होटल, रेस्टारेंट कारोबारियों को राहत देने की चर्चा खूब हुई लेकिन खर्चे के नाम पर मिला कुछ भी नही : वरुण खेडा
ABHISHEK SHARMA
कोरोना संक्रमण का सबसे बुरा असर होटल, क्लब और रेस्टारेंट कारोबार पर पड़ेगा। इस साल के अंत तक मे कोरोना वायरस अगर खत्म भी हो जाए तो भी इनके हालात सुधरने में सालों लग जाएंगे। दरअसल कोरोना संक्रमण के भय की वजह से कुछ महीने तो यहां आने जाने की घोषित पाबंदी रही है, जबकि इसके बाद कई महीने तक लोग अघोषित तौर पर दूरी बनाकर रखेंगे। सामने दिख रहे हालात से इन व्यवसाय से जुड़े कारोबारी चिंतित हैं। कारोबारी खुद मानते हैं कि इस वर्ष के बाद स्थिति अगर सामान्य होती है तो कोविड-19 के प्रभाव से बाहर आने में कम से कम एक वर्ष का समय लग सकता है।
इसी क्रम में टेन न्यूज़ नेटवर्क लगातार ऑनलाइन वेबीनार आयोजित कर रहा है, जिसमें हर वर्ग के लोगों की समस्या को उठाया जाता है और विशेषज्ञों के माध्यम से समस्या का हल जाना जाता है। वही टेन न्यूज पर ‘व्यापार की बात एस के जैन के साथ’ कार्यक्रम की शुरुआत हुई है, जिसमें लॉकडाउन और कोरोना के चलते व्यापारियों को आ रही दिक्कतों का हल ढूंढने की कोशिश की गयी। इस कार्यक्रम में विशेषज्ञ के तौर पर वरुण खेडा, ओनर – देसी वाइब्स, द इम्पीरियल स्पेस, कफ्फ़ीआ एंड का एक्लेयर्स
वही इस कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता व्यापारियों के मित्र एवं कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के संयोजक सुशील कुमार जैन रहे। सुशील कुमार जैन ने कार्यक्रम का संचालन अपने अनुभव के जरिए बेहद बखूबी से किया। उन्होंने होटल एवं रेस्टोरेंट कारोबारियों की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर काफी सवाल किए, जिनका विशेषज्ञ ने उत्तर दिया वही सह प्रस्तुतकर्ता के तौर पर प्रोफेसर डॉ. रुद्रेश पांडेय (MBA and PHD) उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के विषय पर बोलते हुए वरुण खेड़ा ने कहा कि कोरोना और लॉक डाउन की मार रेस्टोरेंट एवं होटल कारोबारियों को झेलनी पड़ी है। ऐसे कारोबारियों की हालत बेहद दयनीय हो चुकी है। कोरोना के पीरियड में देशभर में हजारों रेस्टोरेंट बंद हो गए हैं, वही हजारों बंद होने की कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि जब तक भारत में कोरोना नहीं था तो लोग बाहर खाना खाना शान समझते थे। लोग वीकेंड पर अधिकतर बाहर खाना खाते थे। वीकेंड के समय पर रेस्टोरेंट में काफी भीड़ रहती थी, लेकिन जब से भारत में कोरोना आया है तब से रेस्टोरेंटे व होटल कारोबारियों की स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है। कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए लोग रेस्टोरेंट में जाने से परहेज कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर नोएडा की बात करें, तो यहां पर सब चीजें जरूरत से अधिक हैं। बड़ी मात्रा पर यहां होटल एवं रेस्टोरेंट खुले हुए हैं। जब अनलॉक 1 की बात आई तो पूरे देश में रेस्टोरेंट एवं होटल खोलने की अनुमति प्रदान की गई लेकिन नोएडा में तब भी अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद जब रेस्टोरेंट एवं होटल खोलने की अनुमति मिली तो उसके बाद रात्रि कर्फ्यू और उसके बाद वीकेंड लॉकडाउन रेस्टोरेंट्स कारोबारियों पर दोहरी मार है।
डब्ल्यूएचओ ने अफवाह फैलाई कि खाने से भी संक्रमण हो सकता है लेकिन यह अभी तक सिद्ध नहीं हो पाया है कि रेस्टोरेंट में खाने से कोरोना हो सकता है। हां इतना जरूर है कि रेस्टोरेंट के अंदर अगर कोरोना से प्रभावित व्यक्ति प्रवेश करता है तो जरूर इसका खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि इन सब समस्याओं के बाद सबसे बड़ी समस्या आती है कि रेस्टोरेंट बंद होने के बावजूद कारोबारियों को उसका किराया देना पड़ा, बिजली बिल और फिक्स चार्ज भी चुकाना पड़ा।
