अरे साहबों गरीबों के आसूंओं को भी देखिये, कितने विकास दुबे घूम रहे हैं

Ten News Network

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विकास दुबे मारा गया | ऐसे अपराधियों पर कठोरतम कार्यवाही आवश्यक थी ,न्यायसंगत मृत्युदंड भी | हालाँकि मै यहाँ उसके एन्काउंटर पर प्रश्नचिह्न उठाने नहीं आया हूँ किंतु मन में एक बहुत बड़ा सवाल है और एक भारतीय नागरिक होने के नाते उसे पूछने का भी हक़ है | मै सुबह से इस जद्दोजहद में हूँ कि विकास दुबे को आज किस लिए मारा गया ? शायद इसलिए कि उसने बीते सप्ताह आठ पुलिस वालों की हत्या की | सत्ता और विपक्ष के लिए इस घटना ने उसे दुःसाहसी अपराधी बना दिया और इसलिए उसका अपराध कई गुना बढ़ गया | किंतु विकास दुबे के कारनामों की लिस्ट देखकर तो ऐसा लगता है कि विकास दुबे को तो जेल से बाहर होना ही नहीं चाहिए | फिर उसे जेल से बाहर लाने वाले लोग भी पुलिस वालों की मौत में उतना ही जिम्मेदार हैं जितना कि खुद विकास दुबे |

सच बताऊँ तो मै दस दिन से पहले विकास दुबे को जानता ही नहीं था | दस दिन में मीडिया से जितना समझ पाया उस आधार पर सत्ता पक्ष ,विपक्ष ,पुलिस ,प्रशासन से पूछने के लिए कुछ सवाल और जुड़ गए कि विकास दुबे को उस समय क्यों जेल से रिहा कर दिया गया जब उसने 2001 में मंत्री की थाने में घुस कर हत्या की ? उसका मन बढ़ाने के लिए या उसके अपराधों पर पर्दा डालने के लिए उसे राजनैतिक संरक्षण क्यों दिया गया ? जब आम जनता के जमीनों को अवैध तरीके हड़पा जा रहा था तब सरकार ने उसके घर पर बुल्डोज़र क्यों नहीं चलवाई ? और जब वह लूट-मार ,अपहरण ,फिरौती के धंधों का बादशाह बनकर आम जनता का जीना मुहाल कर रहा था तब आप उसे खुला घूमने के लिए क्यों छोड़ देते रहे ? जब वह गरीबों पर जुल्म करता रहा ,लोगों में दहशत फैलाता रहा ,तब पुलिस, प्रशासन और सरकार ऑंखें मूँद कर क्यों बैठी थी ? प्रश्न केवल सरकार से नहीं बल्कि सबसे है ,लेकिन मुझे पता है इन प्रश्नों का उत्तर जानते हुए भी कोई नहीं देगा |

क्योंकि सच तो यह है कि श्री प्रकाश शुक्ल से लेकर विकास दुबे तक अपराध जगत और राजनीति के सबंध में कुछ खास बदलाव नहीं आया है | केवल चेहरे बदले हैं रिश्ते वहीं के वहीं हैं |

अगर यह तर्क स्पष्ट नहीं है तो इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि अपराधी कितना भी अपराध करे उसका अपराध तब तक क्षम्य है जब तक वो नेता,पुलिस या प्रशासन के गिरेबान में हाथ न डाले | संपूर्ण नहीं तो बहुतों के केस में यह कथन सत्य प्रतीत होता दिखाई देता है | आम जनता के साथ किये गए अपराध पर कठोर सजा मिलने का प्रावधान हो जाये तो इतना बड़ा दुस्साहस करने तक कोई जीवित ही न बचता | कल का अपराधी अपने आकाओं को वोट दिलाते-दिलाते विधायक ,सांसद होकर जनता पर अपना डर कायम करके रॉबिनहुड कहलाने लगता है तो क्या उसके अपराध पवित्र कार्य में बदल जाते हैं ? ऐसी घटनाओं से जनता में तो यही सन्देश जा रहा है कि जितना अपराध करना है करो,लेकिन नेता और प्रशासन से पंगा मत लेना वरना भारी पड़ सकता है |

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कल तक विकास दुबे के पक्ष में नेता थे ,पुलिस थी ,प्रशासन था | वो मजे से अपना काम कर रहा था | आज ऐसा माहौल बना कि कोई समर्थन देने की हिम्मत नहीं कर सकता था | वो भी उसे अपरिचित बता रहें हैं जिसका नाम विकास दुबे के मुँह से निकलकर मीडिया में वायरल हो रहा है , वो भी उसे जल्द से जल्द पकड़ने की बात कर रहे हैं जिनके राजनैतिक संरक्षण में वो अपने कृत्यों के लिए सबसे पहले चर्चा में आया ,और तो और उसकी कार्यशैली पर वो भी सवाल उठा रहे हैं जिन्होंने उनकी पत्नी को टिकट देकर उसका मनोबल बढ़ाया | क्या जनता में सन्देश नहीं जा रहा हैं कि अपराधियों को जीना है तो नेताओं से मिलकर रहना होगा ,पुलिस से मिलकर रहना होगा ,प्रशासन से मिल कर रहना होगा | इतना करो उसके बाद कुछ भी करते रहो |

अरे साहबों गरीबों के आसूंओं को भी देखिये ,कितने विकास दुबे घूम रहे हैं ,कमलेश तिवारी की हत्या भी एक अपराधी ने ही की है ,उसे कब पकड़ोगे ? अभी हाल में प्रयागराज में एक परिवार के चार लोगों की हत्या हुई ,उस हत्यारे को कब तब छोड़ते रहोगे ? कितने दलित,शोषित,गरीबों की हत्या अथवा उनके सपनों की हत्या करके अपराधियों का मन बढ़ता जा रहा है ,उन पर कठोर कार्यवाही कब होगी ? गरीबों के आंसू कब रुकेंगे ? आज पुलिस प्रशासन से पंगा लेना इस विकास दुबे को अचानक से बहुत भारी पड़ा लेकिन ऐसे कई विकास दुबे हैं जो अपने शैशवकाल में अंगड़ाई ले रहे हैं और उनके आका उन्हें निरंतर हवा दे रहें हैं | उनका भी कुछ होगा ? विकास दुबे पर नजीर बनने वाली कार्यवाही से फ़ुरसत मिले तो थोड़ा इधर भी सोचियेगा |

 

By विनोद पांडेय

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