फर्जीवाड़े का मामला जा रहा कोर्ट, फंड मिलने में होगी और देरी

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स्काॅलरशीप फर्जीवाड़ा मामले में जिले के करीब 30 हजार स्टूडेंट बेवजह पीसे जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी और जिला प्रशासन के बीच इगो बीच में आ गया है और स्टूडेंट्स के भविष्य को नजर अंदाज किया जा रहा है। यह मामला अब कोर्ट पहुंचने वाला है। जिससे शासन से फंड मिलने में और भी देर होने की पूरी उम्मीद बढ़ गई है।
प्रदेश के सभी जनपदों में स्काॅलरशीप का फंड यूज कर लिया गया है। सिर्फ गौतमबुद्ध नगर में ही फंड को सरेंडर किया गया है। गाजियाबाद और बुलंदशहर में भी कमिशनर द्वारा फर्जीवाड़े की शिकायत की जांच कराई जा रही है, लेकिन यहां पर फंड को रोका नहीं गया है। सूत्रों का माने तो जिला प्रशासन और तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी के बीच किसी बात को लेकर इगो सामने आ गया है। इगो के चलते जिले के 30 हजार स्टूडेंट्स को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। सूत्रों की माने तो शासन से मिले फंड को जिला स्तरीय कमिटी ने स्वीकृत कर दिया था। यहां तक चीफ डिवेलपमेंट आॅफिसर आर.पी. मिश्र द्वारा भी फंड को यूज करने की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए गए थे। ऐन वक्त पर फर्जीवाड़े की शिकायत का आधार मानते हुए जिला प्रशासन ने फंड को सरेंडर कर दिया। जबकि इसके एक सप्ताह बाद समाज कल्याण अधिकारी को कार्यमुक्त कर दिया गया। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जांच बैठाने के तुरंत बाद समाज कल्याण विभाग का कमरा सील कर देना चाहिए था, लेकिन करीब 20 दिन बाद कमरे को सील किया गया। सूत्रों की माने तो जिला प्रशासन द्वारा फंड वापस किए जाने से शासन भी नाराज है और जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब की गई है। जिसके चलते प्रशासन द्वारा आनन फानन में समाज कल्याण अधिकारी और बाबू तारीक अहमद के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि एफआईआर कराने के आदेश का जांच कमिटी के दो सदस्यों ने विरोध किया था। लेकिन उनके विरोध को दबा दिया गया। चुनाव संपन्न हो गया है और उम्मीद है कि प्रशासन अगले सप्ताह तक शासन को स्थिति स्पष्ट करेगा। वहीं, समाज कल्याण अधिकारी कोर्ट की शरण में जाने वाले हैं। कृष्णा प्रसाद का कहना है कि उनके पास अपने बचने का कोई दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा है। लिहाजा वह कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखना चाहेंगे।

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