सकारात्मक सोच के साथ हर व्यक्ति बना सकता है बेहतर भविष्य, टेन न्यूज़ के “एक विशेष मुलाकात” कार्यक्रम में बोले डॉ ज्ञानेश्वर मुले

Rohit Sharma

Galgotias Ad

नई दिल्ली :– कहते है कि देश मे बहुत से ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने परिश्रम , सकरात्मक सोच के साथ अच्छे मुकाम हासिल किए है । जिनको गुरु मानकर नई पीढ़ी आगे बढ़ने की सोचती है , साथ ही अमल भी करती है ।

महान व्यक्तियों को सुनने के लिए लोग भारी मात्रा में इक्कठे होते है , साथ ही ध्यान से सुनते है कि आखिर उन्होंने क्या महत्वपूर्ण बातें कही , जिससे वो अपने जीवन मे अमल करके भविष्य को मजबूत बना सके।

वही ऐसे महान व्यक्तियो से रूबरू कराने के लिए टेन न्यूज़ नेटवर्क ने एक नई पहल शुरू की है । टेन न्यूज़ नेटवर्क ने “एक विशेष मुलाकात”कार्यक्रम शुरू किया है , जिसका संचालन मशहूर लेखिका , गायिका और तेजतर्रार एंकर शुभांगी नितीन मुळे ने किया । वही इस कार्यक्रम में प्रेरणादायी साहित्यिक और सामाजिक मित्र – ऐम्बैसडर डॉक्टर ज्ञानेश्वर मुले ने हिस्सा लिया।

आपको बता दें कि डॉक्टर ज्ञानेश्वर मुळे भारतीय विदेश मंत्रालय के निवृत्त सचिव और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य है । यह कार्यक्रम टेन न्यूज़ डिजिटल स्टूडियो से टेन न्यूज़ नेटवर्क के 2 प्लाट्फ़ोर्मस फेसबुक और यूट्यूब पर लाइव प्रसारित किया गया।

डॉक्टर ज्ञानेश्वर मुले का चयन 1983 में भारतीय विदेश सेवा के लिए हुआ था। वो महाराष्ट्र के कोल्हापुर के रहने वाले हैं। उन्होंने भारतीय विदेश मंत्रालय में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। इसके अलावा मालदीव में सबसे लंबे समय तक हाई कमिश्नर भी रहे।

2016 में उन्हें विदेश मंत्रालय के पॉसपोर्ट विभाग में सचिव के पद पर नियुक्त मिली। यहां उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए। ज्ञानेश्वर मुले हिंदी और मराठी के पुरस्कृत लेखक हैं। उनकी कई किताबों का उर्दू और अरबी में अनुवाद भी किया गया है।

ज्ञानेश्वर मुले ने भारतीय विदेश सेवा (1983-2019) में राजनयिक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। वे एक प्रसिद्ध लेखक, प्रेरक एवं भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं। ज्ञानेश्वर मुले ने राष्ट्रीय, स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक अनुभव एवं विशेषज्ञता के रूप में पहचान बनाई है।

विभिन्न मंत्रालयों जैसे वित्त, वाणिज्य, विदेश मामले मंत्रालयों तथा कैबिनेट सचिवालय में काम किया है। इन्हें कई भाषाओं का ज्ञान है जिनमें हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत, कन्नड़, जापानी, रसियन, पंजाबी शामिल हैं।
वे राष्ट्रीय स्तर पर लेखक, स्तंभकार एवं राजनयिक के रूप में प्रसिद्ध हैं। पूरे विश्व में इनके साथ लोगों का एक व्यापक नेटवर्क है।

 

डॉ ज्ञानेश्वर मनोहर मुले ने 25 अप्रैल, 2019 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। उनकी अगुवाई में 410 नए पासपोर्ट कार्यालयों का खोला जाना उल्लेखनीय है, जिससे प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पासपोर्ट कार्यालय खुल गया है। पहले देश में केवल 77 पासपोर्ट केन्द्र थे जिनकी संख्या 2019 में बढ़कर 510 हो गई है।

इन्होंने विदेशों में फंसे भारतीय लोगों की मदद करने तथा यह सुनिश्चित करने कि विदेश में किसी भी स्थान पर किसी भी भारतीय को कठिनाई का सामना न करना पड़े, के लिए एक सुदृढ़ ढांचा तैयार किया।

