गौतमबुद्धनगर : लॉक डाउन के लघु उद्योग और शिक्षा जगत पर पड रहे प्रभाव से बाहर निकलने पर मंथन
Abhishek Sharma
Greater Noida (28/04/2020) : पूरी दुनिया में कोरोना का कहर जारी है। भारत में 29 हजार से ज्यादा कोरोना वायरस के मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इस महामारी से अब तक 850 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है।
कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए गौतम बुद्ध नगर में लॉकडाउन है। यहां पर उद्योगों में पिछले लगभग डेढ महीने से ताला लगा हुआ है। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि उद्योग इतने लंबे समय तक बंद रहे हों। उद्योग मालिकों के साथ-साथ काम करने वाले वर्कर इन दिनों खासे परेशान है। वहीं शिक्षा जगत में भी इसका काफी कुप्रभाव देखने को मिल रहा है बच्चों के एग्जाम कैंसिल हो गए हैं अब वे ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से पढ़ाई कर रहे हैं।
इससे बचाव के लिए भारत में 3 मई तक लॉक डाउन है। लोगों से घरों में रहने की अपील की जा रही है। टेन न्यूज ने एक वेबीनार का आयोजन किया। जिसमें उद्यमियों एवं शिक्षाविदों के पैनल ने विस्तृत चर्चा की। इस दौरान लोगों के प्रश्नों का भी जवाब दिया गया।
आज के पैनल में मुख्य शिक्षाविद बिमटेक कॉलेज के डायरेक्टर डॉ हरिवंश चतुर्वेदी, ग्रेड्स इंटरनेशनल स्कूल की प्रधानाचार्य अदिति बसु रॉय, नोएडा एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन के सदस्य सुधीर श्रीवास्तव, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के राष्ट्रीय सचिव एसपी शर्मा, लघु उद्योग भारती की जिलाध्यक्ष मंजुल मिश्रा और माॅडरेटर के तौर पर टेन न्यूज के एडवाइजर अशोक श्रीवास्तव मौजूद रहे।
आज के हमारे पैनल में औद्योगिक क्षेत्र व शिक्षा जगत में लॉक डाउन के कारण होने वाले नुकसान और इससे कैसे उबरा जा सकता है, पर चर्चा हुई।
सुधीर श्रीवास्तव के मुताबिक, भारत में सबसे अधिक रोजगार देने वाले सूक्ष्म, लघु और मझोले (एमएसएमई) उद्योग कोरोना की मार से खुद संकट में घिर गए हैं। लॉकडाउन के चलते यह अभी बंद हैं, लेकिन लॉकडाउन आगे बढ़ता है तो करोडों छोटे उद्योग हमेशा के लिए बंद हो सकते हैं क्योंकि इनके पास पूंजी का अभाव है। अगर देश में लॉकडाउन चार से आठ हफ्तों बढ़ता है, तो कुल एमएसएमई की 25 फीसदी यानी करीब 1.7 करोड़ एमएसएमई बंद हो जाएंगी। देश में 6.9 करोड़ एमएसएमई हैं। कोरोना संकट चार से आठ माह तक बढ़ता है, तो देश की 19 से 43 फीसदी एमएसएमई हमेशा के लिए भारत के नक्शे गायब हो जाएंगी।
– इस संकट से बचने के लिए सरकार को उद्यमियों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा। उद्यमियों को लाॅक डाउन में भी अपने कर्मचारियों को सैलरी देनी पड़ रही है। जब उद्यमियों का कारोबार बंद है तो वह कहां से कर्मचारियों को सैलरी दें। लॉक डाउन में किसी प्रकार की कोई रियायत नहीं मिल रही है। बैंक लोन की किस्त अपने आप खाते से काट ली जा रही है। फिक्स चार्ज पर भी अभी कोई छूट नहीं मिली है। इस ओर सरकार को विशेष ध्यान देना पड़ेगा। वहीं उन्होंने कहा कि जब हमारे उद्योग शुरू होंगे तो उस टाइम भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लंबे समय से बंद मशीनें जाम हो जाएंगी, स्टॉक में रखा हुआ अधिकतर माल कबाड़ बन जाएगा। सरकार को उस समय उद्यमियों की वित्तीय मदद करनी चाहिए उद्यमियों को सरकार से इंटरेस्ट फ्री लोन मिले। उनका कहना है कि अगर सरकार दे नही तो ले भी ना। कंपनियों में काम करने वाली लेबर ने पलायन कर लिया है लाॅक डाउन के बाद जब उद्योग शुरू होंगे, तो लेबर ढूंढना भी बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा कि छोटे उद्योग देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं एमएसएमई सेक्टर में सरकार की तरफ से जल्दी मदद का प्रावधान किया जाए।
एस पी शर्मा ने कहा मंहगाई और जीएसटी लागू होने के बाद कई उद्योग पहले से मंदी के दौर में है। किसी तरह जान फूंककर उद्योग चला रहे हैं लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद से इनकी परेशानी और भी बढ़ गई है। कहीं कच्चे माल का आर्डर रुका हुआ है तो कुछ जगह समान की आपूर्ति बड़े प्लांटों को नहीं की जा पा रही है। 30 दिन से अधिक लॉकडाउन होने के बाद मानों इन प्लांटों की कमर ही टूट गई है। अगर काम शुरू करने की मंजूरी दी जाती है तो यह सकारात्मक कदम है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि क्या यह शुरू हो पाएगा? उनके मुताबिक लॉकडाउन ने सब चौपट कर दिया है, पर इसके अलावा कोई चारा नहीं है। धीरे-धीरे इंडस्ट्रीज को शुरू किया जाना चाहिए।
लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के साथ ही सूक्ष्म लघु मध्यम इकाईयों (एमएसएमई) के लिए अब सबसे बड़ी मुसीबत अप्रैल माह के वेतन को लेकर है। उनका कहना है कि आर्थिक मंदी के इस दौर में बंद कारोबार से वेतन देना कैसे संभव हो सकेगा। इसके अलावा मदर यूनिट से एमएसएमई को समय पर भुगतान भी नहीं मिलने की संभावना है। ऐसे सरकार को लाॅकडाउन की अवधि खासतौर पर अप्रैल माह का वेतन देने की अनिवार्यता छोटे उद्योगों से खत्म कर देनी चाहिए। उनका मानना है कि लघु उद्योगों के कर्मियों के अप्रैल माह के वेतन का भुगतान सरकार को ईएसआइ या पीएफ में जमा राशि में से सरकारी स्तर पर करवाना चाहिए।
इस समय पूरा वेतन देने की अनिवार्यता की बजाए सरकार को सिर्फ गुजारा भत्ता दिलवाने की बात करनी चाहिए।
मंजुल मिश्रा का कहना है कि रिटेल कारोबार भी खुलना चाहिए, क्योंकि ऑर्डर नहीं होगा तो हम काम शुरू करके क्या करेंगे? सप्लाई चेन देखनी होगी। मटेरियल कैसे फैक्टरी तक पहुंचेगा? काफी कुछ देखना होगा। कोई फैक्टरी खुलेगी तो पास रहने वाली लेबर आ सकती है, लेकिन दूरदराज वाले कैसे आएंगे? इसका भी इंतजाम करना होगा।
ज्यादातर फैक्टरियों में उतनी जगह नहीं होती कि वो लोगों वहां पर रख पाएं। जो अकेले शहर में काम के लिए आते हैं, वे मजदूर पलायन कर गए हैं। जो सब घोषणा हो रही है, उससे बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
शिक्षा पर नॉक डाउन के प्रभाव पर डॉक्टर एच चतुर्वेदी ने कहा, इसके चलते सामाजिक, औद्योगिक और आर्थिक संकट गहराने के पूरे आसार हैं। वहीं शैक्षिक क्षेत्र की तालाबंदी भी एक मुसीबत पैदा होने का आभास करा रही है। पहले से ही संसाधन की भारी कमी झेल रहे एजुकेशन सेक्टर को अब इससे दोहरी मार झेलनी होगी। हालांकि ऑनलाइन क्लासेस शुरू होने से कुछ हद तक पढाई के नुकसान की भरपाई की जा सकती है। ग्रेटर नोएडा एजुकेशन हब माना जाता है। यहां सैकड़ों कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी हैं। देश के ही नहीं बल्कि दुनिया भर के छात्र यहां आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं ऐसे में अकेले ग्रेटर नोएडा में लॉक डाउन का लाखों छात्रों के जीवन पर प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन यह संकट पूरे देश पर आया है तो निश्चित ही हर क्षेत्र में इसका प्रभाव पड़ेगा सभी लोगों को मिलकर इस परेशानी को दूर करना है स्कूलों एवं कॉलेजों द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन क्लासेस काफी हद तक मददगार हैं लेकिन मेरा मानना है की छात्र और शिक्षक जब आमने सामने हों तो और भी अच्छे से पढ़ाई की जा सकती है। शिक्षण संस्थानों को भी लाॅक डाउन के दौर में छात्रों को रियायत दी जानी चाहिए। पूरी फीस एक साथ नहीं ले, किस्तों में फीस ली जा सकती है।
अदिति बसु राॅय के मुताबिक, कोरोना के संकट के चलते देश भर के शैक्षिक संस्थानों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है। इससे लाखों छात्रों के पठन-पठन में बाधा पैदा हुई है। एक तरफ जहां दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं, वहीं अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं को भी आगे के लिए टाल दिया गया है।
ग्रेटर नोएडा सबसे व्यापक शिक्षा हब माना जाता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने व्यापक पैमाने पर छात्र इस लॉकडाउन से प्रभावित होंगे। नि:संदेह शैक्षिक अव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तमाम संबंधित संस्थानों, शैक्षिक मानव बलों और सरकारों को मिलकर तेजी से काम करने होंगे। मजबूत शैक्षिक संकल्पों से इस दशा से उबरने में मदद मिलेगी, क्योंकि सवाल देश के नौनिहालों की बुनियाद का है। सभ्य समाज की बुनियाद सबल शिक्षा प्रणाली मानी जाती है। समय आ गया है कि शिक्षा के वैकल्पिक साधनों पर नए सिरे से विचार किया जाए और उन्हें पारंपरिक शिक्षा में समावेशी बनाया जाए। मुख्यधारा की शिक्षा से उलट होम बेस्ड, ओपन क्लास रूम और ई-लर्निंग कक्षाओं को वैकल्पिक रूप में इस्तेमाल कर ऐसे संकटकालीन हालातों से निपटा जा सकेगा।
