टेन न्यूज लाइव के ‘समाज के रत्न’ कार्यक्रम में रूबरू हुए फ़िल्म कथा लेखक कमलेश पांडे

Ten News Network

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नई दिल्ली :– कहते है कि देश मे बहुत से ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने परिश्रम , सकरात्मक सोच के साथ अच्छे मुकाम हासिल किए है । जिनको गुरु मानकर नई पीढ़ी आगे बढ़ने की सोचती है , साथ ही अमल भी करती है ।

महान व्यक्तियों को सुनने के लिए लोग भारी मात्रा में इक्कठे होते है , साथ ही ध्यान से सुनते है कि आखिर उन्होंने क्या महत्वपूर्ण बातें कही , जिससे वो अपने जीवन मे अमल करके भविष्य को मजबूत बना सके।

वही ऐसे महान व्यक्तियो से रूबरू कराने के लिए अर्जुन फाउंडेशन ने महत्वपूर्ण कार्यक्रम करती आई है। आपको बता दे कि अर्जुन फाउंडेशन  समाज के रत्न कार्यक्रम कर रही है , इस कार्यक्रम में बहुत से महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। इस कड़ी में एक बार फिर अर्जुन फाउंडेशन एक ऐसे रत्न को लेकर आई है , जिससे आप सभी रूबरू होंगे।

अर्जुन फाउंडेशन द्वारा समाज के रत्नऑनलाइन कार्यक्रम टेन न्यूज़ के माध्यम से किया। ये कार्यक्रम टेन न्यूज़ के यूट्यूब और फेसबुक चैनल पर प्रसारित किया गया । ‘समाज के रत्न’ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लेखक कमलेश पांडे रहे, साथ ही इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय मानवाधिकार के सदस्य व मूवमेंट ऑफ पॉजिटिविटी संस्था के संस्थापक डॉ ज्ञानेश्वर मुले , अर्जुन फाउंडेशन की संस्थापिका हिमांगी सिन्हा शामिल रही। वही इस कार्यक्रम का संचालन अर्जुन फाउंडेशन की आस्था पांडे द्वारा किया गया।

लेखक कमलेश पांडे ने बताया ‘रंग दे बसंती’ फिल्म के बारे में काफी लोगो को गलतमहमी थी की ये फ़िल्म भगत सिंह के ऊपर बनी है, लेकिन ऐसा नही है । उन्होंने कहा ‘इस फ़िल्म को मंजिल तक पहुंचाने में 6 साल लग गए, भगत सिंह के ऊपर बनी हुई 6 फिल्म पहले से ही ब्लॉक हो चुकी हैं। उन्होंने कहा मैंने भगत सिंह का इस्तेमाल किया एक डिवाइस की तरह, कहानी सन 2000 के युवा भारत की थी जब भारत के युवा विदेशी कल्चर के पीछे केसे पागल हो गए थे।

देश से लोगो को मतलब नही था , लोगो के मन में सरकार के प्रति सिर्फ शिकायत का दौर था। तब उस समय मेरे बीच मित्र मंजू तिवारी मेरे पास आई । उन्होंने कहा मैं भगत सिंह के ऊपर एक टीवी सीरीज बनाना चाहती हूं , क्या आप उसके लिए लिखेंगे? फिर उसके बाद उन्होंने मुझे कई सारी किताबें दी पढ़ने के लिए , लेकिन किसी बात को लेकर हमारे बीच अनबन हो गई और मैं उनके लिए कहानी लिख नहीं पाया।

साथ ही लेखक कमलेश पांडे ने कहा कि उन किताबों में से एक किताब भगत सिंह की चिट्ठियों को लेकर थी जो उन्होंने अपने पिताजी को लिखी थी । उस किताब में एक लाइन थी , उस लाइन में मुझे हिला कर रख दिया था। वह लाइन थी “आजादी का मतलब यह नहीं के गोरे जालिम की जगह काले जालिम आ जाएं और अगर आ गए तो उनके साथ भी हम वही सलूक करेंगे जो अंग्रेजों के साथ कर रहे हैं।” तुम मेरे ख्याल में आया कि जिस समय भगत सिंह की उम्र भी 22 वर्ष थी,  उस समय युवा क्या कर रहा था और आज का युवा यह क्या कर रहा है और आज अगर भगत सिंह होता तो क्या करता।

