उम्मीदों-हौसलों से भरी है दिव्यांग खिलाड़ी दीपा मलिक की ऊँची उड़ान, अर्जुना अवॉर्डी ने टेन न्यूज़ के साथ साझा किया अपना प्रेरणादायक सफर
Abhishek Sharma / Photo & Video By Baidyanath Halder
Greater Noida (17/11/18) : “पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है”, इन शब्दों को अगर कोई चरितार्थ करता है तो वो है भारत की सुप्रसिद्व खिलाड़ी दीपा मलिक।
अनेकों कीर्तिमान अपने नाम करने वाली इस खिलाडी ने आज ग्रेटर नोएडा में अपने अनुभव को टेन न्यूज़ के साथ साझा किया।
ग्रेटर नोएडा के सेक्टर बीटा-2 स्थित फादर अग्नेल स्कूल के एनुअल स्पोर्ट्स मीट में शामिल होने पहुंची पैरा एथलीट दीपा मालिक ने अपने जीवन परिचय से विद्यार्थियों के हौसलों में नई जान भर दी।
टेन न्यूज़ से विशेष बातचीत में जहाँ दीपा ने अपने अनेकों कीर्तिमानों की चर्चा की वहीं भारत सरकार के द्वारा किये गए वादों में देरी पर भी उम्मीद भरा मलाल जताया।
दीपा शॉटपुट एवं जेवलिन थ्रो के साथ-साथ तैराकी एवं मोटर रेसलिंग से जुड़ी एक दिव्यांग भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने 2016 पैरालंपिक में शॉटपुट में रजत पदक जीतकर इतिहास रचा था।
30 की उम्र में तीन ट्यूमर सर्जरीज और शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो जाने के बावजूद उन्होने न केवल शॉटपुट एवं ज्वलीन थ्रो में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीते हैं, बल्कि तैराकी एवं मोटर रेसलिंग में भी कई स्पर्धाओं में हिस्सा लिया है। अपनी ज़िंदगी के क्षणों को उन्होंने स्कूल में मौजूद लोगों के साथ टेन न्यूज़ के माध्यम से साझा किया और बताया कि किस तरह से उन्होंने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति की।
उन्होने भारत की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 33 स्वर्ण तथा 4 रजत पदक प्राप्त किए हैं। वे भारत की एक ऐसी पहली महिला है जिसे हिमालय कार रैली में आमंत्रित किया गया। वर्ष 2008 तथा 2009 में उन्होने यमुना नदी में तैराकी तथा स्पेशल बाइक सवारी में भाग लेकर दो बार लिम्का बूक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया। यही नहीं, सन् 2007 में उन्होने ताइवान तथा 2008 में बर्लिन में जवेलिन थ्रो तथा तैराकी में भाग लेकर रजत एवं कांस्य पदक प्राप्त किया। कोमनवेल्थ गेम्स की टीम में भी वे चयनित की गई। पैरालंपिक खेलों में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के कारण उन्हे भारत सरकार ने अर्जुन पुरूस्कार प्रदान किया।
रियो पैरालिंपिक खेल- 2016 में दीपा मलिक ने शॉट-पुट में रजत पदक जीता, दीपा ने 4.61 मीटर तक गोला फ़ेंका और दूसरे स्थान पर रहीं। पैरालिंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा पहली भारतीय महिला बन गई हैं।
आगे खेल में उनके लक्ष्य के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि 2012 जो पैरालंपिक हुए थे उसमें उन्हें जेवलिन की तैयारी करनी पड़ी लेकिन वो इसमें भाग नहीं ले पाई थी। 2014 में एशियाई खेलों में जेवलिन थ्रो करके उन्होंने नया रिकॉर्ड स्थापित किया लेकिन 2016 में नई चुनौती स्वीकार करनी पड़ी, मुझे शॉटपुट सीखना पड़ा। जिसके बाद 2018 में हुए एशियाई खेलों में जेवलिन में उन्होंने एक और नया रिकॉर्ड अपने नाम किया लेकिन अब 2020 में टोक्यो का जो सफर है उसमे विकलांग वर्ग में डिस्कस थ्रो एक नया इवेंट उभर कर आया है। मैंने उसकी शुरुआत एशियाई खेलों में ब्रॉन्ज़ मैडल के साथ की है। मुझे और मेहनत करनी होगी। उन्होंने कहा कि इस नए खेल को मै 48 साल की उम्र में सीखना चाहती हूँ। पूरी कोशिश रहेगी कि वो इस बार भी अपने नाम मैडल दर्ज कराएं।
भारतीय खेल मंत्रालय की ओर से मदद न मिलने के बारे उन्होंने कहा कि जल्द ही मै 50 साल की उम्र पार कर जाउंगी और इंतजार कर रही है कि अगली ओलिंपिक स्कीम जल्द से जल्द शुरू हो और 2016 में ओलिंपिक में उनके द्वारा जीते हुए मैडल के आधार पर ग्रेड-ए के तहत नौकरी मिल जाये। उन्होंने कहा कि उन्हें ढाई साल के बाद भी नौकरी की उम्मीद है और वो बरक़रार रहेगी। डर केवल इस बात का है कि 2 साल बाद में 50 साल की हो जाउंगी और कहीं इस पॉलिसी से बाहर न हो जाऊ। मैडल के आधार पर जो उन्हें कैश प्राइज मिलता है उसका भी उन्हें इंतज़ार है, जल्द ही शायद उसकी भी तारीख घोषित की जाए।
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