12 घंटे इस चतुराई से काम करेंगे तो निश्चित ही कामयाबी आपके कदम चूमेगी : संदीप मारवाह

Abhishek Sharma

Galgotias Ad

Noida (22/06/19) : संदीप मारवाह एक ऐसी शख्सियत के व्यक्ति है , जिनको कोई भी पहचानने से इंकार नहीं कर सकता है। आज के समय में वे करीब 12 मीडिया स्टडीज कॉलेजों के मालिक हैं और नोएडा में फिल्म सिटी स्थापित करने में उनका योगदान अतुल्य रहा। आज हम अपने दर्शकों के सामने मारवाह स्टूडियो के संस्थापक संदीप मारवाह की संघर्ष भरी कहानी लेकर आए हैं, निश्चित ही संदीप मारवाह लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

पेश है संदीप मारवाह की कहानी उन्ही की ज़ुबानी -:

कितनी मजे की बात है कि हमारे परम पिता परमेश्वर ने हमें वह सब ताकत दी हैं , जो परम पिता परमेश्वर के पास खुद हैं। देखिए परमात्मा ने वह सभी ताकतें मुझे और आपको दोनों को दे रखी है। इन सभी ताकतों को हम किस तरीके से इस्तेमाल करते हैं , यह आपके और मेरे ऊपर निर्भर करता है, ऊपर वाले के नहीं। तमाम ताकतों को इस्तेमाल करने की कोशिश कीजिए क्योंकि आपको परम पिता परमेश्वर ने इतनी शक्ति दी है काम करने की|



मैंने एक चीज जिंदगी में महसूस की ‘देर इज़ नो अल्टरनेट टू हार्ड वर्क’ ज्यादा काम करते हैं, भागदौड़ कर काम करते हैं , टाइम से ज्यादा काम करते हैं, तो आप कामयाब होंगे। मुझे एक बात अपने पिताजी की आज भी अच्छे से याद है। उन्होंने कहा था कि देखो दोस्तों 8 घंटे काम करोगे तो तुम्हें कम से कम इस देश में भूखा सोना नहीं पड़ेगा , आप अपने दो टाइम की रोटी कमा सकेंगे और अच्छा जीवन व्यतीत कर सकेंगे।

आप को कम से कम डेढ़ शिफ्ट यानि 12 घंटे काम करना पड़ेगा , तब जाकर जिंदगी में आप गाड़ी,‌ घर, ऑफिस, जिंदगी के कंफर्ट और लग्जरी, फाइव स्टार होटल के मजे, लंबी और चौड़ी गाड़ियों के मजे ले सकेंगे अगर आप मेहनत करना जानते हैं तो।
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तीसरी बात उन्होंने मुझे यह बताई  कि आप अपने काम के प्रति दीवाने हैं तो याद रखिए उसी को जिंदगी में नाम शोहरत , इज्जत , मान-मर्यादा, पैसा सभी कुछ मिलता है। इस धरती के ऊपर परम पिता परमेश्वर ने मनुष्य को भेजा है, इसलिए नहीं कि आप सिर्फ खाना खा सकें बल्कि इसलिए कि आप जिंदगी में कुछ और भी ज्यादा कर सकें। वह ज्यादा क्या है, यह आप खुद सोचिए कि आप की लगन किस में लगती है, आपको किस में मज़ा आता है , आपको मोहब्बत किस चीज से है। उसी चीज को उजागर करिए  , उसी चीज में मेहनत कीजिए। तब देखिए आप जिंदगी में कितने आगे निकलेंगे ऐसा मेरा मानना है और यह मैंने किया।

मेरा शुरू से स्कूल कॉलेज और उसके बाद भी सारा रुझान फिल्म टेलीविजन और मीडिया की तरफ था। मैंने 100 से भी ज्यादा थिएटर के प्रोग्राम किए, मैंने टेलीविजन के ऊपर कई प्रोग्राम दिए लेकिन मुझे ऐसा लगता था कि मैं इससे भी ज्यादा कर सकता हूं। आज मुझे बड़ी खुशी है कि मैं अब तक तकरीबन 650 अवार्ड हासिल कर चुका हूं, जिसमें से 130 अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मुझे मिले हैं।  शायद अब तक के आंकड़े तो यही बताते हैं कि मैं एक मात्र ऐसा हिंदुस्तानी हूं जिसे 130 अंतरराष्ट्रीय वालों से नवाजा गया है।

अवॉर्ड या रिवॉर्ड के लिए मैंने काम नहीं किया, यह तो सिर्फ अपने आप को प्रोत्साहित कर रहा हूं कि जब एक अवार्ड मिलता है तो आपका उत्साह बढ़ जाता है , आपकी लगन बढ़ जाती है, आपको अपने काम के प्रति मोहब्बत और बढ़ जाती है और फिर इंसान चाहता है कि मैं और मेहनत करके इसके आगे फिर कुछ और करने की कोशिश करूं। यह शायद आपके साथ भी होता होगा। जब भी कोई आप को शाबाशी देगा , जब भी कोई आपको प्रोत्साहित करेगा तो उससे ठंडे न पड़ें बल्कि उससे और गर्म हो जाइए , साथ ही बहुत ज्यादा मेहनत कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करे |

