मानव विकास सूचकांक में स्थिति गिरेगी भारत की, स्वायत्त विभागों में सरकारी अंशदान कटौती से : मंजीत सिंह पटेल

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जनवरी 2004 से पुरानी पेंशन स्कीम के स्थान पर समस्त सरकारी कर्मचारियों के लिए एनपीएस अर्थात नेशनल पेंशन सिस्टम का प्रावधान किया गया था जिसके तहत अनिवार्य रूप से कर्मचारी को अपनी अंतिम सैलरी एवं डी.ए. से 10% वेतन की कटौती करवानी होती है और उस अंशदान के बराबर ही सरकार भी 10% का योगदान देती थी। ततपश्चात इसी फंड से सेवानिवृत्ति पर कर्मचारी को पेंशन देने का प्रावधान है।
चूंकि इस नई व्यवस्था में पुरानी पेंशन की तरह अंतिम सेलरी का 50% एवम डी.ए. की गारंटी न होने के कारण 70 लाख कर्मचारियों की बड़े स्तर पर गारंटीड पेंशन बहाली की मांग के चलते, अप्रैल 2019 में सरकार ने कर्मचारी के 10% वेतन के सापेक्ष सरकारी अनुदान 10% से बढ़ाकर 14% कर दिया था, पब्लिक सेक्टर यूनिट एवम स्वायत्त विभाग के कर्मचारियों पर भी लागू किया गया था ताकि सभी तरह के सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति पर उपयुक्त पेंशन की व्यवस्था हो सके।

परंतु कुछ माह पहले भारत सरकार एवम राज्यों के अधीन स्वायत्त विभाग के कर्मचारियों के लिए 10% से बढ़ाकर 14% किये गये सरकारी अंशदान को वापस लेने के आदेश किये गए हैं जिससे न केवल स्वायत्त विभाग के कर्मचारियों में रोष एवम मायूसी है वरन देश के अन्य कर्मचारियों में भी रोष व्याप्त है। इस बढ़े हुए 4% राशि की अब पब्लिक सेक्टर और स्वायत्त विभाग रिकवरी कर रहे हैं।

केंद्रीय कर्मचारी महासंघ दिल्ली के अध्यक्ष मंजीत सिंह पटेल का कहना है कि अलग अलग विभागों एवम राज्यों में अलग अलग पेंशन प्रावधानों में एकरूपता लाने और “वन नेशन वन पेंशन सिस्टम” की तर्ज पर जिस नेशनल पेंशन सिस्टम को पूरे देश में लागू किया गया था, पब्लिक सेक्टर यूनिट और स्वायत्त विभाग के कर्मचारियों के अंशदान वापसी के आदेश से उसका पवित्र उद्देश्य स्वतः ही समाप्त हो गया है और इस कारण यह नई व्यवस्था भी भेदभाव की जनक बनने की तरफ अग्रसर हो गयी है । चूंकि पुरानी व्यवस्था में 20 वर्ष की सेवा पर पेंशन का पात्र हो जाता था जबकि नेशनल पेंशन सिस्टम के तहत पेंशन पूरी तरह दोनों अंशदान पर आधारित है। ऐसे में जबकि नियम 56 (J ) के चलते कर्मचारियों की सेवा अवधि लगातार घट रही है इन हालातों में सेवानिवृत्ति तक पेंशन फंड से पर्याप्त पेंशन न मिलने से कई करोड़ कर्मचारी परिवार भी निम्न जीवन स्तर के शिकार होंगे जो आने वाले समय मे भारत के मानव विकास सूचकांक को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।

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