‘किसी भी महजब से संबंध रखते हो लेकिन हमें सत्य को स्वीकारना चाहिए और असत्य को छोड़ना चाहिए’: प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्य

टेन न्यूज़ नेटवर्क

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नई दिल्ली (26/05/2022): टेन न्यूज़ लाइव ने कार्यक्रम ‘सच्ची बात’ के माध्यम से प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्य, वाराणसी की वरिष्ठ एडवोकेट रितु श्रीवास्तव और लेखक दीपक श्रीवास्तव से खास बातचीत की है जिसमें यह जानने की कोशिश की गई कि ज्ञानवापी मस्जिद में मिला शिवलिंग के बाद आगे क्या होगा? पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।

प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्य ने कहा की प्राचीन विश्वनाथ मंदिर में जो दक्षिण भाग में जो वापी है उसका पानी पीने से जन्म मरण में मुक्ति प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि कुएं, पोखर, तलाब, जलाशय या एक ऐसे छोटे से स्त्रोत जहां प्राकृतिक रूप से जल का उद्भव होता हो उसे वापी कहते हैं। जब वापी में ज्ञान शब्द जोड़ देते हैं तो ज्ञानवापी बन जाता है और ज्ञानवापी का अर्थ होता है ज्ञान का प्रसार करने वाला एक ऐसा स्थान जहां का पानी पीने से सम बुद्धि की प्राप्ति होती है, वह अब वाराणसी में स्थित है। ज्ञानवापी के नाम से मस्जिद पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं है। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष जैसी कोई चीज होता ही नहीं है और धर्म कभी निरपेक्ष हो ही नहीं सकता है धर्म सापेक्ष होता है।यदि धर्मनिरपेक्ष होगा तो धर्म ही नहीं रहेगा। सर्व धर्म संभव जैसे कोई चीज नहीं है, धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे जैसे कोई शब्द नहीं है।

चर्चा में आगे उन्होंने कहा कि आक्रांताओं ने दिन रात काम करके जैसे तैसे काम को खत्म करना था इसलिए वह एक दिवार दूसरे का प्रयोग कर और दूसरी दीवार खुद बनाकर काम को खत्म कर दिया। पश्चिम दिशा की दीवार पर मूर्तियां हैं जो गौरी श्रृंगार के नाम से जाना जाता है वहां पर पूरी देवी देवता का मूर्ति है। उन्होंने बताया कि ऐसा घटना केवल ज्ञानवापी मंदिर में नहीं हुआ बल्कि भारत के 30,000 देवालयों और मंदिरों में ऐसा हुआ हैं। स्तंभ के बारे में बताते हुए कहा कि हमारे तीन बड़े आधार स्तंभ थे भगवान विष्णु, भगवान श्रीराम और भगवान शिव जी थे। भगवान विष्णु और महेश के जो भी देवालय और मंदिर थे पहले उन्हें डैमेज किया गया है। अयोध्या को इसलिए डैमेज किया गया क्योंकि वह भगवान श्रीराम को प्रजेंट करता थे, वाराणसी को इसलिए डैमेज किया गया क्योंकि वह भगवान शिव को प्रजेंट करते थे और मथुरा को इसलिए डैमेज किया गया क्योंकि वह भगवान कृष्ण को प्रजेंट करते थे। उत्तर भारत में यह विध्वंस अधिक फैला था, यहां अधिक इसलिए हुआ क्योंकि यहां पर फूट था।