आगे उन्होंने कहा की मैं अपनी कहानियों में भूत वाला कांसेप्ट नहीं रखता , जैसे कि मुन्ना भाई एमबीबीएस टू में किया गया था यह एक बहुत ही बचकाना आईडिया था , यह आप बच्चों के कांसेप्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, मैं थोड़ा रियलिस्टिक स्टोरी चाहता था की भगत सिंह को सन 2000 में कैसे लेकर आना है, फिर उसके बाद मैंने यह कहानी लिखी।

ज्ञानेश्वर मुले ने लेखक कमलेश पांडे से जब उनके अब तक के कैरियर के संघर्ष बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ‘वह पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल अच्छे नहीं थे , लेकिन डिफेंस फोर्स में जाना चाहता था , लेकिन मैं फिजिकली इतना फिट नहीं था । मेरी थोड़ी बहुत हिंदी अच्छी थी और मुझे थोड़ा बहुत लिखने का शौक था , मेरे परिवार को मुझसे कोई उम्मीद नहीं थी कि यह लड़का जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा।

मेरे पिताजी उस समय नौकरी करते थे , फिर मेरे पिताजी को किसी ने एडवाइज किया की मेरा एडमिशन जेजे इंस्टिट्यूट में करा दो। उसके जरिए इसको कहीं ना कहीं तो नौकरी मिल ही जाएगी। तो इसी उम्मीद से मुझे मुंबई भेज दिया गया। तो उसके बाद मैंने अपना 4 साल का कोर्स 3 साल में ही छोड़ दिया। उन्होंने कहां की कई बार किए गए फैसले सही साबित होते हैं और यह फैसला उनका सही साबित हुआ।

कभी भी किसी दूसरे की एडवाइज लेकर कोई फैसला नहीं लेना चाहिए यह मेरा मानना है। लेकिन वो 4 साल मेरे लिए बहुत ही अनुभव का समय था वह 4 साल मेरी एजुकेशन थी जिससे मैंने लाइफ में खुद ही सीखा और फिर उसके बाद मैंने लिखा। उन्होंने कहा दुख ही आपको निखारता है और सुख आपको उल्लू बनाता है। उन्होंने बताया कि मेरे जीवन में एक ऐसा पल आया की में आत्महत्या के बारे में सोचने लगा था, लेकिन उनकी जान फिल्मों ने बचाई, मैं फिल्मों की किताबें पढ़ना काफी पसंद करता था, में जिस लाइब्रेरी में भी जाते था , फिल्मों के ऊपर किताबें पढ़ता था।

उन्होंने कहा कि एक बार मैं एक जर्मनी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था उसमें दिखाया था कि कैसे एक बच्चे का जन्म होता है की कितने सारे सपने से लड़कर जीतने के बाद एक इंसान बनता है तो मुझे लगा की मैं क्यों अपनी जान गवाऊँ जब जिंदगी ने मुझे खुद चुना है उसके बाद मैंने अपने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आखिर में मुझे एक जगह विज्ञापन
लेखक की नौकरी मिल गई।

अर्जुन फाउंडेशन की फाउंडर हिमांगी सिन्हा ने लेखक कमलेश पांडे से सवाल किया की आपने कई सारी फिल्में अपने जीवन में लिखी है और जब फिल्में हिट होती हैं तो उसमें एक्टर, निर्देशक, प्रड्यूसर जैसे लोग फेमस हो जाते हैं , लेकिन लेखक का नाम सुनने को भी नहीं मिलता , तो कमलेश पांडे ने कहां की ‘यही हमारी लड़ाई है एक समय था कि लेखक को मुंशी कहा करते थे और इंडस्ट्री एक तरह से नेताओं की बंधुआ है और अभिनेताओं के कब्जे में है लेकिन लेखक के बिना भी काम नहीं चलता तो लेखक को बर्दाश्त किया जाता है ।

उन्होंने कहा आज तक आपने किसी भी एक्टर को अपने लेखक के बारे में अच्छी बात कहते हुए नहीं सुना होगा। उन्होंने कहा कि लोग जलते हैं अच्छे लेखकों से , लोग नहीं चाहते की लेखक भी लोकप्रिय हो,  क्योकि इससे डर है कि कहीं बाकी लोगों की लोकप्रियता ना खत्म हो जाए।

हिमांगी  सिन्हा ने सभी को धन्यवाद दिया  और कहाँ इसी तरह समाज के रत्न कार्यक्रम में छिपी हुई प्रतिभाओं / हस्तियों / विभूतियों को रूबरू किया जाता है | आप ने इस कार्यक्रम में सम्मिलित करने  के लिए नाम और कार्यक्रम को बेहतर बनाने के लिए दर्शोंकों के सुझाव  भी आमंत्रित किए ।
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