जेपी अस्पताल ने दी उज्बेकिस्तान के माँ बाप को दी खुशी ,साढ़े तीन माह के बच्चे का सफल लीवर प्रत्यारोपण कर माँ के चहरे पर आई मुस्कान

Rohit Sharma (Photo/Video) By Lokesh Goswami Ten News

Galgotias Ad

कहा जाता है कि इंसानियत को कोई दीवार या शरहद नहीं रोक सकती है । इसको सच साबित कर दिखाया है नोएडा के जेपी हाॅस्पिटल ने जहाँ उज़बेकिस्तान से आए 3.5 महीने के बच्चे की सफल लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जरी की गई । बेबी युसुफ़ हाई रिस्क एंड स्टेज लिवर डिज़ीज़ से पीड़ित था
डोनर के लिवर का आकार कम करने के लिए हाइपर रिड्युस्ड लिवर ग्राफ्ट ट्रांसप्लान्ट किया गया ।

आपको बता दे कि यह फैसला हमारे लिए बहुत मुश्किल था, लेकिन हमें खुशी है कि हमने यह जोखिम लिया’’ ये कहना है उज़बेकिस्तान से आए साढ़े तीन महीने के बच्चे युसुफ़ के माता-पिता का । हाल ही में नोएडा के जेपी हास्पिटल में बच्चे की लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जरी की गई है।

बेबी युसुफ़ हाई रिस्क एंड स्टेज लिवर डिजीज़ (अंतिम अवस्था की लिवर की बीमारी) से पीड़ित था, यह एक गंभीर बीमारी है जिसमें लिवर के स्वस्थ टिश्यूज़ खराब हो जाते हैं और लिवर अपना काम ठीक से नहीं कर पाता। बच्चे के इलाज के लिए हाइपर रिड्युस्ड लिवर ग्राफ्ट ट्रांसप्लान्ट किया गया। दुनिया भर में एक साल से कम उम्र के बहुत कम मरीज़ों में इतनी मुश्किल सर्जरी को सफलतापूर्वक किया गया है।

जून 2018 में उज़बेकिस्तान में पैदा हुआ युसु़फ जुड़वा बच्चों में से एक था। 2.92 किलोग्राम वज़न के बेबी युसुफ़ को जन्म के 5-6 दिन बाद जाॅन्डिस /पीलिया हो गया, जिसके कारण उसकी त्वचा पीली पड़ने लगी थी। स्थानीय पीडिएट्रिशियन को लगा कि यह आम फिज़ियोलोजिक जाॅन्डिस है जो आमतौर पर बच्चों को जन्म के बाद हो जाता है और कुछ दिनों की देखभाल से बच्चा ठीक हो जाता है।

लेकिन युसुफ़ ठीक नहीं हुआ, उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। बाद में उसका अल्ट्रासाउण्ड करने से पता चला कि वह डी-कम्पन्सेटेड क्रोनिक लिवर डिज़ीज़ से पीड़ित है जिसके कारण उसे सिरहोटिक लिवर के साथ एसाइट्स हो गया था। इस स्थिति में लिवर सिरहोसिस के कारण अपना काम ठीक से करना बंद कर देता है।

2.5 महीने बाद बच्चे के पेट में पानी भरने से पेट फूलने लगा। बेबी युसुफ़ को लगातार बुखार था और उसका लिवर फेलियर की कगार पर पहुंच गया था, ट्रांसप्लान्ट के बिना उसका बचना मुश्किल था। लेकिन उज़बेकिस्तान में लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए आधुनिक सुविधाएं और इलाज उपलब्ध नहीं था। ऐसे में परिवार ने बच्चे को जेपी हाॅस्पिटल लाने का फैसला लिया। यह फैसला बच्चे के लिए जीवनरक्षक साबित हुआ और बच्चे को यहां नया जन्म मिला।

इस मामले के बारे में बताते हुए डाॅ अभिदीप चैधरी, सीनियर कन्लटेन्ट, लिवर ट्रांसप्लान्ट डिपार्टमेन्ट, जेपी हाॅस्पिटल ने कहा, ‘‘30 अगस्त को बेबी युसुफ़ को जेपी हाॅस्पिटल में भर्ती किया गया। उस समय उसका जाॅन्डिस 32 उहध्कस से ज़्यादा था जबकि सामान्य व्यक्ति में यह 1ण्5से कम होता है। उसका पूरा शरीर पीला पड़ चुका था। पेट में पानी भरने के कारण पेट फूल गया था, जिसके कारण वह ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था। इसलिए एक-एक दिन छोड़कर उसके पेट से पानी निकालना पड़ता था। बच्चा ठीक से फीड नहीं ले पा रहा था, ऐसे में वह इतनी मुश्किल सर्जरी के लिए कमज़ोर था। उसे रोज़ाना संतुलित और पोषक आहार देना ज़रूरी था।