ज्ञानेश्वर मुले 15 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है जिनका अनुवाद अरबी, धिवेही, उर्दू, कन्नड़ एवं हिंदी में किया गया। इनकी प्रसिद्ध रचना मराठी भाषा में लिखी गई ’माटी पंख अनि आकाश’ को बेहद लोकप्रियता प्राप्त हुई तथा उसको उत्तरी महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव में कला पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया।

उन्होंने अनेक समाज-शैक्षिक प्रोजेक्ट जिनमें उनके पैतृक गांव में एक अनाथालय ’बालोदयन’ भी शामिल है, के लिए प्रेरणा दी। डॉ ज्ञानेश्वर मुले के जीवन एवं कार्य पर प्रकाश डालने वाली एक डॉक्यूमेंट्री ’जिप्सी’, जिसका निर्माण एवं निर्देशन धनंजय भावालेकर द्वारा किया गया, को दिल्ली लघु फिल्म डॉक्यूमेंट्री उत्सव में ’स्पेशल जूरी’ पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रसिद्ध लेखक दीपा देशमुख ने इन पर ’डॉ ज्ञानेश्वर मुले-पासपोर्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ शीर्षक से पुस्तक लिखी है।

ज्ञानेश्वर मुले को वर्ष 2017 में डी.वाई.पाटिल विश्वविद्यालय, मुम्बई ने इन्हें ’समाज के प्रति अनुकरणीय योगदान’ हेतु डीलिट् (मानार्थ) उपाधि से सम्मानित किया।

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि वाणिज्य दूतावास के भारतीय प्रवासियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ अमेरिकी समाज की मुख्य धारा में लाने की पहल सहित उल्लेखनीय योगदान सितम्बर, 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेडिसन स्क्वायर गार्डन समारोह में मुख्य समन्वयकत्र्ता रहे।

साथ ही उन्होंने कहा कि भारत-यू.एस. संबंधों पर यू.एस. नीति-निर्माताओं के साथ गहरी समझ तथा पासपोर्ट, वीज़ा एवं अन्य मामलों पर समुदाय की चिंताओं का समाधान करने के लक्ष्य सहित अनोखे आउटरीच कार्यक्रम “काउंसलेट एट योर डोरस्टेप” की शुरुआत की ।

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि ’मीडिया इंडिया 2014’ शीर्षक से एक मासिक लेक्चर की श्रृंखला प्रारम्भ की, जिसे अत्यधिक लोकप्रियता मिली। साथ ही, भारत पर नई बातचीत करने में भी सहायता मिली। इसी प्रकार ’इंडिया-स्टेटबाय स्टेट’ नाम से भारतीय राज्यों पर केन्द्रिय लेक्चर श्रृंखला प्रारम्भ की।
कॉउंसेल जरनल के रूप में 2014 में भारत के चुनावों पर आधारित कॉमेडी सेंट्रल के ’दि डेली शो विद् जॉन स्टीवर्ट’ के एक एपिसोड में भी दिखाई दिए।

 

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की। इस समग्र सफाई अभियान ने विदेशों में अन्य भारतीय मिशन हेतु स्वच्छ काउंसलेट अभियान का एक मॉडल प्रस्तुत किया।

 

पुणे के उप-समाहर्ता के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। बाद में वर्ष, 1983 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए। थर्ड सेक्रेटरी के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने आर्थिक संबंधों पर कार्य किया तथा अनेक जापानी निदेशों को भारत में करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया जिनमें टोयोटा मोटर्स, एनटीटी-आईटोकू, होण्डा मोटर्स तथा वाईकेके शामिल हैं। वर्ष 1988 में जापान के 20 से अधिक शहरों में ’फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया’ के महत्त्वाकांक्षी सांस्कृतिक समारोह का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया।

 

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि मॉस्को, रूस में बिजनेस एसोसिएशन की स्थापना की तथा दो वर्षों तक इसके संस्थापक अध्यक्ष रहे। एसोसिएशन ने वर्ष 2017 में अपनी 25वीं सालगिरह मनाई।

 

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि मेरा जन्म 1958 में महाराष्ट्र के सांगली जिले में अराग गांव में हुआ था। मेरे पिता मनोहर कृष्ण मुले एक किसान थे जबकि माता अक्का ताई मुले, गृहणी थीं। उन्होंने दस वर्ष की आयु में गांव छोड़कर जिला परिषद् द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के हुनर को विकसित करने के लिए संचालित स्कूल राजश्री साहू क्षत्रपति विद्यानिकेतन, कोल्हापुर में दाखिला लिया।

