ब्रेकथ्रू इंडिया का पैन-एशिया शिखर सम्मेलन शुरू, पहले दिन लिंग आधारित हिंसा को खत्म करने की जरूरत पर दिया गया जोर
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली 2 मार्च, 2022: ब्रेकथ्रू इंडिया का पैन-एशिया शिखर सम्मेलन ‘रिफ्रेम’ आज से शुरू हो गया, जिसमें अगले तीन दिनों तक इस बात पर गहन चर्चा होगी कि अगले 10 सालों में लिंग-आधारित हिंसा को कैसे खत्म किया जा सकता है। पैन-एशिया शिखर सम्मेलन ‘रिफ्रेम’ एक ऐसे भविष्य पर चर्चा के लिए विभिन्न गैर-लाभकारी संस्थाओं, उद्योग विशेषज्ञों, विचारकों और मीडिया को एक मंच पर लाया है जिसमें लिंग आधारित हिंसा के लिए कोई जगह न हो। शिखर सम्मेलन का उद्देश्य लिंग आधारित हिंसा और लिंग आधारित भेदभाव (जीडीबी) की रोकथाम और उसके खात्मे की राह पर आगे बढ़ने के लिए ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों को विकसित करना है जिन पर पुख्ता ढंग से जोर दिया जा सके।
‘ब्रेकथ्रू’ पिछले दो दशकों से देशभर में पितृसत्तामक मानदंडों और सोच में बदलाव लाने पर ध्यान केंद्रित कर महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा व भेदभाव को रोकने की दिशा में काम कर रहा है। संस्था ऐसे युवाओं में नेतृत्व क्षमता के विकास पर ध्यान देता है जो हिंसा को बर्दाश्त न करने के लिए खुद को तो बदलें ही साथ ही दूसरों को भी इसकी प्रेरणा देकर समाज में बदलाव के वाहक बन सकें।
कार्यक्रम के दौरान अपने स्वागत भाषण में सोहिनी भट्टाचार्य ने कहा, ‘इस क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन का उद्देश्य एशिया के संदर्भ में भविष्य के एजेंडे का सह-निर्माण करना, प्राथमिकताएं तय करना और लिंग आधारित हिंसा व भेदभाव की रोकथाम तथा इस दिशा में हुई प्रगति का आकलन करने के लिए रणनीतियां साझा करना है। 2020 में जेनरेशन इक्वैलिटी फोरम के लॉन्च के साथ हमें मिले अवसरों का लाभ उठाते हुए खासकर एशिया के लिए लिंग आधारित हिंसा पर एक साझा एजेंडा आगे बढ़ाना दो कारणों से महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय स्तर का समर्थन जहां सतत विकास लक्ष्य-5 से जुड़ी राष्ट्रीय स्तर की प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग और भागीदारी विभिन्न प्रयासों और संसाधनों को एक साथ लाने में बड़ी भूमिका निभाती है।इसके अलावा, इससे विविधताओं से भरे इस क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ लैंगिक हिंसा के मुद्दे से तत्काल निपटने के लिए एक बहु-क्षेत्रीय प्रतिक्रिया की शुरुआत होती है और इस दिशा में अमल के प्रयासों को भी मजबूती मिलती है।’
हिंसा में वृद्धि ने उन लोगों को असंगत रूप से प्रभावित किया है जिनके पहले से ही जीबीवी का सामना करने की सबसे अधिक संभावना है—जो लिंग, जाति, वर्ग, क्षमता, सेक्सुअल ओरिएंटेशन और अन्य विशेषताओं के आधार पर दरकिनार किए जाने और अन्य तरीकों से उत्पीड़न का सामना करते हैं।खासकर किशोरियों को कई तरह के मुद्दों का सामना करना पड़ा है, जो उनके लिए जीवन भर जीबीवी का सामना करने का जोखिम बढ़ा देते हैं, इसमें स्कूल से निकाला जाना, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और सेवाओं तक पहुंच मुहैया न कराना और जल्द शादी पर मजबूर किया जाना शामिल है, जो सभी बाद में जीबीवी का जोखिम बनने वाले फैक्टर हैं। 2030 तक दस मिलियन और लड़कियों के बालिका वधू बनने का खतरा है।
कॉमन लैंग्वेज और चाइनीज लाला एलायंस से जुड़े एलजीबीटीआई एक्टिविस्ट वांग्शु लियान ने कहा, ‘लिंग आधारित हिंसा की रोकथाम के लिए एजेंसी निर्माण और नेतृत्व विकास दो महत्वपूर्ण घटक हैं. हाशिए पर पड़े समुदायों की मदद करने वाले नारीवादी नागरिक सामाजिक संगठनों को लिंग आधारित हिंसा से निपटने के लिए तकनीकी जानकारियों के साथ-साथ एजेंसी के जरिये सशक्त बनाया जाना चाहिए।यही नहीं, सामाजिक बदलाव के लिए इन संस्थाओं को फंडिंग की प्राथमिकताएं तय करने की भी जरूरत है.’
