गौतमबुद्धनगर में उद्योग एवं व्यापार में लाॅकडाउन की चुनौतियों पर उद्यमियों व व्यापारियों का महामंथन, दिए अहम सुझाव

Abhishek Sharma

Galgotias Ad

अभी देशभर में 1.28 करोड़ छोटे उद्योग अभी काम कर रहे हैं और मौजूदा समय में 35 करोड़ लोगों को इन छोटे उद्योगों में काम मिला हुआ है। कोरोना की मार सबसे ज्यादा इनपर पड़ने वाली है। मौजूदा दौर में कारोबारी दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तो लॉकडाउन से नया काम पूरी तरह ठप है, वहीं दूसरी तरफ पड़े हुए सामान की डिलिवरी में भी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इससे कंपनियों की हालात तेजी से खराब होनी शुरू हो गई है।

गौतम बुद्ध नगर में भी इसका औद्योगिक इकाइयों पर काफी प्रभाव पड़ रहा है। सामान की डिलिवरी में आ रही मुश्किलों और सरकारी और निजी कंपनियों की तरफ से पेमेंट न मिलने जैसी मुश्किलों के चलते देश की छोटी कंपनियों का अस्तित्व खतरे में आ गया है।

आज इसी मुद्दे को लेकर टेन न्यूज़ ने अपने कार्यक्रम के माध्यम से गौतमबुद्धनगर में उद्योग एवं व्यापार में लाॅकडाउन की चुनौतियों पर चर्चा की जाना कि लॉक डाउन में औद्योगिक इकाइयां लगभग बंद होने की कगार पर हैं, लॉक डाउन के बाद यह इकाइयां किस तरह से अपना अस्तित्व बचा सकती हैं। वहीं अब इन इकाईयों को खोलने की अनुमति दे दी गयी है, तो ऐसे में कोरोना के खतरे को ध्यान में रखते हुए किस तरह से काम शुरू किया जाएगा।

इन मुद्दों पर बातचीत करने के लिए पैनल में सुशील कुमार जैन, नोएडा उद्योग व्यापार मण्डल, मनोज गर्ग, ग्रेटर नोएडा उद्योग व्यापार मण्डल, मंजुला मिश्रा, लघु उद्योग भारती, सर्वेश गुप्ता, अध्यक्ष IIA, संजय कोहली, ऑटोमोबाइल डीलर एसोसीएशन उपस्थित रहे। वहीं शो प्रस्तुत कर्ता
डॉक्टर अतुल चौधरी रहे।

लाॅकडाउन में उद्योगों पर पडने वाले प्रभाव से उद्यमी किस प्रकार से निजात पा सकते हैं?

मंजुला मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उद्योगों में आज के समय में सबसे बड़ी समस्या लेबर की आ रही है, मजदूरों ने पलायन कर लिया है। ऐसे में लेबर की कमी सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। जो लेबर अभी यहां पर है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद होने के चलते उन्हें कंपनियों तक पहुंचने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि दूसरी बड़ी समस्या फंड्स की आ रही है। अप्रैल माह के वेतन में उद्यमियों को उम्मीद थी कि सरकार इसमें कुछ रियायत देगी लेकिन इस पर सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया। जिसके चलते उद्यमियों एवं मजदूरों के लिए आर्थिक समस्या बनी हुई है। लिक्विडिटी बिल्कुल नही बची है, कहीं से पैसा आने का कोई जरिया भी नही है। लाॅकडाउन के चलते रुकी हुई पेमेंट नही मिल पा रही है।

उसके बाद सबसे बड़ी समस्या कंटेनमेंट जोन की आ रही है गौतम बुद्ध नगर में इतने कोरोना मरीज मिलने के बाद आधे से ज्यादा हिस्सा कंटेनमेंट जोन में आ रहा है, जिसके चलते इन क्षेत्रों में फैक्ट्रियां एवं कंपनियां शुरू नहीं हो पा रही हैं। हालांकि कंटेनमेंट जोन में जिला प्रशासन ने दायरा कम कर के कुछ राहत जरूर दी है लेकिन यह भी नाकाफी है। इतने दिनों तक इन क्षेत्रों में फैक्ट्रियां बंद रहने के चलते इनका वजूद नही रहेगा।