उन्होंने बताया कि इस दौरान तीन चार महीने तक रेस्टोरेंट्स कारोबारियों ने अपने कर्मचारियों को भी तनख्वाह दी। अब ऐसे में रेस्टोरेंट कारोबारी इस आपदा से कैसे उभर पाएगा। इन सब समस्याओं के चलते बाजार 50% तक बंद हो गया है। उन्होंने कहा कि जब व्यापार ही नहीं रहेगा तो बाजार कहां से रहेगा। दुकान मालिक कारोबारियों की समस्या बिल्कुल नहीं समझ रहे हैं और किराए के लिए लगातार कारोबारी पर दबाव बना रहे है।
उनका कहना है कि होटल और रेस्टारेंट कारोबार में अगले एक वर्ष तक कम से कम 70 फीसदी तक गिरावट रहेगी। हाल फिलहाल में कारोबार का पुराने स्वरूप में आना मुश्किल होगा। इसके दो कारण हैं। एक तो लोग खुद ही बाहर जाकर खाने से परहेज करेंगे। बहुत ही जरूरी मौकों पर वे निकलना चाहेंगे। इस वजह से भी लोगों की आवक कम रहेगी। इसके अलावा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बहुत अनिवार्य होगा। ऐसे में रेस्टोरेंट में जितने लोगों के बैठने की क्षमता है, उसमें कम से कम एक बार में 50 फीसदी की कटौती स्वत: हो जाएगी। जब एक बार में निर्धारित क्षमता से कम लोग बैठेंगे तो कारोबार पर असर पड़ेगा ही।
जिस तरह से कारोबारियों ने आशंकाएं जताई हैं, ठीक वैसा ही हुआ तो इस इंडस्ट्री में रोजगार पाने वालों को बड़ा झटका लगेेगा। बताते हैं कि कारोबार में जितने फीसद की गिरावट आएगी, उतनी ही लोगों से रोजगार छिन सकता है। सरकार मात्र तीन से चार महीने तक मदद दे सकती है, लेकिन इसका असर नौ से 12 महीने तक रहेगा। महामारी ने रेस्टारेंट के कारोबार को बिल्कुल शून्य पर लाकर छोड़ दिया है। इससे उबरने में करीब एक से दो साल और उससे ज्यादा का समय भी लग जाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि एक तो यह आवश्यक उद्योग में नहीं रहा। इसे विलासिता वाला कारोबार माना गया है। लॉकडाउन खुलने के बाद लोग फूंक फूंककर कदम उठा रहे हैं। होटलों में रुकना कम हो गया है। बाहर जाकर खाने पीने में कमी आई है। इससे उबर पाना इस इंडस्ट्री के लिए बहुत मुश्किल है। सरकार को ऐसी योजना बनानी चाहिए ताकि यह उद्योग भी जिंदा रह सके।
प्रोफेसर डॉ रूद्रेश पांडे ने सवाल किया कि कोरोना काल में सरकार ने रेस्टोरेंट्स व्यापारियों के लिए मदद की घोषणा की थी, उसको रेस्टोरेंट कारोबारी किस तरह से देखते हैं?
वरुण खेड़ा ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सरकार ने कारोबारियों को मदद देने के लिए चर्चा तो खूब की, लेकिन खर्चा नहीं किया। अब व्यापारियों का पेट सिर्फ चर्चा से तो भर नहीं सकता, उनको खर्चा भी चाहिए जो उनको नहीं मिला है। अधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा जरूर सरकार द्वारा की गई लेकिन धरातल पर देखा जाए तो किसी कारोबारी को इसकी मदद नहीं मिल सकी है। जबकि कोरोना काल में रेस्टोरेंट के कारोबार में 90 हजार करोड़ का घाटा होने का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि रेस्टोरेंट कारोबारियों को तो तब से घाटा हो रहा है, जब से जीएसटी लागू हुआ। सरकार हमें 18% से 5% पर ले आई। इस चीज से केवल सरकार को फायदा हुआ लेकिन व्यापारियों की कमाई पर ग्रहण लग गया और खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं। कोरोना काल में रेस्टोरेंट कारोबारियों को कुछ नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि देश की जीडीपी का 10% हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री से जाता है लेकिन जब कोरोना आया तो सरकार ने एक बार भी हमें 10% मदद देने की कोशिश तक नहीं की।
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