कोरोना संक्रमण के कारण अप्रत्यक्ष रूप से मनाया गया। इस कार्यक्रम का अध्यक्ष रहे डॉ सुधाकर आशावादी एवं संचालक डॉ राम गोपाल भारतीय। दोनों ही मेरठ की धरती से ताल्लुक रखते हैं। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे डॉ अशोक मैत्रेय जो हापुड़ से हैं।

आपको बता दें कि शुक्रवार को कार्यक्रम का पहला दिन था, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में समाजसेवी एवं अधिवक्ता डॉ सुबोध गर्ग मौजूद रहे। यह भी क्रांतिकारी धरती मेरठ से ताल्लुक रखते हैं। इस ‘मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल’ में विशिष्ट अतिथि के रूप में नेपाल के वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार गणेश प्रसाद लाठ और राधेश्याम लेकाली मौजूद रहे। कार्यक्रम में रुड़की से वरिष्ठ पत्रकार व लेखक गोपाल नारसन भी विशिष्ट अतिथि के रूप में जुड़े रहे।

महिला मंच की अध्यक्ष सुषमा सवेरा ने सरस्वती की वंदना के साथ कार्यक्रम की शुभारम्भ की। उसके पश्चात कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए क्रान्तिधरा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डाक्टर विजय पंडित ने कहा मेरठ का बहुत पुराना इतिहास रहा है। भारत का इतिहास और आजादी की क्रांति मेरठ से जुड़ी हुई है। लेकिन साहित्य की दृष्टिकोण से मेरठ पिछड़ता जा रहा था। इसलिए हमने तीन दिवसीय साहित्य फ़ेस्टिवल की नींव रखी । उन्होंने नेपाल की प्रशंसा करते हुए कहा, इस साहित्य का नींव का पत्थर वास्तव में नेपाल ही है। पहली आयोजन से लेकर आजतक नेपाल से हमें हर तरह का सहयोग मिला।

हालांकि नेपाल के साहित्यकार राधेश्याम लेकाली और गणेश लाठ ने भी भारत-नेपाल के रिश्ते एवं साहित्य की काफी प्रशंसा की। राधेश्याम लेकाली ने कहा वर्ष 2018 में पहला नेपाल-भारत महोत्सव शुरू हुआ था और आज साहित्य का पंचम फेस्टिवल मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि साहित्य विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो, तभी अंतर्राष्ट्रीय स्थान में जगह बन पाएगी। अगर भारत का कुछ किताबें नेपाली भाषा में आ जाए, तो यहां का भी बाजार बहुत अच्छा हो सकता है। वह हिंदी भाषा में लिखे खुद की कविता जिसका शीर्षक है “आदमी का स्वभाव” को भी सुनाया। वहीं गणेश लाठ ने भी खुद की लिखी दार्शनिक कविता जिसका शीर्षक है “तंग पींजर” को सुनाया। उन्होंने यह भी बताया कि मेरठ और वीरगंज को किसी ज़माने में नेपाल-भारत महोत्सव द्वारा जोड़ा गया था। वह साहित्य को वीडियोग्राफी में उतारने पर अपनी राय दिया।

कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता अशोक मैत्रेय ने अपनी वक्तव्य में मेरठ की पूरी इतिहास को बता डाला। उन्होंने कहा क्रान्तिधरा मेरठ का साहित्य, कला एवं संस्कृति में प्रमुख स्थान है। यहां सिंधु घाटी सभ्यता, रामायण और महाभारत काल के साक्ष्य मौजूद है, तो यहां विश्व प्रसिद्ध सेंट जोन्स चर्च भी है। 19 से 20 वीं सदी में बना हुआ घंटाघर भी है। यह क्रान्तिधरा इसलिए कहलाता है कि यहाँ सन् 1857 में प्रथम स्वाधीनता संग्राम का उद्घाटन इसी धरती से हुआ था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान इस का महत्व और बढ़ गया, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1920-29 में देवनागरी और मेरठ कॉलेज में आकर बड़ी-बड़ी सभाओं को संबोधित करते और राष्ट्रीय आंदोलन को नया आयाम देते थे।

अनन्त: कार्यक्रम को विराम देते हुए मुख्य अतिथि डॉ सुबोध गर्ग ने कहा हम कोशिश करेंगे कि साहित्य के द्वारा हम समाज को एक सकारात्मक एवं प्रेरणादायक रचना दे सके, ताकि पाठक और समाज को रचना के रूप में एक अच्छी मार्गदर्शक मिल सके और कार्यक्रम के आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त की। यह कार्यक्रम तीन दिन तक चलेगा। कार्यक्रम के तीसरे दिन साक्षात्कार सत्र, हाइकू पाठ, पर्यावरण विमर्श व परिचर्चा और आलीमी मुशायरा का आयोजन किया गया है।

उत्तर भारत के तीन दिवसीय सबसे बडे साहित्यिक महोत्सव ‘मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल’ के मुख्य आयोजक डॉ विजय पंडित ने बताया कि यह आयोजन “वसुधैव कुटुंबकम” और राष्ट्रीय विचारधारा की भावना के तहद गंगा-जमुनी तहज़ीब को विश्व पटल पर लाने का एक प्रयास है। मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल का लक्ष्य एक दुसरे लेखन से रूबरू कराना , साहित्यिक अनुवाद , प्रकाशन , विचारों के आदान प्रदान , परस्पर सहयोग की भावना , पठन पाठन व् साहित्य के दायरे का विस्तार के साथ दिलों से दिलों को जोड़नें के लिए एक सशक्त साहित्यिक सेतु का निर्माण करना है।

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