जहाँ एक तरफ किसानों के भारत बंद को लेकर भारत के विभिन्न हिस्सों से अलग अलग तरह की खबरें आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर देश के नामचीन कवियों ने आमजन को इससे हो रही तकलीफ की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
कवि शिव प्रकाश जौनपुरी इस तरह के हर बंद के ख़िलाफ़ हैं। “जी नहीं हम इस तरह के बंद का किसी भी रूप में समर्थन नहीं करते|जिससे आमजन तकलीफ में हो,वह बंद किसी के काम का नहीं|हाँ राजनेताओं को भरपूर फायदा हो रहा है|सब अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं|जितने किसान वहाँ धरना प्रदर्शन में जुटे हैं किसी को पता ही नहीं है कि नियम क्या बना है”, टेन न्यूज़ से बातचीत में बोले जौनपुरी।
वहीं कवि अटल मुरादाबादी का कहना है की बंद किसी समस्या का समाधान नहीं है।
उन्होंने कहा, “बंद से बहुत से लोग परेशान हो जाते हैं।रोगी जन जाम में फंसकर अपने प्राण त्याग देते हैं।क्या ऐसे कर पायेंगे हम समाज सेवा? यह यक्ष प्रश्न सभी को स्वयं से पूछना चाहिए। मानव जन्म त्याग के लिए है न कि स्वार्थ पूर्ति के लिए।”
जिला हाथरस के शूल कवि, देवेन्द्र दीक्षित का दावा है कि एक भी किसान इस आंदोलन में नहीं गया है ना ही उसे इससे कुछ लेना देना है क्योंकि सरकार ने पहली बार हम किसानों के खाते में सीधे पैसे भेजे हैं।
“सच्चे और अच्छे किसान अपने खेत में काम कर रहे हैं यह कुछ राजनैतिक दलों से जुड़े हुए किसान हैं जिन्हें देश ,समाज व किसान की चिंता नहीं । अपनी और अपने नेताओं की स्वार्थ सिद्धि की चिंता है । अगर ये किसान होते तो सरकार की बात मानकर अब तक फिर खेती के काम में लग गई होते।”, वो बोले।
कवियत्री उषा राजेश का मानना है की मांगें किसी की भी हों, मुद्दा कोई भी हो रास्ते बंद, पूर्ति बंद या भारत बंद किसी भी प्रकार का बन्द किसी भी समस्या का हल नहीं है।
“यदि हम समस्याएं सुलझाना चाहते हैं तो हमें रास्ते बंद करने की बजाय रास्ते खोलने का प्रयत्न करना चाहिए – प्रयत्न बातचीत के रास्ते खोलने का, दिमाग के ताले खोलने का, बन्द आंखे खोलने का, बन्द अवसर खोलने का अन्यथा यदि हम इसी तरह रास्ते, पूर्ति और भारत बंद करते रहे तो समस्या सुलझाने की बजाय हर बार एक नई समस्या को जन्म देंगे और खुद इन समस्याओं में और भी उलझते जायेंगे।”, उषा जी ने बताया।