प्रेम की परछाई है क्षमा: प्रोफ़ेसर पी.के.आर्य.

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मनुष्य भूल सकता है। वह माफ़ कर सकता है। वह देता है और स्मरण नहीं रखता। मनुष्य ही हैं जो इन समस्त मनोभावों को उत्पन्न करने का कारण भी बनता है। एक बहुत पुरानी कहावत है जो चीज़ जहाँ खोयी है, वह आपको वहीँ पर मिलेगी भी ! जो व्यक्ति आज संताप का, दुःख का, परेशानी का कारण दिखाई देता है ,उसी के व्यवहार से प्रेम और अपनत्व की झलक भी दिखाई देगी।

जीवन की पूर्णता देने में है। जो देता है वही पाने का भी असली आनंद भोग सकता है। पाने और देने के मध्य परस्पर कार्य और कारण का सम्बन्ध है।समर्पण और स्नेह की चिकनाई से प्रदीप्त दीपक सदैव जगमगाते हैं।झुकने और समझने का भाव प्रेम की अग्नि में घृत का काम करता है। आप जब झुकते हैं, तभी औरों को भी उनकी पूर्णता का बोध होता है –

जो अहले जर्फ़ हैं वे सभी से झुककर  मिलते हैं,

सुराही सर के बल झुकती है तो भरता है पैमाना।

हमारे दैनिक जीवन में ऐसे अनेक पल आते हैं जब हमें ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता है, जो हमें कतई पसंद नहीं। लेकिन हमारी पसंद से ही तो यह दुनिया नहीं चलती ,हमें इस सच्चाई को भी स्वीकारना चाहिए। ज़्यादा झंझट तब होती है जब हम किसी के कहे गए अप्रिय शब्द लम्बे समय तक भूल नहीं पाते। यह मानसिक स्थिति एक रोग से कम नहीं। भगवान बुद्ध कहते थे जब आप किसी के साथ बैर में होते हैं तब कभी भी अपने साथ नहीं हो सकते।’ बैर एक ऐसी आग है जिसमें जलने की वज़ह आप खुद होते हैं।

बैर की अधिकांश वजहें यही होती हैं कि हम दूसरों को अपने मुताबिक चलाना चाहते हैं। हम औरों पर थानेदारी करना चाहते हैं। जबकि मानव का मौलिक स्वभाव स्वतंत्रता है। जैसे ही हमें अपनी स्वतंत्रता पर खतरा मंडराता हुआ दिखाई देता है, हम और भी अधिक प्रतिक्रियात्मक होते जाते हैं इससे समस्या सुलझने के बजाय और भी अधिक उलझती है। हर घर इसी प्रतियोगिता का मैदान बन गया है।  कोई किसी को उसके वास्तविक स्वरुप में स्वीकारना नहीं चाहता। यहाँ वास्तविक स्वरुप से तात्पर्य बेहूदगी से नहीं है। जीवन व्यवहार की कुछ सीमाएं और वर्तुल हैं जो हमें निश्चित ही समझने चाहिए ,लेकिन थोड़ा सा बड़ा दिल रखने की ज़रूरत है।

समाज में यदि सभी साधु हो जायेंगे तो उपदेश किसे देंगे और यदि सभी चोर होंगे तो चोरी किसके यहाँ होगी ? काले बोर्ड पर ही श्वेत अक्षर चमचमाते हैं। आप अपनी मौलिकता में रहें सभी के प्रति सकारात्मक रहें थोड़ा वक़्त लगेगा लोग आप को समझेंगे और फिर विरोध की लपटें अपनी तपिश खोने को बाध्य होंगी।

जब भिखारी घर से बाहर निकलता है तो कुछ सिक्के अपने कटोरे में डालकर चलता है। उनकी खनखनाहट सुनकर ही बाकि लोग भीख देते हैं। अगर भिखारी का कटोरा खाली होगा तो वो शाम को खाली ही घर वापस आएगा।आप जो पाना चाहते हैं उसे थोड़ी मात्रा में अपने साथ लेकर तो चलिए आपकी झोली भरी ही लौटेगी।

