आईपैक्स भवन वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित 48वीं काव्य परम्परा संगोश्ठी.

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आईपैक्स भवन वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित 48वीं काव्य परम्परा संगोश्ठी देष के महान गीतकार कवि षैलेन्द्र को रविवार 7 दिसम्बर 2014 समर्पित की गई। देष के हिन्दी फिल्म जगत में अनेको ऐसे हिन्दी गीत कवि षैलेन्द्र ने लिखे जिन्हे आज भी लोग गुनगुनाते है। हिन्दी सिनेमा में लक्ष्मीकांन्त प्यारेलाल का संगीत, कवि षैलेन्द्र के गीत और राजकुमार का अभिनय की तिकड़ी ने फिल्म जगत में धूम मचाई।
मेरा जूता है जापानी, रमैय्या वास्ता वैया, सबकुछ सीखा हमने ने न सीखी होषियारी, दोस्त दोस्त ना रहा आदि अनेको गीतों के इस अनोखे गीतकार को परम्परा के संरक्षक सर्वश्री गोबिन्द व्यास जी ने अपने षब्दों में श्रंद्धाजंली अर्पित की तथा सभी उपस्थित श्रोताओं ने करतल ध्वनी से उनके प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया।
जयपुर से पधारे बनज कुमार बनज जी ने अपने श्रेश्ठ गीतों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। बनज जी का गीत गाने के अन्दाज अपने आप में निराला है और उनके इसी अन्दाज के कायल हुए सभी कवि प्रेमी। उनके गीतों की झलक कुछ इस प्रकार हैः-
मुझ पर चले न इस दुनिया का कोई जादू मंतर।
मैं मस्त कलंदर हां हां मैं मस्त कलदंर
अंदाज फकिराना मेरा मोला से याराना मेरा
मैं तो रमता जोगी ठहरा क्या आना क्या जाना मेरा
मैं पानी में भी हंसता हूं – हंसता हूं – आग अंदर।

जिस षहर की धूप उदास लगे और छाया तक में क्रंदन हो
उस षहर के सूरज का कैसे फिरे गीतों में अभिनन्दन हो

बढ़ते है जिस ओर भी, निगल रहें हैं गांव
कोई तो रोको ज़रा, इन षहरो के पांव

कानपुर से पधारे श्री विनोद दीक्षित जी जो धनाक्षरी छन्दों को लिखने वाले देष के चुनिन्दा कवियों में से एक है, उन्होने हर तरह के रंगों के अपने गीत व छनद प्रस्तुत किए। कवि प्रेमियों का उत्साह चरम पर था और तालियां रूकने का नाम नही ले रही थी। एक अजब सा संमा बंध गया था। उनके द्वारा प्रस्तुत कुछ छनद इस प्रकार है:-

पल में ही प्रलय औ श्रृश्ट्रि को मिटाने वाले,
भृश्ट्राचार जग से मिटाओ तब जानें हम।
पिया होगा विश हलाहल कभी माना मैं ने,
नल गंगा जल मुहं धारो तब जानें हम।।

सुदामा जी जब आज कृश्ण से मिलन जात
कृश्ण जी मिलन हेतु, मुंह बिचकाते हैं।
आदर स्वागत केरी बातें सभी भूल जात,
निज की महत्ता औ व्यस्तता दिखाते हैं।।

यत्र तत्र सर्वत्र औ सर्व कर्म धर्म धारी,
बहु आयामी गुणों की खान ब्रीफकेस है।

इस गोश्ठी के साथ ही ‘परम्परा’ ने अपने सफल 4 वर्श पूरे किए जिस पर प्रधान श्री सुरेष बिन्दल जी ने सभी श्रोताओं का अभिनन्दन किया तथा श्री प्रमोद अग्रवाल जी ने धन्यवाद के साथ ही परम्परा के पांचवे वर्श के आरम्भ में फिर नए कवियों के साथ इस कविगंगा की भाशा को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ गोश्ठी समाप्त हुई।

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