आपको यह महसूस होना चाहिए कि लोग आपसे इससे भी ज्यादा की अपेक्षा कर रहे हैं। आपको खुद ब खुद अपने अंदर झांक कर अपने आप को तैयार करना है कि मेरे पास ऐसी कौन सी काबिलियत हैं कि जिनको लेकर मैं अपने काम को अपने समाज को अपने देश को या दुनिया को दिखा सकता हूं कि मैं कुछ कर सकता हूं।

मेरे पास एक विचारधारा थी कि मैं उत्तर भारत के अंदर फिल्म सिटी बनाना चाहता था जब मैंने लोगों को अपने विचार बताएं तो लोगों ने मुझे पागल सिद्ध करने की कोशिश की। वे सोचते थे कि मुझे फिल्म का कीड़ा काट गया है। इस तरह की बातें लोगों ने मुझे सुनानी शुरू की। मुझे लोगों की बातों से ठेस पहुंच रही थी, लेकिन मैंने यह चीज किसी को जाहिर नहीं होने दी मैंने सोचा कि जिस जिद को मैंने पकड़ा है, एक दिन उसे मैं पूरा करके दिखाऊंगा। मुझे लगा कि लोगों की बातों से मुझे दुखी होने की जरूरत नहीं है, तो मुझे एक दृढ़ता की जरूरत थी जो मैंने अपने अंदर पैदा की। ,

1986 के अंदर मैंने एलएनडीओ , एनडीए, एनडीएमसी, एमसीडी , दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन, दिल्ली गवर्नमेंट के आगे यह प्रोजेक्ट रखे और हर जगह से मुझे नाकामयाबी मिली। कई जगह तो मेरी फाइल मेरे मुंह पर फेंकी गई, मैंने परवाह नहीं की क्योंकि मैं जानता था कि आज नहीं तो कल मैं इस प्रोजेक्ट को जरूर साबित करके दिखाऊंगा।

दोस्तों समय बड़ा बलवान है अगर आपके अंदर हिम्मत है जो उसे लगन है, उम्मीद है, जिज्ञासा है, या कुछ करने का जज्बा है , तो मैं यह जानता हूं की पूरी दुनिया की शक्ति आपके साथ चल पड़ती है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ, क्योंकि मेरी सोच में सच्चाई थी और एक बहुत बड़ी उम्मीद थी। अपने लिए , देश के लिए, मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लिए मेरा उद्देश्य साफ था।

मेरी मुलाकात नोएडा के चेयरमैन से हुई और जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने सिर्फ मुझे बुलाया ही नहीं अपने दफ्तर में  उन्होंने मेरा पूरा साथ दिया और मुझे उत्साहित किया कि मैं इस पूरे प्रोजेक्ट को तैयार करूं और आम जनता तक पहुंचाने की कोशिश करूं।

मैंने प्रोजेक्ट सबमिट किया और यह पूरा प्रोजेक्ट नोएडा प्राधिकरण के अधिकारिक लेटर हेड पर लखनऊ सरकार के पास गया और यूपी में भले ही 1 साल लगा हो लेकिन मेरा प्रोजेक्ट पास होकर आ गया।

मुझे एक बात याद आ गई कि सब्र ही इंसान को सफल बनाता है, अगर मैं भागदौड़ में कहीं ढीला पड़ जाता तो हो सकता है कि यह प्रोजेक्ट उन्हीं कागजों के बीच दबकर रह जाता, आज मुझे बड़ी खुशी है। जब 1987 में है प्रोजेक्ट पास हुआ तो 1988 में इनकी एलॉटमेंट हुई और प्राधिकरण की अलॉटमेंट में मेरा नाम गलती से कहीं गायब हो गया। क्या कारण था शायद मैं यहां नहीं बताना चाहूंगा लेकिन हकीकत यह है कि अगर आपके अंदर वह जोश और लगन है तो सब कुछ मुमकिन है।

यकीन मानिए अपने आप मेरा नाम वहां वापस जमा हुआ और मुझे भी फिल्म सिटी में अलॉटमेंट हुई। 100 एकड़ की फिल्म सिटी, 75 एकड़ आउटडोर, 75 एकड़ इंडोर मिला और तब अचानक एक ऐसा नाम जिसे लोग नहीं जानते थे, उसे सब जानने लगे। जबकि उससे पहले मेरे 7-8 साल थिएटर में जा चुके थे। मुझे कोई नहीं जानता था, लेकिन एक अच्छे कागज से लोगों ने मुझे नोएडा का फाउंडर कहना शुरू कर दिया।

एक मिडिल क्लास फैमिली का लड़का जिसके पास फिल्म टेलीविजन और मीडिया का कोई भी संपर्क नहीं था, उसके बावजूद भी अगर मैं कुछ कर सकता हूं तो मुझे उम्मीद है कि आप भी बहुत कुछ कर सकते हैं।

