वैश्विक प्रगति में भारतीय संस्कृति की भूमिका पर स्वामी विवेकानंद समिति के प्रतिनिधि वक्ता कृष्ण कुमार दीक्षित की विशेष मुलाक़ात

ROHIT SHARMA

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नई दिल्ली :– पूरे देश में कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप है। वही इस महामारी में टेन न्यूज़ नेटवर्क वेबिनार के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहा है , साथ ही लोगों के मन में चल रहे सवालों के जवाब विशेषज्ञों द्वारा दिया जा रहा है। आपको बता दे कि टेन न्यूज़ नेटवर्क ने “फेस टू फेस ” कार्यक्रम शुरू किया है , जो टेन न्यूज़ नेटवर्क के यूट्यूब और फेसबुक पर लाइव किया जाता है।

वही इस “फेस टू फेस ” कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद समिति के प्रतिनिधि वक्ता कृष्ण कुमार दीक्षित ने हिस्सा लिया। साथ ही इस कार्यक्रम के माध्यम से जनता को बहुत ही महत्वपूर्ण विषयों पर जागरूक किया गया। इस कार्यक्रम का संचालक नोएडा के समाजसेवक , मशहूर लेखक , गायक , गीतकार एवं मंच संचालक दीपक श्रीवास्तव ने किया।

नोएडा के समाजसेवक दीपक श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की शुरुआत शेयर अंदाज तरिके से किया | साथ ही उन्होंने कहा की कृष्ण कुमार दीक्षित एक पीसीएस अधिकारी भी है , साथ शिकागों स्थित स्वामी विवेकानंद समिति के प्रतिनिधि वक्ता व् ओरिगामी योगा के अविष्कारक भी है , उन्हें जनता याद करती है |  दीपक श्रीवास्तव ने कृष्ण कुमार दीक्षित से जबरदस्त प्रश्न किए , जिसका जवाब हर किसी व्यक्ति को चाहिए था | साथ ही उन्होंने एक से बढ़कर एक प्रश्न पूछे , जो प्रश्न लोगों के मन में बैठा रहता है।

कृष्ण कुमार दीक्षित ने कहा की महाभारत के युद्ध में विज्ञान ने बहुत विनाश किया , यह लगा किं श्रृष्ठी समाप्त हो जाएगी | उस समय विज्ञान के कार्य प्रयोग थे , वो युद्ध के बाद सामान्य जन को बताया जाए या नहीं | यंत्र संस्कृत पर रोक लगा दी गई , इस विज्ञान से बड़ा विनाश होता है इसलिए सिर्फ इसके परिणाम बताएं जाएंगे , उसके फार्मूले बताए जाएंगे | जैसे गणित में किस प्रकार पंचांग बनता है , सूर्य की गतियां क्या है इसके फार्मूले तो बता दिए , लेकिन 2 सूत्र कैसे प्रकट हुए , किस यंत्र से बनाए गए , इसका जवाब किसी के पास नहीं है |

उन्होंने कहा कि कार्यकारी संस्कृत है , उसको रोक दिया गया और दर्शन को बढ़ावा ज्यादा दिया गया | मुगलों और अग्रेजों की दास्तां के समय जो हमारे ग्रंथ थे , उनका विनाश हुआ , अब हमें केवल रिजल्ट मालूम है , हम जिस दिशा में काम करते हैं , उस दिशा में काफी सफलता मिलती है|

कंप्यूटर के मामले में हमारे कई वरिष्ठ लोग भारत का नाम रोशन किए हुए है , लेकिन यहाँ पर सम्मान नही मिलता । भारतवर्ष में जगह जगह छोटे-छोटे गांव में गुरुकुल चलते थे और विद्यार्थी बिना किसी सुख के पढ़ते थे और 25 साल शिक्षा प्राप्त करने बाद समाज में आते थे , तो योग्य हो जाते थे , लेकिन लार्ड मैकाले ने क्या किया , भारतवर्ष में क्लर्क पैदा कर दिया है , जो हमारी गुरुकुल की पद्धति थी उसको जबरदस्ती नष्ट किया |

उसका कारण हम केवल गुलाम बनकर रह गए जिस दिन हम नागरिक शास्त्र पढ़ लेंगे और जिस दिन हम विज्ञान को गुरु के पास बैठ कर पढ़ लेंगे , फिर हम आगे हो जाएंगे , अभी बहुत देर नहीं हुई है , लेकिन पिछड़ जरूर गए हैं। आज हम गुरु को मजदूर समझने लगे है , हमने पैसा दिया , उसने पढ़ा दिया ।

कृष्ण कुमार दीक्षित ने कहा कि पहले राजा भी गुरुओं के पैर छूते थे  , वो अपने बच्चों को गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज देते थे और 25 साल बाद वह बच्चा समाज में आता था , जिसके बाद उसे जिम्मेदारी दी जाती थी , लेकिन 25 साल के बीच में अगर गुरु राजा के बेटे को सजा भी देता था , तो राजा को इससे फर्क नहीं पड़ता था , क्योंकि राजा ने गुरु को अपने बच्चे पढ़ने के लिए दिए थे |

वही आज के समय में अगर टीचर बच्चे को थोड़ा सा डांट भी दे , तो अभिभावक गुरु का सम्मान तो छोड़ , उनको मारने के लिए उतारू हो जाते हैं | साथ ही उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज भी करवाया जाता है , हमें इस विचार को बदलना होगा | शिक्षा उपयोग के लिए है , जिसे हम अपने परिवार का पालन पोषण कर सकते हैं , जिस दिन शिक्षा ज्ञान के लिए हो गई , उस दिन हम आगे बढ़ जाएंगे इसके लिए
अभियान के रूप मे कार्य करना होगा |

