उच्च शिक्षा पर राष्ट्रीय आय का 2 फीसदी सालाना खर्च किया जाए तो ही बदलाव संभव : डॉ. एच चतुर्वेदी

Abhishek Sharma / Baidyanath Halder

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Greater Noida (26/05/2019) : ब्रैंड मोदी का जादू इस बार 2014 से भी ज्यादा दिख रहा है। ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए बीजेपी पिछली बार से भी ज्यादा सीटें जीती है। बीजेपी ने इसबार के चुनाव में अपने दम पर 303 के आंकड़े को हासिल किया है। एनडीए गठबंधन कुल 352 सीटें जीतने में सफल रहा है। बीजेपी की इस जीत में पीएम मोदी का चेहरा और बीजेपी चीफ अमित शाह की रणनीति को अहम माना जा रहा है।



सरकार से लोगों की क्या उम्मीदें होंगी इस विषय पर टेन न्यूज़ ने मैनेजमेंट गुरु एवं बिमटेक के डायरेक्टर डॉ एच. चतुर्वेदी से ख़ास बातचीत करते हुए उनकी राय जानी।

प्रस्तुत हैं उनसे टेन न्यूज़ की बातचीत के कुछ अंश-

बहुमत से सरकार बनने के बाद एनडीए से लोगों की क्या अपेक्षाएं होंगी और किस ओर इस सरकार को अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है?

सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि सारी दुनिया ने सराहना कि है, जिस ढंग से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 17 वीं लोकसभा के लिए चुनाव संपन्न हुए हैं। यह एक तथ्य है की जिस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान राजनैतिक पार्टियों की भाषाओं में बहुत गिरावट देखी गई , एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। अब वह दौर ख़त्म हुआ और नई सरकार का गठन होने जा रहा है। कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह वर्ष महात्मा गाँधी की 150वीं वर्षगाठ का है और देश की आजादी की 75वीं वर्षगाठ भी देश दो साल बाद मनाने जा रहा है। आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद बहुत सारी उपलब्धियां हासिल हुई लेकिन अब बहुत से ऐसे एजेंडे हैं जिनपर अभी काम होना बाकी है।

पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल में एनडीए की सरकार ने बहुत सारी योजनाएं घोषित की , उससे पहले यूपीए की सरकार ने भी महात्मा गाँधी नारेगा जैसी योजनाओं पर काम किया। इसके बावजूद देश में आज भी 20 करोड़ ऐसे लोग हैं जिन्हे दिन में दो समय भरपेट खाना नहीं है, उन्हें रहने के लिए छत नहीं मिली है और मुख्य बिंदु उन्हें शिक्षा भी नहीं मिल पाती है। यह गरीबी हमारे देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दूसरा बड़ा मुद्दा है कि आज भी हमारे देश का नौजवान बड़ी संख्या में रोजगार पाने की कोशिश में लगा हुआ है, लेकिन बाजार में रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं हैं। जो हमारी सालाना आर्थिक विकास की दर 7 फीसदी या उससे अधिक रही है। ऊँची आर्थिक विकास दर के बावजूद भी रोजगार के साधन सिकुड़ते नजर आ रहे हैं।

सरकारी नौकरियों का देश के युवाओं में जूनून है, लेकिन सरकारी नौकरी के स्रोत भी नहीं बचे हैं , लेकिन एक आंकड़ा आया है कि केंद्र और राज्य सरकार में करीब 20 लाख से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं जिनके लिए सरकार को वेकन्सी निकालनी चाहिए। एक नया क्षेत्र पैदा हुआ है जिसमे नियोक्ता और कर्मचारी संबंध नहीं है। इसको हम गीग इकॉनमी के नाम से जानते हैं। जिसमे लोग फ्रीलान्स काम करते हैं। जैसे उबर के ड्राइवर और जोमैटो के डिलीवरी बॉय। यह नौकरिया स्थाई नहीं हैं, अगर यहाँ पर लगातार काम करोगे तो गुज़ारा होगा और आप बीमार पड़े तो गुजारा करना मुश्किल हो जाएगा।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नई सरकार को किन बड़े सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?

उच्च शिक्षा में सुधार पर चर्चा 2009 से हो रही, यूपीए सरकार में कपिल सिब्बल ने सबसे पहले उच्च शिक्षा में सुधार की बात की थी। मौजूदा सरकार ने 2014 में ही नई शिक्षा नीति बनाने की घोषणा की थी। शिक्षा में सुधार के लिए कमेटियां भी बनाई गई हैं। नई शिक्षा नीति की घोषणा अविलम्ब होनी चाहिए। उच्च शिक्षा में जो समस्या है वो यह है कि आम परिवार के बच्चे प्राइवेट कॉलेज और विश्वविद्यालयों में महंगी फीस के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। उनकी पढ़ाई लिखाई का एकमात्र आसरा राज्यस्तरीय पब्लिक यूनिवर्सिटी बच जाती हैं , जैसे कि यहाँ पर गौतमबुध यूनिवर्सिटी है, सीसीएस यूनिवर्सिटी मेरठ, आगरा में बी.आर. आंबेडकर यूनिवर्सिटी है, इनमे देशभर में करोड़ों विद्यार्थी पढ़ते हैं और इनमे पढ़ाई के स्तर में लगातार गिरावट हुई है, क्योंकि इनको मिलने वाली अनुमति अपर्याप्त है।

यहां पर नए संसाधनों की कमी है। बहुत से ऐसे विश्वविद्यालय हैं जिनके भवन सौ साल से पुराने हैं। जहाँ पर प्रयोगशालाएं, लाइब्रेरी जर्जर हालत में हैं। ये सारे विश्वविद्यालय परीक्षा लेती हैं और प्रवेश देती हैं, यहाँ पर पढ़ाई लिखाई की कोई व्यवस्था नहीं है। निजी या सरकारी कॉलेज हो, उन सभी में उच्च स्तर की पढ़ाई बच्चों को देने की जरूरत है और वह तभी होगा जब सरकार नई शिक्षा नीतियों पर जोर दे। उच्च शिक्षा पर अभी 25 से 30 हजार करोड़ रूपये का बजट में प्रावधान होता है। यह मेरा खुद का शोध है इस पर किताब भी लिखी है कि जब तक उच्च शिक्षा पर सालाना 1 लाख करोड़ रूपये खर्च नहीं होंगे तब तक उच्च शिक्षा का स्तर नहीं उठ सकता। अभी तक राष्ट्रिय आय का करीब एक फीसदी सालाना उच्च शिक्षा पर खर्च होता है, यह बढाकर दो से ढाई फीसदी करना चाहिए तभी उच्च शिक्षा के स्तर में बदलाव संभव हैं।

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