वर्ष 1975 में एस.एस.सी. परीक्षा में संस्कृत में सर्वोत्कृष्ट अंक प्राप्त करने पर उन्हें जगन्नाथशंकरसेठ पुरस्कार जीतने वाले वे ग्रामीण क्षेत्र से पहले छात्र थे।
उन्होंने शाहजी क्षत्रपति कॉलेज, कोल्हापुर से स्नातक (अंग्रजी साहित्य) की डिग्री प्राप्त की तथा वे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान पर रहे जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित धनन्जय कीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सिविल सेवा में शामिल होने के लिए तथा इस बात को समझते हुए कि कोल्हापुर में अध्ययन के संसाधन एवं मार्गदर्शन की कमी है, में मुम्बई चला गया।

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि मुम्बई विश्वविद्यालय से कार्मिक प्रबंधन की पढ़ाई की तथा विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान पर आने के लिए उन्होंने पीटर एल्वरेज़ मेडल जीता। इसके बाद वे महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग परीक्षा में वर्ष 1981 में प्रथम स्थान पर रहे तथा 1983 में भारतीय विदेश सेवा में चयनित होने से पहले उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी उत्तीर्ण की।

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि मेरा बचपन बहुत अच्छा बीता , जो बचपन बच्चा जीता है , वो मैने पाया है । मुझे प्रकति से बहुत लगाव रहा है , मेरे आसपास सकरात्मक वातावरण रहा है , जिसके कारण में आज इस मुकाम पर पहुँच पाया हूँ।

ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि राजनीति में अच्छे लोगों को आना चाहिए। एक ब्योरक्रेट भी देश की अच्छी सेवा कर सकता है जो उन्होंने करके दिखाया। उन्होंने कहा, ‘राजनीति में मेरी रुचि हैं। लेकिन इसमें आने के लिए चार चीज़ों की आवश्यकता है- धन, जन, जाति और मेरिट। मेरे पास सिर्फ मेरिट है। राजनीति बहुत मुश्किल कार्य है।

उन्होंने कहा कि देश की आम जनता को भी विदेश नीति समझनी चाहिए जिसके लिए उसे उसी की भाषा में सामग्री मिलनी चाहिए।

हमारे यहां विष्णु भगवान को बहुत माना जाता है हमारे यहां महाराष्ट्र में विष्णु भगवान को विठ्ठल बोलते हैं ,साथ ही उन्होंने कहा कि वो बहुत ज्यादा पूजा अर्चना करते है । पूजा करने से भी सकरात्मक सोच अच्छी होती है ।

अपने बारे में लिखने का जोखिम लेना किसी भी लेखक के लिए आसान नहीं होता। जब बात आत्मकथा लिखने की हो, तो ईमानदार रहने की मजबूरी और सच-झूठ के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश अक्सर कथ्य को बोझिल बना देती है।

साहित्य का इतिहास देखें तो कई लेखकों ने अपनी आत्मकथाएं लिखी हैं और उन पर खूब चर्चा भी हुई है। फिर चाहे वह हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा-‘दशद्वार से सोपान तक’ हो या अमृता प्रीतम की ‘रसीदी टिकट’।

आत्मकथ्य की इस दुनिया में ‘माटी, पंख और आकाश’ के जरिये कदम रखने वाले ज्ञानेश्वर मूले ने अपनी किताब में एक नया प्रयोग किया है। पेशे से राजनयिक और भारतीय विदेश सेवा का लंबा अनुभव होने के कारण की गई यात्राओं को जिस तरह ज्ञानेश्वर ने अपनी आत्मकथा में जगह दी है, वह बेहद दिलचस्प है।

देश और दुनिया के अलग-अलग स्थानों से लगाव, वहां की संस्कृति और सोच का प्रभाव किस तरह एक व्यक्ति की जिंदगी पर असर करता है, यह इस किताब में बखूबी लिखा गया है।

जीवन के तीन महत्वपूर्ण पड़ावों को लेखक ने किताब के तीन खंडों माटी, पंख और आकाश के जरिये पाठक तक पहुंचाने की कोशिश की है।

इस किताब में भारत से बाहर जाकर बसने वाले लोगों के भीतर की उलझन, सोच और मानसिकता को भी बेहद सरल और सटीक लहजे में प्रस्तुत किया गया है।

आत्मकथा होने के बावजूद लेखक ने खुद को अपने लेखन पर हावी न करते हुए पाठकों को देश-दुनिया से जुड़े कई तरह के नए अनुभव और जानकारी लेने का भी मौका दिया है।

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