‘राष्ट्र पुनर्निर्माण’ कार्यक्रम में डॉक्टर प्रो. आर.के खांडल और उत्तर प्रदेश के युवा एडुप्रेनरस ने उच्च शिक्षा क्षेत्र के चुनौतियाँ पर किया मंथन

ROHIT SHARMA

ग्रेटर नोएडा : राष्ट्र पुननिर्माण को लेकर देश में इस मुद्दे पर जोर-शोर से चर्चाएं शुरू हो गई हैं। वही रविवार को टेन न्यूज पर उत्तर प्रदेश टेयुनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति एवं पर्यावरणविद प्रो. डाॅ. आर.के खांडल ने ‘राष्ट्र पुनर्निर्माण की बात’ सप्ताहिक कार्यक्रम की शुरुआत की।

इस कार्यक्रम में सुंदर दीप ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन के उपाध्यक्ष अखिल अग्रवाल, एचआरआईटी यूनिवर्सिटी के प्रो चांसलर अंजुल अग्रवाल, सिल्वरलाइन प्रेस्टीज स्कूल के निदेशक नमन जैन, हाई टेक इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के उपाध्यक्ष डॉ विहंग गर्ग, केसीएमटी के कार्यकारणी निदेशक डॉ विनय खंडेलवाल शामिल रहे । आपको बता दे की इन पैनलों से प्रोफेसर डॉक्टर आर.के खांडल ने बेहतरीन तरीके से प्रश्न पूछे। उन्होंने टेन न्यूज के दर्शकों के सवालों को भी पैनलिस्ट के सामने रखा। कार्यक्रम में चर्चा का मुख्य विषय “देश में कैसी शिक्षा होनी चाहिए , साथ ही शिक्षा नीति में क्या क्या होना चाहिए”  रहा।

कार्यक्रम की शुरुआत में उत्तर प्रदेश टेक्निकल युनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति एवं पर्यावरणविद प्रो. डाॅ. आर.के खांडल ने कहा कि मैं जब देखता हूं 50 साल पहले शिक्षा किस प्रकार थी और अब शिक्षा किस प्रकार दी जा रही है, उसके बारे में बोलना, साथ ही समझना बहुत जरूरी है | 50 साल पहले गांव में हम पढ़ते थे, तो उस समय प्राइमरी स्कूल थे, स्कूल बनाने के लिए गांव वालों को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी, जिले का सांसद हुआ करता था, उसके कोटे में सिर्फ एक या दो स्कूल हुआ करते थे, जिनको वह प्राइमरी से मिडिल स्कूल में कन्वर्ट करते थे और मिडिल से हाई स्कूल में कन्वर्ट करते थे |

25 और 30 साल तक यह स्थिति थी कि गांव से यूपी, बिहार, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश के स्टूडेंट्स यदि इंजीनियरिंग करना चाहते थे, तो दूर-दूर प्रदेशों में जाते थे या तो वह महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जाते थे | उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में बहुत सारे इंस्टिट्यूट थे, छोटे बच्चे अपने गांव, शहर, अपने जन्म स्थान छोड़कर दूर पढ़ने जाते थे, बहुत कठिनाइयां होती थी, साथ ही मां बाप को चिंता भी रहती थी |

पिछले 30 सालों में इंस्टिट्यूशन की दशा अब बदली है | एक स्थिति आज ऐसी आ गई है आईआईटी और एनआईआईटी के इंस्टिट्यूट पांच परसेंट से अधिक नहीं है , जिसमें बच्चे पढ़ कर इंजीनियर निकलते हैं | कहने का अर्थ यह है आईआईटी से 5% और बाकी 95% स्थानों से बच्चे पढ़ कर निकलते हैं उस 95% की बात करें तो 20% स्टेट गवर्नमेंट के अधीन होते हैं |  जिसके बाद देखा जाए 70% से लेकर 75% प्राइवेट सेक्टर के हाथ में है जिसमें हायर एजुकेशन बच्चों को दी जा रही है |

उसका पहला लाभ यह है गवर्मेंट को कोई टेंशन नहीं क्योंकि इतना इन्वेस्टमेंट करना नहीं पड़ता, एक इंस्टिट्यूशन लगाने में हज़ारों करोड़ रुपए खर्च करने होते है | आप देख ही रहे हैं जब एक आईआईटी संस्था लगाने में गवर्नमेंट को कितना करोड़ों रुपए का इन्वेस्टमेंट करना पड़ता है |  बहुत से Edupreneurs आए और उन्होंने बहुत सही छोटे-छोटे संस्थान बनाए,  जिसके बाद बच्चों को उच्च शिक्षा मिलनी शुरू हो गई |

अब ऐसा समय आ गया है कि आप प्राइवेट संस्थानों को हीन दृष्टि से देखा जा रहा है | एडुप्रेन्योर को ठीक से ट्रीट नहीं किया जा रहा है | हमारी समाज में जो ऑर्गेनाइजेशन उनको अप्रूव कर के इंस्ट्यूशन लगाने की परमिशन देती है, गवर्नमेंट की वही अधिकारी उनके ऊपर कटाक्ष करने में लगे रहते है , प्रयास यह रहते हैं कि उन को जितना नीचे दिखाया जा सकता है उन को नीचा दिखाया जाए |  मेरे हृदय को ठेस पहुंचती है ठेस इसलिए पहुंचती है क्योंकि मैं ग्रामीण परिधान से आता हूं और मैंने देखा है कि शिक्षा पाना कितना कठिन है |