उनका कहना है कि नोएडा में जहां पर झुग्गियां बसी हुई हैं, इन क्षेत्रों में सबसे अधिक फैक्ट्रियां हैं। झुग्गियां में कोरोना के सबसे अधिक मरीज सामने आए हैं। ऐसे में इसकी मार उद्यमियों को झेलनी पड़ रही है। उन्होंने जिला प्रशासन से निवेदन किया है कि जहां पर केस निकल रहा है, उन क्षेत्रों को बंद करें। बाकी फैक्ट्रियों को खोलने की अनुमति दी जाए।

सबसे बड़ी बात यह है कि इंडस्ट्रीज घुटने पर आ गई हैं जिसके चलते औद्योगिक इकाईयां बिल्कुल डूबने की कगार पर हैं। मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही है कि एक तरफ तो उत्तर प्रदेश सरकार धीरे-धीरे औद्योगिक इकाइयों को खोलने की अनुमति दे रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार मजदूरों का पलायन करा रही है। जब वह मजदूर यहां पर रहेंगे ही नहीं तो कंपनी का संचालन कैसे शुरू हो सकेगा। क्योंकि अभी जिन लोगों को भेजा गया है, वे तुरंत ही लौट कर तो वापस नहीं आ सकते।

मनोज गर्ग ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अब सरकार की समझ में आ गया है कि कोरोना वायरस महामारी जल्द खत्म होने वाली नहीं है। सालों साल भी यह महामारी चल सकती है, लेकिन इसी के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी बचाना है, व्यापारी व उद्यमियों के कारोबार को भी बचाना है। उनके धंधे चौपट हो चुके हैं, वे सड़क पर आ गये हैं।

मेरा यह सुझाव है कि ऐसा मास्टर प्लान बनाया जाए जिससे उद्यमी को फायदा हो। ऑड ईवन का सिस्टम यहां पर भी लागू किया जा सकता है़। ताकी उद्यमी अपने उद्योगों को सुचारू रूप से शुरू कर सकें। व्यापारियों के साथ कई प्रकार की समस्याएं हैं, अपने स्टाफ को सैलरी देनी हैं। सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है की मजदूरों को सैलरी देने जरूरी है या फिर यह गाइडलाइन है। उद्यमियों को सरकार की तरफ से किसी प्रकार का कोई राहत नहीं मिल रही है।

दूसरी बात यह है कि कितने सारे व्यापारी ऐसे हैं जिनका व्यापार लोगों से चलता है। कई साल तक इनके व्यापार नहीं चलेंगे, क्योंकि लोग एक साथ एकत्रित नहीं हो सकते। बैंक्वेट हाॅल, फोटोग्राफर, जिम, माॅल, पब, बार समेत ऐसे काम हैं, जो शायद अब शुरु ही न हो पाएं।

सर्वेश गुप्ता ने कहा कि जिन कंपनियों को सरकार ने खोलने की अनुमति दी है। उनके वेंडर्स सारे बंदे हैं। जब वेंडर बंद हैं तो इंडस्ट्री में उत्पादन कैसे होगा। एक और बड़ा सवाल यह है कि जो मजदूर अब चले गए या जाने वाले हैं वह बाद में कब और कैसे आ सकेंगे। जिस तरह के अभी हालात बने हुए हैं उसे देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता कि यह वापस लौटेंगे। मजदूरों का भी फीडबैक लिया गया है। उनका कहना है कि वे यहां से अपने घर जाकर वापस मुश्किल ही लौटेंगे।

सरकार ने लोन देने की बात की है लेकिन लोन चुकाना भी तो पडेगा, अगर काम नही चला तो दोहरी मार उद्यमियों पर पडेगी। सरकार ने पूरे देश के लिए 20 लाख करोड का पैकेज जारी किया है, जो कि एक सराहनीय पहल है। इससे देश के उद्यमियों को भी काफी राहत मिली है।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार सोशल डिस्टेंसिंग रखने की बात कर रही है, लेकिन जिन कंपनियों में स्पेस कम है, वहां पर सोशल डिस्टेंसिंग कैसे मैनेज किया जाएगा।

सुशील जैन ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कोरोना तो अब आया है, लेकिन इससे पहले भी जो लोग लोन के लिए आवेदन कर रहे थे, वे भी सफल नही हो रहे थे। कहीं न कहीं पहले से ही हमारी जीडीपी डाउन हो रही थी। अगर पिछले तीन महीने की बात करें तो व्यापारियों को इसकी सबसे ज्यादा मार झेलनी पड रही है। शोरूम बंद पडे हुए हैं, इनमें रखा हुआ माल डैमेज हो रहा है।

