स्वयं की जागरूकता ही कोरोना से बचाव का सर्वोत्तम साधन

By दीपक श्रीवास्तव

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समूचा विश्व आज कोरोना महामारी के रूप में सदी के सबसे बड़े संकट का सामना करते हुए निरन्तर संघर्ष कर रहा है। ऐसी परिस्थिति में एक ओर जहां बड़े-बड़े विकसित देश इस महासंकट के समक्ष नतमस्तक हो चुके हैं, वहीं भारत द्वारा कोरोना के विरुद्ध संयमित एवं अनुशासित संकल्प ने पूरे विश्व के सामने न सिर्फ अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है बल्कि यह भी सिद्ध किया है कि भविष्य में भारत के पास वैश्विक चुनैतियों का सामना करते हुए समूचे विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता है।

इस महान संकट की घड़ी में भारत की एकजुटता ने सम्पूर्ण विश्व को संदेश दिया है कि चाहे हममें कितनी ही विविधताएं, मतों, पंथों एवं जातियों से भरी व्यवस्थाएं हैं, किन्तु यह एक ही माला में गुंथे हुए भिन्न-भिन्न रंगों के पुष्प हैं जिनका जीवन सदा से प्रकृति एवं जीवन के अनुकूल रहा है।

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस संकट का सामना करने के लिए “संकल्प” एवं “संयम” का महामंत्र दिया है जो भारतीय ग्रंथ परम्परा में भी वर्णित है। श्रीरामचरितमानस के लंकाकाण्ड में विभीषण धर्मरथ प्रकरण इसका सजीव उदाहरण है जब रावण को युद्ध मे रथ पर सुसज्जित देखकर तथा श्रीराम को नंगे पांव युद्ध मे देखकर विभीषण को शंका होती है कि बलवती दिखाई देने वाली आसुरी शक्तियों के समक्ष कोमल सच्चाई कैसे जीतेगी? (रावण रथी विरथ रघुवीरा, देख विभीषण भयऊ अधीरा।) आज हम भी ऐसी ही चुनौती का सामना कर रहे हैं जब भयानक दीख रहे कोरोना के सामने मनुष्य निर्बल दिखाई देता है। किन्तु वहां श्रीराम का जो उत्तर है आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भारतीय समाज वो वही हल सुझाया गया है। श्रीराम का संदेश है – “सौरज धीरज तेहि रथ चाका, सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका।” अर्थात युद्ध मे जीतने के लिए जिस रथ की आवश्यकता है वह दो पहियों पर चलता है – शौर्य एवं धैर्य अर्थात संकल्प-शक्ति के साथ संयम। हमारी संस्कृति में मनीषियों ने घोर तपस्या के बाद अनुभवों के समाज को जो मार्ग दिखाया है, उसमें भी अन्य संसाधनों की बजाय इन्ही तत्वों पर बल दिया गया है। यही कारण है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के एक आह्वान पर समूचा भारतवर्ष एक साथ इस संकट के विरुद्ध एकजुट है तथा देश के नागरिक जन जागरण हेतु अनेक प्रकार से योगदान दे रहे हैं।

ऐसा ही एक प्रयास नोएडा के सुप्रसिद्ध लेखक दीपक श्रीवास्तव द्वारा भी किया गया है जिसमें उन्होंने विभिन्न वीडियो के माध्यम से जन चेतना में योगदान किया है। उनके द्वारा लिखित एक गीत के शब्द उल्लेखनीय हैं –

रोना, कोरोना से न रोना।
चाहे पड़े बार-बार हाथों को धोना।

गले मे पहले ठहरता,
छूने से है फैलता।
ये फ्लू जैसा ही लगे,
पर साँसों को रोकता।
पकड़ कहीं ना ले ये तुम्हें,
बस अपने घर में ही रहना।।

घर को सेनेटाइज करो,
किसी से यूँ ही ना मिलो।
कहीं कोई लक्षण दिखे तो,
फौरन डॉक्टर से मिलो।
संयम से और संकल्प से,
तुम कोरोना से जीतना।।

भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण वसुधा को अपना परिवार मानती है तथा भारतीय परंपराओं ने हर मुसीबत के छक्के छुड़ाए हैं। इस बार भी संकल्प एवं संयम के बल पर जीत सुनिश्चित है।

कोरोना के दौर में आप के मन की बात

कोरा कागज़ था ,ये मन मेरा
लिख लिया नाम , इसपे तेरा

इस पुराने और हिट फ़िल्मी गीत के धूनपर

मेरे कवी , लेखक और गायक मित्र श्री दीपक श्रीवास्तव जी की सुंदर संगीतमय प्रस्तुति

टूट न जाए साँसे , हम डरते है
कोरोना के नाम से ही , काँपा करते है

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