उन्होंने कहा कि ऐसा करने का उनका एक ही उद्देश्य था कि हम ये प्रजेंट करे कि आपका धर्म, आपके धर्म को मानने वाले, धर्म में आस्था रखने वाले और आपके धर्म के कर्मकांड में समाहित जितने भी जन है उनका कोई अस्तित्व नहीं है और उनकी आस्था का कोई कद्र नहीं है। उन्होंने कहा कि तब का आबादी कम था और इतना बड़ा भौगोलिक क्षेत्र था और आपका शासन था आप कहीं भी बनवा सकते थे, आपको किसी ने रोका नहीं था लेकिन आपको ये सब बनवाना था आपको बस हिंदुओं का धर्म स्थल का मटिया मीट करके उसके ऊपर आपको विजय पटाका फहराना था। इस मामले में हमें जर्मन से सीखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि आप हर शहर में जांच करेंगे तो ये अवशेष आपको धीरे-धीरे हर शहर में दिखाई देगा। ऐसा नहीं कि हमें हर जगह तोड़फोड़ करके मंदिर ही बनाना चाहिए लेकिन जो मुख्य स्थल है उनका पुनरुद्धार होना चाहिए। हमें इतिहास में बदलाव करना चाहिए और एक पूर्ण शिलालेख उस स्थल के बाहर लगाना चाहिए जहां पर साफ और स्पष्ट शब्दों में लिखा जाना चाहिए कि इस स्थल की वास्तविकता क्या है? हमें बताना चाहिए कि पहले या 300 पूर्व इस देवालय को यह माना गया था अब इस देवालय को इस नाम से जाना जाता है। इससे जो नई पीढ़ी है उन्हें सही बात का पता चलेगा। उसके बाद जो हमारे अंदर बदलाव आता है उससे हम वास्तविकता की राह पर चलते हैं।

उन्होंने कहा कि जो सर्व धर्म संभव और भाईचारे की बात करते हैं उन्हें सबसे पहले आगे आकर उन्हें कहना चाहिए कि जो गलतियां हमारे आक्रांताओं से हुई है‌ आज हम आगे बढ़कर इस स्थान से अपना हक पीछे करते हैं। सर्व धर्म का मिसाल पेश करते हुए कहना चाहिए कि यह आपका स्थान था आज हम आपको देते हैं। इससे कितनी बड़ी मिसाल दुनिया में जाएगा। उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधते हुए कहा कि असदुद्दीन ओवैसी तीसरी पीढ़ी ब्राह्मण था लेकिन वह आज इतने बड़े नेता बनते हैं कि पता नहीं कि कितने बड़े इस्लाम से बिलॉन्ग करता है। ज्ञानवापी शिवालय के रूप में ही अवस्थित होगा। बहुत ही मान-मर्यादा, आन-बान और मान-शान के साथ भगवान शिव की ध्वज वहां पर लहराएगा। वहां पर पुनः ज्योतिर्लिंग का स्थापना होगा और वहां पर फिर से वेदों के मंत्रों का जाप होगा।

वाराणसी की वरिष्ठ एडवोकेट रितु श्रीवास्तव ने कहा कि की सर्वे का रिपोर्ट लीक नहीं हुआ है क्योंकि यहां पर सारी चीज सीक्रेट तरीके से किया जाता है। गलत अफवाहें फैलाई जा रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि जिला अध्यक्ष इसकी सुनवाई करें। उन्होंने कहा कि वाराणसी में हिंदू और मुस्लिम दोनों शांत है और जो भी दिक्कत है वह बाहर के लोगों में हैं। इस मामले में वाराणसी के कोई भी मुस्लिम रिलैक्स होकर और हंस कर बातें करते हैं। यहां पर कोई भी खतरा नहीं है और ये लोग कह रहे हैं कि जो भी कोर्ट का आदेश होगा हम उन्हें मानेंगे।

उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ठीक है वहां पर जो शिवलिंग मिला है हम उनके धर्म को आहत नहीं करेंगे लेकिन उन्हें वजू खाने के लिए अलग से जगह दे दिया जाए। इसी बात पर दोनों पक्षों में बात चल रहा है और कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। कोर्ट का जो भी फैसला आएगा दोनों पक्ष मानेंगे। उन्होंने कहा कि बनारस के कण-कण में शिव हैं और काशी तो शिव के त्रिशूल में टिका हुआ है। मुस्लिम समुदाय भी ये चीज को मानने से इंकार नहीं करते हैं। मुस्लिम समुदाय का खुद मानना है कि बनारस में कुछ नहीं होगा क्योंकि बनारस शिवजी के त्रिशूल पर टिका हुआ है। यहां के लोगों में दो विचार नहीं है और भारत का संविधान भी एक तरफ कठोर और दूसरी तरफ लचीला है। कोर्ट में सुनवाई चल रहा और कोर्ट का जो भी फैसला होगा दोनों समुदाय को मान्य होगा।

