पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने कृषि अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी पर साधा निशाना , लगाए गंभीर आरोप 

ROHIT SHARMA / VISHAL

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नई दिल्ली :– कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चह्वाण ने बीजेपी पर निशाना साधा | उन्होंने आज प्रेस वार्ता करते हुए कहा कि भाजपा सरकार लगातार गोलपोस्ट बदल रही है , कभी 2022 की बात करती है, कभी 2024 की। 5 साल में जो वादे भाजपा ने किए थे, उनको पूरा न कर पाने के कारण दुष्प्रचार के जरिए लोगों को भ्रमित करने की कोशिश प्रधानमंत्री मोदी सहित पूरी मशीनरी द्वारा हो रही है |

भाजपा सरकार का सबसे बड़ा वादा था- 2022 तक किसान की आमदनी दुगुनी करने का , उस घोषणा को चार साल हो गए हैं, मात्र 2 साल बचे हैं। अब जनता इसका सच जानना चाहती है |

हमारा आरोप है कि किसानों की दुगुनी आय भी एक चुनावी जुमला साबित हुआ है। दूर-दूर तक इसकी संभावना नहीं है कि तय वर्ष तक किसानों की आय दुगुनी हो सके, भाजपा सरकार ने किसानों को उनकी फसल की लागत खर्च पर 50% मूल्य देने का भी वादा किया था , ये सरकार लागत खर्च की गणना में ही हेराफेरी कर रही है। ऐसे में उस पर 50% रकम कम है। इसके बारे में स्पष्टता से जानकारी देना जरूरी है |

साथ ही उन्होंने कहा की कृषि अर्थव्यवस्था की बात की जाए तो किसान बेहाल है , आत्महत्याओं का दौर नहीं थम रहा है , आँकड़े छिपाए जा रहे हैं | हम उम्मीद करते हैं कि भाजपा सरकार आगामी बजट में किसानों को राहत प्रदान करे , आत्महत्याओं का दौर थमे; प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई हो |

पृथ्वीराज चह्वाण ने आरोप लगाया है की भाजपा सरकार ने पिछले बजट में कृषि में बड़े निवेश की बात कही थी। 10,000 नए फार्मर प्रोडूसर आर्गेनाइजेशन बनाने की बात की। इसमें कितने बने हैं, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। E-NAM की बात कही थी, EMIF के लिए ₹2000 करोड़ की घोषणा की थी, मात्र ₹10 करोड़ खर्च किया है |

देश में 22 हजार E-NAM प्रस्तावित थे, मात्र 376 मार्किट बने हैं। जिनका भी कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। हमें उम्मीद है कि वित्तमंत्री अपने बजट में इसके बारे में देश को जानकारी देंगी | न्यूनतम समर्थन मूल्य का मामला किसानों के लिए बड़ी समस्या है। वर्तमान खरीफ सीजन में फसलों की एमएसपी 8%-37% यानी औसतन लगभग 22.5% ही बढ़ा है।

तुअर, मूंग, उड़द, सोयाबीन, सूरजमुखी, ज्वार, बाजरा, रागी उगाने वाले किसानों को तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला ही नहीं है | एफसीआई की सरकारी खरीद व्यवस्था में काफी सुधार की आवश्यकता है। क्योंकि, इसका पौने दो लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। इसके चलते सरकारी खरीद व्यवस्था को बंद करने की अफवाहें चल रही है। सारी व्यवस्था तहस-नहस हो गई है, सरकार इससे बचना चाह रही है |

वही उन्होंने कहा की यूपीए सरकार की कोशिश रहती थी कि बाजार की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे न आए, लेकिन भाजपा सरकार ने महंगाई नियंत्रित करने के नाम पर बाजार मूल्य की जो कीमतें गिराई है, उसके कारण किसान को एमएसपी नहीं मिल रहा है |

हमें उम्मीद है कि आगामी बजट में कृषि के लिए जीएसटी की दरें कम की जाए। कृषि इनपुट और उपकरणों पर जीएसटी की दर 5% से अधिक न हो। ब्रांडेड उत्पादों पर भी जीएसटी की दरें कम की जाए | हमारी मांग है कि डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। आम आदमी से टैक्स वसूलने के चक्कर में इन्हें अब तक जीएसटी से बाहर रखा है। एक अनुमान के अनुसार 5 साल में अकेली केंद्र सरकार ने लगभग ₹13.5 लाख करोड़ टैक्स के रूप में वसूले हैं , जिसका बड़ा हिस्सा कृषि से है |

कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलना किसान आत्महत्या का बड़ा कारण है। प्राकृतिक आपदा भी इसका प्रमुख कारण है। इसके लिए कांग्रेस ने बहुत बार कर्ज माफी की मांग की है। लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया। 2008 में यूपीए सरकार की भांति किसानों के लिए राष्ट्रीय ऋण माफी योजना की जरूरत है |

भाजपा सरकार को किसानों की उपभोग क्षमता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। मनरेगा को भी मजबूत करने की जरूरत है। हमारी मांग है कि किसानों के लिए बेसिक इनकम जैसी योजना लाने की जरूरत है | निजीकरण के कारण फसल बीमा योजना तहस-नहस हो गई है। निजी कंपनियों को जाने वाले प्रीमियम और किसानों को मिलने वाली मदद की तुलना नहीं की जा सकती।

2019-20 में फसलों के नुकसान के किए मात्र ₹153 करोड़ दिए गए हैं, जबकि बीमा कंपनियों को ₹25,000 करोड़ से ज्यादा दिया गया है | जीरो बजट योजना की जो बात भाजपा सरकार ने की थी, वो बोगस साबित हुई।आईसीएआर से इसकी जाँच हो , इस पर कितना धन खर्च हुआ है। इस पर कोई काम ही नहीं हुआ |

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