हम सब पाना चाहते हैं देना कोई भी नहीं चाहता ;फिर भला बात बनेगी कैसे ? एक को दाता बनना ही पड़ेगा। सभी सभी से मांगेंगे तो मांग पूरी कैसे होगी ? जिन्हें हम सर्वाधिक पसंद करते हैं उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि हम उनके बारे में वास्तव में सोचते क्या हैं ? महंगे और कीमती उपहार ही प्रेम का प्रतीक नहीं हैं। कईं बार तो हम ऐसी चीज़ें भी देने में कंजूसी करते हैं जिनका कोई मोल ही नहीं है। माफ़ी भी एक ऐसा ही भाव है, जो आप को असमंजस के भवसागर से पार उतारता है।अपने दिल को साफ़ कीजिये सभी को माफ़ कीजिये। दरअसल हम सभी यह सोचकर चलते हैं कि हम अनंत काल तक जिन्दा रहेंगे। उम्मीद दो घडी की नहीं, अरमान उम्र भर के ! यदि हमें वाकई ये पता चल जाये कि हम एक सप्ताह बाद इस दुनिया में नहीं रहेंगे ,तो क्या अभी सभी से जाकर क्षमा नहीं मांग लेंगे ? क्या हम अपने दिलों पर अपने ग़म -गुबारों का बोझ लेकर इस धरती से विदा होना चाहेंगे ? शायद नहीं। निश्चित ही नहीं। फिर फर्क क्या है ? फर्क है क्वांटिटी का क्वालिटी का तो कोई फर्क नहीं ! एक हफ्ते न सही कुछ हज़ार हफ्ते , जाना तो है ही,फिर ये बोझ की गठरी ढोकर रोज़ -रोज़ मरने की क्या कोई तुक है ?

एक सूफी फ़कीर बायजीद रोज खुदा से प्रार्थना करता कि हे अल्लाह मेरे पड़ौसी को उठा ले। वह धरती पर बोझ है। उससे बुरा कोई इंसान है ही नहीं ! कहानी कहती है कि रोज़ -रोज़ की शिकायतों को सुन-सुनकर खुदा के कान पक गए;  एक रोज़ खुदा ने अपनी अटारी से झांककर बायजीद की परेशानी की वज़ह जाननी चाही ? बायजीद ने कहा मैं अपने पड़ौसी से तंग आ गया हूँ। जब से ये यहाँ आया है जीना मुश्किल हो गया है। खुदा ने पूछा की ये पड़ौसी तुम्हारे पास कितने साल से रह रहा है। बायजीद ने कहा कोई दो साल से। खुदा ने कहा मैं तो इसके साथ पिछले पैंसठ साल से हूँ जब मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई तो भला तुम्हें क्या तकलीफ हो सकती है। बायजीद के पड़ौसी की उम्र 65 साल थी। बायजीद को अपनी सोच पर अफ़सोस हुआ और उसने अपनी मांग के लिए खुदा से माफ़ी मांगी। जिसे हमारी सोच स्वार्थी और बुरा मानकर चलती है समूचा अस्तित्व उसे मित्र की तरह देखता है। यदि कोई इंसान वास्तव में बुरा है तो उसका सबसे पहला पता भी परमात्मा को ही चलता है और उसका सबसे पहले इंतज़ाम भी परमात्मा ही करता है।

नियति के प्रबंधन में टांग न अड़ाए। यदि कोई इंसान बहुत अच्छा है और आप भी उसके साथ अच्छे हैं तो इसमें आपकी कोई भी विशेषता नहीं। यह तो उसका गुण है, जो आप उसका सम्मान कर रहे हैं। जब कोई व्यक्ति आपकी सोच के प्रतिकूल सोचे और आपकी अपेक्षा के विपरीत व्यवहार करे; तब जो आप करेंगे वास्तव में आप वहीँ हैं। खून को खून से नहीं धोया जा सकता।गाली का ज़वाब गाली नहीं है।  प्रेम की सुरभि में निंदा और घृणा के पुष्प मुरझा जाते हैं। बुरा खत्म करने का एक ही उपाय है आप अच्छे रहें।

 

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