शिक्षा एक आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग कार्य और विचार की नई पद्धतियाँ सीखते रहते हैं। उससे व्यवहार में ऐसे बदलाव लाने को बढ़ावा मिलता है, जिनसे मनुष्य की स्थिति में सुधार आए। छात्रों में एक सामजिक भाव की संस्कृति पनपने में शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सामाजिक मनोवैज्ञानिक आर. इस. बार्थ लिखते हैं, “एक छात्र के जीवन पर और स्कूल में उसकी हो रही शिक्षा पर शिक्षा विभाग, अधीक्षक, स्कूल बोर्ड इतना ही नहीं, स्कूल के प्रिंसिपल से भी उस स्कूल की संस्कृति का ज्यादा गहरा प्रभाव होता है |

स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को अपना कर फ्रैंचाइज़र्स कई अलग अलग उद्देश्य पूर्ण कर सकते हैं। वो छात्रों को विरासत, लोग और समाज के बारे में सीखा सकते हैं, जिससे उनमें एक जिम्मेदारी और नागरिकता की भावना आकार लेगी। फ्रैंचाइज़र्स उनमें स्व-मूल्य और गौरव जगा सकते हैं, जिससे उनके आत्मविश्वास और विकास में वृद्धि होगी।

शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य संस्थाएं विचारपूर्वक अपनी सांस्कृतिक विरासत प्रसारित करती हैं। संस्कृति शिक्षा का अभिन्न भाग है और उसका स्कूल के प्रशासन से गहरा सम्बन्ध है।

भारत देश एक बहु-सांस्कृतिक परिदृश्य के साथ बना एक ऐसा राष्ट्र है जो दो महान नदी प्रणालियों, सिंधु तथा गंगा, की घाटियों में विकसित हुई सभ्यता है, यद्यपि हमारी संस्कृति हिमालय की वजह से अति विशिष्ट भौगोलीय क्षेत्र में अवस्थित, जटिल तथा बहुआयामी है, लेकिन किसी भी दृष्टि से अलग-थलग सभ्यता नहीं रही।

भारतीय सभ्यता हमेशा से ही स्थिर न होकर विकासोन्मुख एवं गत्यात्मक रही है। भारत में स्थल और समुद्र के रास्ते व्यापारी और उपनिवेशी आए। अधिकांश प्राचीन समय से ही भारत कभी भी विश्व से अलग-थलग नहीं रहा।
इसके परिणामस्वरूप, भारत में विविध संस्कृति वाली सभ्यता विकसित होगी जो प्राचीन भारत से आधुनिक भारत तक की अमूर्त कला और सांस्कृतिक परंपराओं से सहज ही परिलक्षित होता है, चाहे वह गंधर्व कला विद्यालय का बौद्ध नृत्य, जो यूनानियों के द्वारा प्रभावित हुआ था, हो या उत्तरी एवं दक्षिणी भारत के मंदिरों में विद्यमान अमूर्त सांस्कृतिक विरासत हो।

भारत का इतिहास पांच हजार से अधिक वर्षों को अपने सांस्कृतिक खंड में समेटे हुए अनेक सभ्यताओं के पोषक के रूप में विश्व के अध्ययन के लिए उपस्थित है। यहां के निवासी और उनकी जीवनशैलियां, उनके नृत्य और संगीत शैलियां, कला और हस्तकला जैसे अन्य अनेक तत्व भारतीय संस्कृति और विरासत के विभिन्न वर्ण हैं, जो देश की राष्ट्रीयता का सच्चा चित्र प्रस्तुत करते हैं।

प्रत्येक राष्ट्र की पहचान उसकी सांस्कृतिक धरोहर तथा सामाजिक मूल्यों से होती है भारतीय संस्कृति का स्वरूप निःसंदेह रूप से समन्वयवादी तथा लोक कल्याणकारी रहा है संस्कृति मानव-चेतना की स्वस्तिपरक उर्जा का ऐसा उध्र्वमुखी सौन्दर्यमयी प्रवाह होता है जो व्यक्ति के मन, बुद्धि और आत्मा के सूक्ष्म व्यापारों की रमणीयता से होता हुआ समष्टि – कर्म की सुष्ठुता में साकार होता है।

संस्कृति का एक रूप देश-काल सापेक्ष है तो दूसरा देश-काल निरपेक्ष। सचमुच भारत एक महासागर है। भारतीय संस्कृति महासागर है। विश्व की तमाम संस्कृतियाँ आकर   इसमें समाहित हो गई है। आज जिसे आर्य संस्कृति , हिंदू संस्कृति आदि नामों से जाना जाता है, वस्तुतः वह भारतीय संस्कृति है।

जिसकी धारा सिंधु घाटी की सभ्यता, प्रागवैदिक और वैदिक संस्कृति से झरती हुई नवोन्मेषकाल तक बहती रही है। अनेकानेक धर्मों सभ्यताओं और संस्कृतियों को अपने में समाहित किए हुए इस भारतीय संस्कृति को सामासिक संस्कृति की कहना उचित है। संस्कृति की सामासिकता का तात्पर्य है कि इसमें अनेक ऐसे मतों का प्रश्रय मिला है, जो परस्पर नकुल-सर्प-संबंध” के लिए प्रसिद्ध रहे है। अनेकता में एकता के साथ हमारे समाज की रचनात्मक उर्जा अधिकाधिक मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाती रही है। यह   सांस्कृतिक अनुशासन भारतीय   समाज की विशिष्टता है।

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