जेपी विशटाउन के खरीदारों का फिर छलका दर्द, फ्लैट लेने के लिए उठाई आवाज

ROHIT SHARMA / ABHISHEK SHARMA

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नोएडा :– जेपी विशटाउन के होम बायर्स ने आज नोएडा के सेक्टर-27 स्थित फार्च्यून होटल में प्रेस वार्ता का आयोजन किया। जिसमे बायर्स का दर्द साफ़ छलकता नजर आया। बायर्स का कहना है कि न सरकार और न ही आईआरपी की ओर से उन्हें कोई मदद मिली है। बायर्स ने जहां पर भी अपना हक लेने की कोशिश की वहीं पर उन्हें नीचे गिरा दिया गया।



जेपी बायर्स ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि 2008 में उन्होंने अपना फ्लैट बुक कराया था और 3 वर्ष का समय बिल्डर द्वारा पजेशन के लिए माँगा गया था, तीन वर्ष बीत जाने के बाद बायर्स ने फ्लैट का 90 फीसदी पैसा जमा करा दिया था। 11 वर्ष बीत जाने के बाद भी 20 हजार बायर्स खाली हाथ बैठे हैं न तो उन्हें फ्लैट मिला और न ही उनके द्वारा जमा किए गए पैसे मिले। बायर्स का कहना है कि उन्होंने ज़िंदगी भर की कमाई फ्लैट लेने में लगा दी। बायर्स इस आस में बैठे हैं कि जल्द से जल्द उन्हें उनका फ्लैट दिला दिया जाए।

बायर्स ने आरोप लगाया है कि एनसीएलटी द्वारा नियुक्त इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (आईआरपी) डेवलपर के पक्ष में काम कर रहा है, क्योंकि वह डेवलपर के दिवालियापन की घोषणा करने की दिशा बढा रहा है। उन्होंने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2000 करोड़ रुपये जमा करने के लिए कहा है, लेकिन उन्होंने 750 करोड़ रुपये जमा किए, और वह पैसा भी अटका हुआ है और परियोजना के पूरा होने के लिए उपयोग नहीं किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जेपी परियोजना में जयप्रकाश एसोसिएट लिमिटेड (जेएएल) को लाने की कोशिश कर रहा है। जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जेआईएल) के लेनदारों की समिति (सीओसी) में घर खरीदारों को शामिल किए जाने के बाद से, उनकी लड़ाई ओर अधिक मुश्किल हो गई है।

बॉयर्स का कहना है कि जो भी चाहते थे या जो उनका विचार था वह कभी होता नहीं दिख रहा है, अपनी बात कहने के लिए भी उन्हें यहाँ से वहाँ भटकना पड़ रहा है। सीओसी में उन्हें दिया गया स्थान सिर्फ एक दिखावा साबित हो रहा है। अपने अधिकार के लिए घर खरीदारों को हर बार एनसीएलटी इलाहाबाद के दरवाजे खटखटाने पड़ते हैं, जो वर्तमान में सप्ताह में केवल दो दिन बैठती है और उनके पास स्थायी न्यायिक सदस्य होते हैं।

स्थिति इतनी खराब है कि आज तक जेआईएल के सीआईआरपी के लिए कोई रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल नियुक्त नहीं किया गया है, और सीआईआरपी की 270 दिन की अवधि 6 मई, 2019 को समाप्त होने वाली है।

बायर्स का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है कि आईआरपी और गौर के बीच संबंधों में बहुत सारे भेद छिपे हैं। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्रमोटरों को अपने पास 2000 करोड़ जमा करने का आदेश दिया था, प्रमोटरों के हिस्से के अनुपालन में केवल 750 करोड़ जमा किए थे।

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