सुश्री भट्टाचार्य ने आगे कहा, ‘महामारी के दौरान पिछले दो वर्षों के अनुभवों ने लंबे समय से जारी लैंगिक भेदभाव को और ज्यादा बढ़ा दिया है,लेकिन मुझे लगता है कि यह माना जाने लगा है कि लिंग आधारित हिंसा भी एक महामारी है—भले ही वे इसे छद्म महामारी के तौर पर संदर्भित करते रहते हैं,यह तो स्पष्ट है कि कोविड-19 ने महिलाओं, लड़कियों और एलबीटीक्यू-प्लस समुदाय के हिंसा और दुर्व्यवहार की चपेट में आने की संभावनाओं को और बढ़ा दिया है. हिंसा की ये घटनाएं शारीरिक उत्पीड़न से आगे निकलकर साइबरस्टॉकिंग, बुलिंग और सेक्सुअल हैरेसमेंट के रूप में ऑनलाइन स्पेस तक पहुंच गई हैं. समान रूप से, लगता है कि महिलाओं, लड़कियों और ट्रांसजेंडर लोगों को जिस जीबीवी का सामना करना पड़ रहा है, वह निरंतर और अधिक गंभीर है, यह शायद लॉकडाउन की तीव्रता और दुर्व्यवहार से बचने में मुश्किलों को दर्शाता है।’
एशिया और प्रशांत में संयुक्त राष्ट्र महिला क्षेत्रीय कार्यालय की उपक्षेत्रीय निदेशक सारा निब्स ने अपने संबोधन के दौरान कहा, ‘लैंगिक समानता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने और हर किसी को इसका लाभ सुनिश्चत करने के लिए हमें निश्चित तौर पर साहसिक कदम उठाने पड़ेंगे।डेटा बताता है कि विश्व स्तर पर हर तीन में से एक महिला हिंसा का अनुभव करती है। लिंग आधारित हिंसा के मामले रोकने में सबसे अच्छा तरीका यही है कि इसके मूल और संरचनात्मक कारणों पर ध्यान देकर इसकी रोकथाम की जाए. लिंग आधारित हिंसा के उन्मूलन में युवाओं को साथ लेकर लैंगिक समानता की दिशा में निरंतर आगे बढ़ना सबसे अच्छा मार्ग है।’
40 से अधिक वर्षों में 70 देशों में ऑक्सफैम इंटरनेशनल के विश्लेषण में पाया गया है कि नीति परिवर्तन की दिशा में सबसे अहम और उपयुक्त फैक्टर नारीवादी सक्रियता ही रही है। नारीवादी आंदोलनों और संगठनों ने जीबीवी पर हमारा सोचने का तरीका बदल दिया है, इस मुद्दे पर ध्यान आकृष्ट किया है और विश्वस्तर पर मंथन को तेज किया किया है, साथ ही इसके मूल कारणों को समझने और इसकी रोकथाम में अहम साबित होने वाले उपायों के बारे हमारी समझ को बढ़ाया है।इस तरह के आयोजन को दुनियाभर के सत्तावादी शासनों और नियम-कायदों का जबरदस्त दबाव झेलना पड़ रहा है।’
मुसावा की सह-निदेशक जरीन जफरेल ने कहा, ‘लिंग आधारित हिंसा की रोकथाम के लिए एक संरचनात्मक आंदोलन चलाना बेहद महत्वपूर्ण है। लैंगिक समानता वाले समाज के निर्माण के लिए हर स्तर पर जीबीवी से निपटना जरूरी है।अरब जगत में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए समतामूलक कानून और अनुकूल पारिवारिक परिस्थितियां महत्वपूर्ण साबित हुई हैं।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के क्षेत्रीय अनुमानों के मुताबिक, अंतरंग साथी की हिंसा (आईपीवी) की दर दुनिया में सबसे ज्यादा दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों में है, जहां यह आंकड़ा क्रमशः 43 प्रतिशत और 33 प्रतिशत है. जैसा जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है, चार दक्षिण एशियाई देश (व्यापकता के क्रम में बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान और नेपाल) उन शीर्ष 15 देशों में शामिल हैं, जहां अंतरंग साथी की तरफ से शारीरिक हिंसा का आंकड़ा राष्ट्रीय स्तर पर उच्चतम है. इस संदर्भ में यह शिखर सम्मेलन खास मायने रखता है और इसके जरिये लैंगिक-समानता वाले समाज का रास्ता खुलेगा.
मीरा देवी, ब्यूरो चीफ, खबर लहरिया-चंबल मीडिया ने कहा, ‘महिलाओं और हाशिए वाले समुदायों की आवाज सरकार तक पहुंचनी चाहिए. भले ही हमेशा न हो लेकिन अक्सर ही उनकी आवाजें अनसुनी रह जाती हैं और उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पाती है।उनकी आवाज सुनना उन्हें सशक्त बनाने का एक तरीका है और इससे हमें लिंग आधारित हिंसा पर काबू पाने में काफी मदद मिलेगी।
ब्रेकथ्रू के बारे में–
ब्रेकथ्रू महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की अस्वीकार्य बनाने की दिशा में काम करता है. हम किशोरों और युवाओं, उनके परिवारों और उनके समुदायों के साथ मिलकर काम करने के अलावा मीडिया अभियानों, लोकप्रिय कला और संस्कृतियों का उपयोग करके अपने आसपास एक समानता वाला माहौल तैयार करने के लिए लैंगिक मानदंडों को बदलने में जुटे हैं.