“A state without a budget” by Minister of Finance, Information & Broadcasting and Corporate Affairs, Shri Arun Jaitley

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है। संविधान की धारा 356 तब लागू की जाती है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो जाएं कि किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं किया जा सकता और यह विश्वास करने के पर्याप्त आधार हैं।

उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी के एक गुट ने कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व और मुख्यमंत्री दोनों से असंतुष्ट होने का आरोप लगाया जिसके बाद राज्य में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया। कांग्रेस पार्टी में विभाजन की वजह आंतरिक थीं। कांग्रेस पार्टी के नौ सदस्यों ने विधान सभा में विनियोग विधेयक, जो कि राज्य के बजट के लिए जरूरी था, के विरुद्ध मत देने का फैसला किया।  18 मार्च 2016 को 35 सदस्यों ने विनियोग विधेयक के विरुद्ध तथा 32 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया। इन 35 सदस्यों में 27 भाजपा के तथा 9 कांग्रेस पार्टी के बागी गुट के सदस्य थे। इस बात के दस्तावेजी साक्ष्य हैं कि इन 35 सदस्यों ने विधान सभा सत्र से पहले और उस समय मतविभाजन की मांग की थी। विधान सभा की लिखित कार्यवाही से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि सदस्यों ने मतविभाजन की मांग की थी लेकिन इसके बावजूद विनियोग विधेयक मतदान के बगैर पारित होने का दावा किया जा रहा है।

इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि विनियोग विधेयक वास्तव में मत विभाजन में गिर गया था। इसके परिणाम स्वरूप सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा। इस घटनाक्रम के दो परिणाम और हैं। पहला, एक अप्रैल 2016 से व्यय की मंजूरी देने वाले विनियोग विधेयक को मंजूरी नहीं मिली थी। दूसरा, अगर विनियोग विधेयक पारित नहीं हुआ था तो 18 मार्च 2016 के बाद सरकार का सत्ता में बने रहना असंवैधानिक है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आज की तारीख तक न तो मुख्यमंत्री और न ही विधान सभा अध्यक्ष ने विनियोग विधियेक की प्रमाणित प्रति राज्यपाल के पास भेजी है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि विनियोग विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है।

इस तरह विनियोग विधेयक पर कथित चर्चा और उसके पारित होने संबंधी सभी तथ्य साफ तौर पर इसके पारित न होने की ओर इशारा करते हैं। विनियोग विधेयक के बारे में गंभीर आशंका है। विनियोग विधेयक पारित न होने पर सरकार को 18 मार्च को ही इस्तीफा दे देना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया है, इसके परिणामस्वरूप राज्य में पूरी तरह संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। आज की तारीख में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा  प्रमाणित और राज्यपाल की मंजूरीप्राप्त विनियोग विधेयक नहीं है। अगर विधानसभा अध्यक्ष की बात को सही मानें कि बागी विधायकों ने विनियोग विधेयक के पक्ष में मतदान किया इसलिए यह पारित हो गया है तब बागी विधायकों को अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता।

विनियोग विधेयक पारित न होने पर इस्तीफा नहीं देकर सत्ता में बने रहकर राज्य को गंभीर संवैधानिक संकट में धकेलने के बाद मुख्यमंत्री ने सदन में संख्याबल को प्रभावित करने के लिए विधायकों को प्रलोभन, खरीद फरोख्त और अयोग्य करार घोषित कराने की कवायद शुरु कर दी। विधान सभा को निलंबित करने का फैसला सार्वजनिक होने के बावजूद विधान सभा अध्यक्ष ने कुछ सदस्यों को निलंबित कर दिया है। इस तरह इस कार्रवाई के बाद संवैधानिक संकट और बढ़ गया है।

18 मार्च को बहुमत को अल्पमत में बदल दिया गया और 27 मार्च को संविधान का उल्लंघन कर एक अल्पमत की सरकार को बहुमत की बनाने के लिए सदन में संख्याबल को बदलने का प्रयास किया गया। एक विधान सभा अध्यक्ष द्वारा असफल विनियोग विधेयक को पारित घोषित करने और उसके बाद उसकी वैधानिकता को साबित करने में विफल रहने का यह अभूतपूर्व उदाहरण है। इस घटनाक्रम के बाद राज्य में एक अप्रैल 2016 से खर्च करने के लिए विधान सभा से पारित कोई बजट नहीं है। संवैधानिक संकट का इससे बेहतर सबूत क्या हो सकता है? उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार 18 मार्च से 27 मार्च के दौरान हर दिन लोकतंत्र की हत्या कर रही थी। अब केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि संविधान के अनुच्छेद 357 के तहत कदम उठाकर राज्य के लिए एक अप्रैल 2016 से राज्य में व्यय की मंजूरी सुनिश्चित की जाए।

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