देश की एकता व अखंडता के लिए मुसलमान और दलित एकजुट हो जाएं: मौलाना अरशद मदनी

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देश की एकता व अखंडता के लिए मुसलमान और दलित एकजुट हो जाएं: मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली, देश की वर्तमान स्थिति विभाजन के समय से भी अधिक बदतर हैं। सरकार या सत्ताधारी पार्टी के विरोध को देशद्रोह करार दिया जा रहा है, पूरे देश में कानून की जगह ‘‘आस्था’’ की स्थापना और धर्मनिरपेक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने की कोशिशें जारी हैं। मुसलमानों, ईसाइयों, दलितों और कमजोर वर्गों पर अत्याचार, उत्पीड़न और हिंसा जारी है। कहीं आतंकवाद की आड़ में निर्दोष मुस्लिम युवकों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जा रहा है तो कहीं ‘मनुवादियों’ का मुकाबला करने वाले दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों को न केवल देश विरोधी करार दिया जा रहा है बल्कि उन्हें आत्महत्या तक करने पर मजबूर किया जा रहा है। हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत की खाई बढ़ती जा रही है और दोनों एक दूसरे से भयभीत नज़र आ रहे हैं। मुसलमानों को वोट के अधिकार से वंचित करने की साजिश की जा रही है और मुसलमानों और ईसाइयों की घर वापसी की बात हो रही है। अफसोस की बात तो यह है कि ‘‘सर्व धर्म सुखाए’’ की बात करने वाले भी अब हिंदू चरमपंथी संगठन आरएसएस से साठगांठ कर भाईचारा के पेड़ की जड़ में मट्ठा डाल रहे हैं। सरकार महत्वपूर्ण मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत की दीवार को ऊंचा करने में सक्रिय हैं और इस कोशिश में है कि कैसे मुसलमानों, अन्य अल्पसंख्यकों और दलितों को अलग कर दिया जाए।
हम न तो किसी विशेष पार्टी के समर्थक हैं और न ही विरोधी। हम देश की एकता और अखंडता में विश्वास रखते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि हम भाजपा का विरोध करते हैं, लेकिन हम केवल उस मानसिकता के विरोधी हैं जो देश की एकता और अखंडता की नींव हिलाने की साजिश में लगी है। देश में एक और विभाजन की स्थिति पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यह सरकार अच्छे दिन लाने के वादे करके सत्ता में आई लेकिन अब अपना पूरा ध्यान नागपुर पर केंद्रित कर दिया है और मंत्रियों को अपने कामकाज की रिपोर्ट पेश करने के लिए झंडेवालान जाना पड़ रहा है जो इस धर्मनिरपेक्ष देश के लिए विडंबना है। सत्ताधारी दल के कुछ लोग खुलेआम गौ-हत्या के नाम पर गंगा-जमुनी संस्कृति को नष्ट कर देना चाहते हैं और हिंदू और मुसलमानों के बीच की खाई को और गहरा किया जा रहा है। मुसलमान कभी भी गौ-हत्या का समर्थक नहीं रहा बल्कि हम तो कहते आए हैं कि आप गाय को ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित कर दीजिए, आखिर इस से आपको परहेज क्यों है? वास्तविकता तो यह है कि देश में मोदी सरकार के आने के बाद ‘बीफ ’ के व्यापार को बढ़ावा मिला है।
देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों को आतंकवाद के फजऱ्ी मामलों में फंसाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। आतंकवाद की आड़ लेकर इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करने का प्रयास जारी है और उलमा के साथ साथ उच्च शिक्षित निर्दोष मुस्लिम युवकों को फर्जी मामलों में फंसाया जा रहा है, ताकि उन्हें हतोत्साहित करके मुसलमानों में निराशा का वातावरण बनाया जा सके। वर्तमान सरकार सभी प्रमुख शैक्षिक संस्थानों का भगवाकरण करने में व्यस्त है और हाल ही में जे.एन.यू. में जो कुछ हुआ यह उसका उदाहरण है। वर्तमान सरकार देशभक्ति की नई परिभाषा करके उसे अपने अनुसार बनाने की कोशिश कर रही है। स्वतंत्रता के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि सरकार के विरोधियों को राष्ट्र-विरोधी करार दिया जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि हालात केवल मुसलमानों के लिए ही खराब हैं बल्कि दलितों की स्थिति भी जानवरों से बदतर है। सरकार में शामिल मंत्री ही दलितों की तुलना जानवरों से कर रहे हैं। कल तक जो लोग खुद को दलितों का मसीहा कहते थे और उनके वोटों से विजयी हुए थे आज आर.एस.एस. के वफादार बनकर न केवल सत्ता का आनंद ले रहे हैं बल्कि दलितों को बेसहारा छोड़ दिया गया है। इसलिये जमीअत ने दलित नेताओं से संपर्क स्थापित करके उनसे साथ आने की अपील की है और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने की घोषणा की है। हरियाणा में जाट आंदोलन के नाम पर हिंसा का नंगा नाच किया गया और 40 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति को नष्ट कर दिया गया, इसके बावजूद हरियाणा में ‘‘जंगल राज’’ नहीं है? क्या केवल इसलिये कि वहां भाजपा की सरकार है? अगर यही सब मुसलमानों या दलितों ने किया होता तो भी क्या हरियाणा सरकार और पुलिस का यही रवैया होता और अब तक हजारों लोगों को जेल की सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा दिया गया होता? अफसोस कि खुद को ‘‘प्रधान सेवक’’ कहने वाले मोदी जी मूकदर्शक हैं या यूं कहा जाए कि ऐसे सभी तत्वों को उनका आशीरवाद प्राप्त है?
जमीअत उलमा-ए-हिंद देश की इन परिस्थितियों पर बहुत चिंतित है और उसकी एकता, अखंडता, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, संविधान, सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण के लिए अपनी हर संभव सेवाएं प्रदान करने को तैयार है। इसी उद्देश्य के लिए 12 मार्च 2016 को इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में होने वाले ‘‘राष्ट्रीय एकता सम्मेलन’’ में सभी धर्मों और राजनीतिक दलों विशेषकर दलित नेताओं को आमंत्रित किया गया है ताकि एक साथ बैठ कर देश की वर्तमान स्थिति पर गंभीर विचारविमर्श करके देश की जनता के लिये एक संयुक्त घोषणा जारी किया जाए।

मौलाना सैयद अरशद मदनी

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