नई शिक्षा नीति-2020 में न्यूनतम नियम रहेंगे तो बढेगी शिक्षा की गुणवत्ता, टेन न्यूज पर बोले जीबीयू के वाइस चांसलर प्रो. बी.पी शर्मा

ABHISHEK SHARMA

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केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने नई शिक्षा नीति-2020 को मंजूरी प्रदान की है। नई शिक्षा नीति ने 34 साल पुरानी शिक्षा नीति को बदला है, जिसे 1986 में लागू किया गया था। केंद्र सरकार के मुताबिक, नई नीति का लक्ष्य भारत के स्कूलों और उच्च शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सुधार करना है कि भारत दुनिया में ज्ञान का ‘सुपरपॉवर कहलाए।

नई शिक्षा नीति 2020 के तहत पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे कवर होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा।

नई शिक्षा नीति के विषय को लेकर टेन न्यूज़ ने ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन किया, जिसमें गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर डॉ भगवती प्रकाश शर्मा ने अपने विचार रखे।

इस कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर अतुल चौधरी ने किया, जो कि नोएडा के जाने-माने समाज सेवी हैं और देश के प्रमुख आईटी संस्थान में कार्यरत हैं। उन्होंने इस कार्यक्रम का बेहद बखूबी संचालन किया और अपने सवालों के जरिए नई शिक्षा नीति को समझने का प्रयास किया।

प्र. भारत की नई शिक्षा नीति 2020 को आप किस तरह से देखते हैं?

कोई भी देश और समाज वहां की शिक्षा के अनुपात में ही विकसित होता है। इसलिए मुझे लगता है कि शिक्षा नीति हमारे आने वाले समय में देश के ज्ञान-विज्ञान, जीवन मूल्यों, संस्कृति, विज्ञान प्रोद्योगिकी जैसे सभी क्षेत्रों में प्रगति को निर्धारित करने वाला एक प्रमुख कारक होगा। निश्चित रूप से शिक्षा नीति बना लेना आसान है लेकिन उस पर चलना एक कठिन परीक्षा के समान होता है। यदि हमने इस शिक्षा नीति में के अनुरूप देश और प्रदेशों में शिक्षा का क्रियान्वयन उसी प्रकार से किया तो निश्चित रूप से भारत विश्व के अग्रिम पंक्ति के देशों में होगा।

उन्होंने कहा कि मुझे लगता था कि हमारे देश में अब तक हायर एजुकेशन ओवर रेगुलेटेड थी। भारत में 135 करोड़ से ज्यादा आबादी है, हमारे देश में है 3.30 करोड़ छात्र-छात्राएं 1000 विश्वविद्यालयों में और 45 लाख छात्र महा विश्वविद्यालयों में अध्ययन कर रहे हैं। अगर हम सोचे हैं कि सभी को एक ही संस्था से नियंत्रित किया जाए तो यह सही नहीं होगा। इस शिक्षा नीति में नियमन की बात की गई है, मुझे लगता है यह सब विश्वास पर आधारित है।

उन्होंने कहा कि एक तरफ हम अपने देश में अधिनियम बढ़ाकर विश्वविद्यालय का निर्माण करते हैं, उसके बोर्ड ऑफ स्टडीज होते हैं, उसके लिए एकेडमिक काउंसिल हैं। हमें शिक्षकों के ऊपर यह विश्वास करके चलना होगा कि वह इस प्रकार का पाठ्यक्रम बनाएंगे जिसके बाद एकेडमिक काउंसिल जिस तरह के मानक तय करेगी। एक प्रकार से हम विश्वास करके चलेंगे तो इस देश में अनेक अभिन्न प्रयोग और रचना धर्मिता को बढावा मिलेगा।

उन्होंने कहा कि देश की शिक्षा में सेल्फ रेगुलेटरी ऑटोनॉमी की आवश्यकता है। हमारा देश 20 वर्षों में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में विश्व में एक स्थान बना चुका है श और उस समय कंप्यूटर एजुकेशन विभिन्न प्रकार के स्वत: स्वैच्छिक रूप से चलने वाले एनजीओ के रूप में, विभिन्न प्रकार की निजी एजेंसियों ने ऐसी शिक्षा का अनुभव किया। इस शिक्षा नीति में हम यह कह सकते हैं कि शिक्षकों के ऊपर विश्वास करते हुए सारे काॅलेज और यूनिवर्सिटी के शिक्षकों का सशक्तिकरण करना होगा। मुझे लगता है कि देश में नई शिक्षा नीति के बाद शिक्षा की गुणवत्ता और बढ़ेगी। शिक्षा के क्षेत्र में जितने न्यूनतम नियमन रखेंगे शिक्षा की गुणवत्ता उतनी ही बढ़ेगी।

प्र. नई शिक्षा नीति-2020 में कहा गया है कि सकल उत्पाद का 6% शिक्षा व्यवस्था पर खर्च किया जाएगा इस पर आपकी क्या राय है?

कोई भी निर्णय लेने के लिए आधार जरूरी होता है और पॉलिसी में लिख देने के बाद अवश्य यह होगा कि हमारे पास धरातल पर सरकार का टैक्स जीडीपी रेशो उसके अनुरूप हो। आज के समय में केंद्र और राज्य सरकारों का मिलाकर 4.7% शिक्षा पर खर्च हो रहा है। उसमें केंद्र की तुलना में राज्यों के ऊपर अधिक भार है और आज अगर हम देखें तो भारत का टैक्स जीडीपी रेशों केंद्र सरकार का 10% से कम है और अगर राज्यों का भी मिला लें तो टैक्स जीडीपी रेशों 16-17% के करीब रहता है।

उन्होंने कहा कि उसके लिए अनुकूल यह होगा कि सरकार को अपना राजस्व बढ़ाना होगा। ऐसे में यह मानकर चलना होगा कि तत्काल में शिक्षा पर 6 परसेंट व्यय नहीं हो सकता है, यह केंद्र सरकार द्वारा शुरूआती चरण में दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। राज्य सरकारों को मिलकर शिक्षा पर अपना आवंटन साल दर साल बढ़ाना होगा, ताकि दो-तीन वर्ष में हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सके।

उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि पिछले 29 वर्षों में हमारा टैक्स जीडीपी रेशों काफी प्रभावित हुआ है। 1991 में इनडायरेक्ट टैक्स का योगदान जीडीपी 9.8% था, जो घटकर 4.5% रह गया है। क्योंकि इकाॅनाॅमी सुधारने के नाम पर हमने जो उदारीकरण किया, उससे सारी व्यवस्था बिगड़ती चली गई।

उन्होंने कहा कि अब हमने अपनी इकाॅनाॅमी चीन के बराबर करने प्रण लिया है। अब तक हम कई क्षेत्रों में चीन के ऊपर निर्भर थे लेकिन पिछले कुछ समय से हमने अपनी इकाॅनमी को सुधारने की कोशिश की है और इसके लिए प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। हमारे देश में अगर मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी तो जीएसटी के जरिए हमारा टैक्स जीडीपी रेशों भी बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि टेक्स दाताओं की संख्या तभी बढ़ेगी जब लोगों को काम मिलेगा या खुद अपने उद्योग शुरू करेंगे।

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