सुंदर दीप ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन के उपाध्यक्ष अखिल अग्रवाल ने बताया शिक्षा बढ़ाने के लिए एडुपरेनर्स का अहम रोल है । साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षा को बेहतर करने के लिए सरकार का भी अहम रोल है । उन्होंने कहा कि एक इंजीनियर बनने के लिए 50 लाख रुपये खर्च होते थे , लेकिन हमारे जैसे इंस्टीट्यूट में 5 से 6 लाख में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर सकते है। साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले 30 सालों के बाद अब शिक्षा बेहतर हो चुकी है। छात्र जब हमारे इंस्टीट्यूट से पढ़ाई करके अच्छी नोकरी प्राप्त करता है तो हमारे इंस्टिट्यूट का नाम रोशन होता है, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है। आज के समय बच्चों को हायर एजुकेशन मिल रही है ।

केसीएमटी के कार्यकारणी निदेशक डॉ विनय खण्डेलवाल ने कहा कि उच्च शिक्षा को लेकर काम किया जा रहा है, साथ ही इस मामले में बेहतर काम किया गया । वही आज के समय मे बहुत सी ऐसी संस्थाए है जो कहती है कि बैक डेट की डिग्री बनवाए, जो युवाओं के लिए बहुत खतरा है , जिसपर सरकार को कदम उठाना चाहिए , जिससे इस मामले में युवा न फस सके । विनियमन (रेगुलेशन) की कमी होने के कारण निजी क्षेत्र के कुछ स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फीस अधिक होने के कारण अनेक विद्यार्थियों की पहुंच उन तक नहीं हो पाती।

दूसरी तरफ कुछ का यह मानना है कि उच्च शिक्षा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इस क्षेत्र में निवेश और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है। भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी है।अच्छे शिक्षण संस्थानों की कमी की वजह से अच्छे कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए कट ऑफ़ प्रतिशत असामान्य हद तक बढ़ जाता है. इस साल श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स के बी कॉम ऑनर्स कोर्स में दाखिला लेने के लिए कट ऑफ़ 99 फ़ीसदी था ।

हाई टेक इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के उपाध्यक्ष डॉ विहंग गर्ग ने कहा हम लोगों की जो एजुकेशनल प्रणाली है इसमें कोई व्यक्ति एक कमरे से चालू करें उस कमरे को बना बना कर यूनिवर्सिटी बना दे | चाहे उसकी कितनी भी ग्रोथ हो जाए, कभी भी हम इंडस्ट्री से कंपेयर करके, यह नहीं कह सकते कि आज वो व्यक्ति बहुत बड़ा अमीर बन गया है , क्योंकि जो भी उसने डिवेलप किया है, वह आज भी समाज के लिए सेवा में लगा हुआ है | चाहे वो इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलोप या इंस्टीटूशन्स की ग्रोथ हो।

आज इस महामारी में संस्थाओं का बुरा हाल है । बच्चे घर से वापस नही आ रहे है , साथ ही ऑनलाइन पढ़ाई में हिस्सा नही ले रहे है । आज टीचर को तनख्वाह चाहिए , लेकिन बच्चों की फीस नही आ रही है । आज के समय मे सरकारों को संस्थान का साथ देना चाहिए ।

एचआरआईटी यूनिवर्सिटी के प्रो चांसलर अंजुल अग्रवाल ने कहा कि प्राइवेट संस्थाए इस महामारी में भी बच्चों को शिक्षा देने के लिए ऑनलाइन क्लासेज चलाई जा रही है । इस समय केंद्र सरकार और राज्य सरकार प्राइवेट संस्था का साथ दे । जिससे वो इस महामारी में उभर सके, जिससे बच्चों की पढ़ाई न रुक सके । असली शिक्षक वही है जो पुरे जीवन विद्यार्थी बना रहता है |असली शिक्षण संस्थान वाही है जो सतत सीखने और सिखाने की प्रक्रिया से जुडी रहती है | ज्यादातर शिक्षण संस्थाएं सिर्फ शिक्षा प्रदान करना ही अपना कार्य समझती है जबकि उससे भी ज्यादा जरुरी है सीखने की प्रक्रिया पर जोर देना | सीखा वही सकता है जो खुद सीखने और अपनाने की प्रक्रिया से जुड़ा हो |

सिल्वरलाइन प्रेस्टीज स्कूल के निदेशक नमन जैन ने कहा कि इस महामारी में शिक्षक बहुत मेहनत कर रहे है , महामारी के संक्रमण के डर से शिक्षण संस्थानों पर पिछले करीब चार महीने से ताले लगे हैं। ऐसे माहौल में बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो इसलिए ऑनलाइन एजुकेशन बेहतर विकल्प है। इस विकल्प ने शिक्षकों व विद्यार्थियों को तकनीक से भी रूबरू कराने का काम किया है। इससे व्यक्ति के निजी जीवन में भी बदलाव आया है। महामारी का दौर आए यह किसी ने सोचा नहीं था। शिक्षकों व विद्यार्थियों के लिए कोरोना एक चुनौती बन कर आया है। इसलिए ऑनलाइन एजुकेश का फैसला लिया। संसाधन कम हैं, मगर बेहतर प्रयास किए जा रहे हैं। मोबाइल के अलावा एजुसेट, टीवी प्रोग्राम, फ्री चैनल के जरिये बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। ऑनलाइन एजुकेशन क्लास रूम का विकल्प नहीं है, लेकिन कोरोनाकाल में सहारा बना है।

 


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