उस समय हमारे पास कुछ सुविधाएं भी नहीं थी और अगर मैं 35 साल पहले की बात करूं तो शायद जो लोग मेरी बात को सुन रहे हैं तो वह इस बात को जान जाएंगे कि दिल्ली खुद-ब-खुद एक गांव की तरह था। जब मुंबई से लोग दिल्ली आते थे तो दिल्ली को गांव कहते थे । लोग कहते थे कि आप गांव में रहकर कैसे कामयाब होंगे। आपको कामयाब होना है तो आप दिल्ली से मुंबई जैसे बड़े शहरों में आइए लेकिन यह मेरी जिद थी कि मैं मुंबई नहीं जाऊंगा, मैं जो कुछ भी करूंगा दिल्ली के अंदर करूंगा, यह वादा मैंने खुद से किया था और “जब मैं कोई बात कमिट कर लेता हूं, तो उसके बाद मैं अपने आप की भी नहीं सुनता”।

अगर आपकी सोच में जोर है और आपकी नीयत साफ है तो आप कामयाब निश्चित होंगे। आप हैरान होंगे कि नोएडा फिल्म सिटी आज दुनिया की सबसे तेज दौड़ती हुई फिल्म सिटी है।

दोस्तों, बचपन में मैंने एक कविता याद की थी कि ‘आगे कदम, आगे कदम, आगे कदम, मित्रों धरो बलिदान के पथ पर कदम, पथ बंद है पीछे न चल और पीठ पर धक्का प्रबल, मत सोच कर ले फैसला बाहों में उत्साह भर, जीवन में समर के सैनिकों, संभव संभव को करो, कण-कण निमंत्रण दे रहा, रख आगे कदम, आगे कदम, आगे कदम”। यह कविता मुझे बार-बार याद आती रही , मैं इसे बार-बार गुनगुनाता रहा।

मुझे लगा की सिर्फ फिल्म सिटी स्थापित कर देने से या उसमें सिर्फ मारवाह स्टूडियो बना देने से काम नहीं चलेगा। आज 28 साल हो गए हैं मुझे मारवाह स्टूडियो चलाते हुए, मैं आज दावे से कह सकता हूं कि इन सालों के अंदर मैंने तकरीबन साढे चार हजार टेलीविजन प्रोग्राम 50 से भी ज्यादा चैनल के लिए, तकरीबन 150 फीचर फिल्मों के साथ में जुड़ा, 5000 ट्रेनिंग फिल्मों का मैंने निर्माण किया और मेरी प्रोडक्शन कंपनी ने 2600 शॉर्ट फिल्मों का प्रोडक्शन किया। अब मैं दावे से कह सकता हूं कि यह भी मेरे वर्ल्ड रिकॉर्ड का हिस्सा बन चुका है।

25 सालों की इस दौड़ में मैंने सीखा की जिंदगी मे आराम हराम है, आप जिंदगी में चैन से नहीं बैठ सकते , आपको हर पल में मुसीबत का सामना करना है, तब जाकर कहीं सफलता हासिल होती है और सफलता किस्मत नहीं है, बल्कि यह एक दिनचर्या है। आप अपने लिए छोटा सा मकसद धारण करिए और उस मकसद को आप पूरा कर लेते हैं, तो जो खुशी आपको उस मकसद को हासिल करने के बाद में होगी , वह खुशी फिर से एक नई ऊर्जा देती है ताकि आप अपना एक लक्ष्य फिर से ऊपर कर सकें। ऐसा ही कुछ मेरा मानना था और ऐसा ही कुछ मैंने किया।

मैं आपको फिर से अपनी उस दौड़ की तरफ ले जाना चाहता हूं जहां मैंने एक फिल्म स्टूडियो, एक फिल्म स्कूल, कई संस्थाएं स्थापित कर ली , लेकिन मैं वहां पर रुका नहीं। मुझे महसूस हुआ कि मुझे हायर एजुकेशन में जाना चाहिए और मैंने एशियन स्कूल ऑफ मीडिया स्टडीज की शुरुआत की और आज मुझे बड़ी खुशी है कि जिन तमाम नियमों को मैं आपके सामने रख रहा हूं उन नियमों को मैंने पहले खुद अपने जीवन में अपनाया। फिर उसी के आधार पर मैंने इन कॉलेजों का निर्माण किया।

मैंने एक कॉलेज से शुरू किया था, लेकिन आज मुझे बड़ी खुशी है कि इस वक्त मैं 12 कॉलेज इस देश में चला रहा हूं और इन 12 कॉलेजों के अंदर इसी तरीके से पढ़ाता हूं जिस तरह से मैं अभी बात कर रहा हूं। मैं चाहता हूं कि हमारे देश का हर नौजवान इन तमाम चीजों को सीखे, अपने दिल से लगा ले और मुझे यकीन है कि हमारे देश का हर छात्र, हर मेहनती शख्स कामयाब होगा और न केवल पैसे कमाएगा बल्कि नाम, इज्जत, शोहरत, मान और मर्यादा का भी हकदार होगा।

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