उन्होंने कहा कि वहां पर शिवलिंग तो है यह सब मानते हैं लेकिन उसे जो फव्वारे के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है वह गलत है। जो लोग कह रहे हैं कि यह शिवलिंग नहीं फव्वारा है वह कोर्ट में एप्लीकेशन दें और पुरातत्व विभाग सर्वेक्षण करें और जांच करें। फिर धीरे-धीरे सच अपने आप सामने आ जाएगा और फिर हमारे पक्ष में फैसला आ जाएगा। उन्हें उसी परिसर में दूसरे जगह दे दिया जाएगा। उसके बाद कोर्ट का आदेश जो भी होगा वह सबको मान्य होगा।

लेखक दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि वर्तमान समय बदलाव का समय है। बदलाव का जो दौर है वह केवल धरातल पर ही नहीं बल्कि हमारे मन मस्तिष्क में भी प्रभावी हो रहा है। भारत में ज्यादातर मुस्लिम कन्वर्टेड है। चाहे इसके पीछे जो भी परिस्थिति और कारण रहा हो। हिंदू सभ्यता में कहा गया है कि अगर किसी के देश को समाप्त करना है तो उसकी संस्कृति को समाप्त कर दो और उस पर सबसे पहले प्रहार करो उसके बाद वह देश मिट सकता है। उन्होंने कहा कि जो भी आए वह हमें मिटाने के उद्देश्य से आए लेकिन हमारा दर्शन ही ऐसा है कि हम लोग कभी मिट नहीं सकते।

उन्होंने आगे कहा कि कन-कन में जब तक सृष्टि है तब तक दर्शन में व्याप्त रहेगा। जिन लोगों को जबरन मुस्लिम बनाया था क्या उन्हीं के साथ उन्हीं के पीठ पर छुरा भोंकने का काम नहीं किया है इन शासकों ने। इस पर मुस्लिम लोगों को भी विचार करने की जरूरत है और इस पर स्पष्ट रूप से खुलकर चर्चा करने की जरूरत है तब जाकर संपूर्ण सृष्टि की विकास की दिशा तय हो सकती है।

प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्य ने कहा कि आक्रांता में इस्लामिक आक्रांता और अंग्रेज आक्रांता शामिल है पहले इन दोनों ने मिलकर दुनिया को लूटा है। अंग्रेज ने जो ट्रेन चलाई थी वह कोई विकास के लिए नहीं चलाई थी बल्कि यहां से सोने को ले जाने के लिए चलाया था। हमारे जो समृद्धि थी वह दुनिया के नजरों में खटका और हमें लूटने के लिए लोगों का यहां आना जाना शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि एक दिन देश में कोहिनूर भी वापस आएगा।

उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म के तीन आचमन को ये लोग वजू कहते हैं, परंपराएं अलग-अलग हो गई है। उन्होंने कहा कि यदि आपको धार्मिक व्यवस्थाएं, परंपराएं, कर्मकांड और क्रियाकलाप इतने ही पसंद है तो आपको घर वापसी के लिए किसने रोका है। इसे और शुद्धता से कर लीजिए ऐसे मन मारकर करने की क्या जरूरत है? करना यह वही चाहते है जो हम लोग करते हैं। उन्होंने बताया कि कोई भी इबादत चाहे किसी भी धर्म की हो वह पवित्रता और सत्यता पर ही आधारित होती है। अगर आप उससे पवित्रता और सत्यता निकाल दें तो परमात्मा की प्रार्थना का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। परिवर्तन संसार का नियम है और लोगों में बौद्धिकता का संचार हुआ है लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो कहीं और से बैठकर रिमोट चलाते हैं। इस मामले में इसका निदान यही है कि मुस्लिम पक्ष स्वैच्छता से अपने कदम पीछे हट लें और धीरे-धीरे सत्य के साथ हो जाए।

उन्होंने आखिर में कहा कि लोग किसी भी महजब से संबंध रखते हो लेकिन हमें सत्य को स्वीकार करना चाहिए और असत्य का साथ छोड़ देना चाहिए। हमें बदलते हुए परिवेश में स्वयं को बदलना चाहिए। जो देश काल और परिस्थिति के अनुरूप नहीं बदल पाते वो दुनिया से विलुप्त हो जाते हैं।

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