बेबी युसुफ़ को बार-बार इन्फेक्शन हो रहे थे, जिसके कारण उसे एंटीबायोटिक दवाएं देनी पड़ी। इन सब के कारण उसका विकास ठीक से नहीं पा रहा था। सर्जरी से पहले बच्चे को स्टेबल करने में हमें 10 दिन लगे।’’
‘‘बेबी युसुफ़ को लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जरी की ज़रूरत थी। उसकी मां की जांच करने से हमें पता चला कि उसकी मां उसे लिवर डोनेट कर सकती है। पीडिएट्रिक लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए हम डोनर के लिवर का बायां लोब लेते हैं। लेकिन बच्चा इतना छोटा था कि मां के लिवर का आकार युसुफ़ के पेट के लिए फिट नहीं था।

11 सितम्बर को हमने हाइपर रिड्युस्ड लिवर ग्राफ्टिंग की। इस प्रक्रिया में डोनर के लिवर का आकार मरीज़ की ज़रूरत के अनुसार कम किया जाता है। बहुत ध्यान से यह मुश्किल सर्जरी की गई, ताकि बच्चे की ब्लड वैसल्स या बाईल डक्ट को कोई नुकसान न पहुंचे।’’ डाॅ चौधरी ने बताया।

सर्जरी करने वाले डाॅक्टरों की टीम में लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जन, एनेस्थेटिस्ट, पीडिएट्रिक क्रिटिकल केयर टीम एवं पीडिएट्रिक हेपेटोलोजिस्ट शामिल थे। सर्जरी के बाद बच्चे की खास देखभाल की गई, ताकि उसे इन्फेक्शन से बचा कर रखा जा सके। बच्चे का शरीर लिवर को रिजेक्ट न करे, इसके लिए इम्युनोसप्रेसिव दवाएं दी गईं। उसके कमज़ोर दिल और फेफड़ों को सपोर्ट करने के लिए उसे हाई फ्लो आॅक्सीजन पर रखा गया।

पीडिएट्रिक इन्टेन्सिविस्ट और पीडिएट्रिक हेपेटोलोजिस्ट की टीम उसकी देखभाल कर रहे थे। लगभग एक महीने तक बेबी युसुफ़ को जेपी हाॅस्पिटल में डाॅक्टरों की निगरानी में रखा गया।

बच्चे की मां फेरूजा ददैवा ने कहा, ‘‘हम अपने बच्चे को उज़बेकिस्तन के कई अस्पतालों में ले गए, लेकिन इंटरनेशनल सुविधाओं की कमी के करण कोई भी डाॅक्टर इसके इलाज के लिए तैयार नहीं हुआ। दिन-बदिन उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। बीमारी के बारे में जानकारी जुटाने के बाद हमें पता चला कि डाॅ अभिदीप चैधरी पहले भी इस तरह की सर्जरी सफलतापूर्वक कर चुके हैं, इसलिए हमने उसे जेपी हाॅस्पिटल लाने का फैसला लिया। डाॅ चैधरी और उनकी टीम ने मेरे बेटे की सफल लिवर सर्जरी की। आज उनकी वजह से मेरे बच्चे को नया जीवन मिला है।’’

इस तरह की सर्जरी बहुत मुश्किल होती है, जिसमें विशेषज्ञों की टीम को मिलकर काम करना होता है। साथ ही इसके लिए आधुनिक उपकरणों से युक्त आॅपरेशन थिएटर भी ज़रूरी होते हैं। इस तरह का इलाज आमतौर पर लम्बा चलता है और कई अवस्थाओं में किया जाता है। जेपी हाॅस्पिटल में इस तरह की मुश्किल सर्जरी को सफलतापूर्वक किया जाता है। भारतीय और विदेशी मरीज़ जिन्हें पहले इस तरह के इलाज के लिए अमेरिका या युरोप जाना पड़ता था, आज वे किफ़ायती और भरोसेमंद इलाज के कारण भारतीय अस्पतालों को चुन रहे हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.