उन्होंने कहा कि मुझे यह बात समझ नही आती कि प्रशासन को व्यापारियों से ऐसी क्या दिक्कत थी कि उन्हें अपना माल देखने की भी परमिशन नही दी गयी, व्यापारी अपनी दुकान में सफाई भी नही कर पाए, माल को चुहें डैमेज कर रहे हैं।हमारा लैदर स्टॉक खराब हो रहा है।

आज की तारीख में हमारे साथ सैलरी, बिजली-पानी, किराए की समस्या नही है। हमारे साथ स्टाॅक का डैमेज होना सबसे बडी समस्या है। हमारे इंटीरियर खराब हो रहे हैं। अभी तक दुकानें खोलने का प्रस्ताव भी नही रखा है। अधिकारी अभी भी इस असमंजस मे हैं कि व्यापारियों को किस तरह से राहत दी जाए, व्यापार किस तरह से शुरू किए जाएं।

हमें अपने माल को भी देखना है, दुकानों को भी सैनिटाइज करना है। अगर आने वाले दिनों में हमें दुकानें, शोरूम खोलने की परमीशन मिल भी जाती है, तो हमारा ग्राहक हम तक कैसे पहुंच सकेगा, क्योंकि ग्राहक लाॅकडाउन मे हैं। इंटर स्टेट आवाजाही को अनुमति नही दे रहे हैं, जबकि दिल्ली, फरीदाबाद, गुडगांव में लोग अधिकतर काम करते हैं।

व्यापारी लगातार पिछले 10-15 दिनों से अपनी बातें
मंत्रियों के सामने रख रहे हैं। हर मिनिस्ट्री से हमें यही जवाब मिलता है कि आपकी बातें सुन ली गई हैं और सरकार तक पहुंचाकर कोई ना कोई हल जरूर निकाला जाएगा। लेकिन आज तक व्यापारियों के पक्ष में कोई भी फैसला नहीं लिया गया है।

20 लाख करोड़ की जो बात हो रही है, वह हम कब इस्तेमाल करेंगे। पहली लिक्विडिटी का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं तो अगली के बारे में कैसे विचार करें। जब तक हम कोई प्रोडक्शन में आएंगे, लोगों को समान बेचेंगे, खरीदेंगे तो उस समय हम लोगों के सामने हाथ चलाने वाली स्थिति में आ जाएंगे। इस स्थिति में सरकार को विचार करना चाहिए।

सरकार को एक कमेटी बनानी चाहिए जिसमें इंडस्ट्री के लोग, व्यापारी हों जिससे कि पूरे भारत की इंडस्ट्री एवं व्यापार पर विचार किया जा सके, ताकि व्यापारियों के पक्ष में फैसला लिया जा सके।

संजय कोहली ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन में ऑटो सेक्टर की रीढ़ टूट गई है। ऑटो इंडस्ट्री को 45 दिनों तक फैक्ट्रियों को बंद रखने के चलते 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आमदनी का नुकसान होगा और इससे देश के जीडीपी में 0.5 पर्सेंट की कमी आएगी। कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए 18 से 31 मई तक लॉकडाउन लागू है।

देश के अधिकतर ऑटो प्लांट्स 20 मार्च से बंद हैं। उत्पादन शून्य होने का यह भी मतलब है कि सरकार के गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स कलेक्शन में इस दौरान 28,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमी आएगी। इसके अलावा, विभिन्न स्टेट टैक्स के तहत 14,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। ये बातें ईटी इंटेलिजेंस ग्रुप की एक एनालिसिस में सामने आई हैं।

सरकार ने कुछ प्लांट्स को कामकाज शुरू करने की इजाजत दी है। हालांकि, ऑटो कंपनियों का मानना है कि इसके कुछ राहत नहीं मिलेगी, क्योंकि वेंडर सप्लाई के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है, शोरूम बंद हैं, इनवेंट्री बढ़ती जा रही है और कोई भी इस वक्त कार नहीं खरीद रहा है।

31 मई के बाद क्या होगा, इसे लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं है। ऑटो कंपनियां चाहती हैं कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ उनके इकोसिस्टम के सभी सेगमेंट को कारोबार करने की छूट दी जाए।

Leave A Reply

Your email address will not be published.