कंगना जी , आज मराठा गौरव का दिन है |

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By हास्यकवि विनोद पांडेय

आदरणीय बड़े वाले ठाकरे साहब स्वर्ग या नर्क जहाँ पर भी होंगे अपने सुपुत्र के इस मर्दानगी से परिपूर्ण कृत्य को देखकर तालियाँ पीट रहें होंगे | आज महाराष्ट्र का चीफ अपने पूरे दल-बल के साथ एक महिला के पीछे पड़ा हुआ है और इसे मराठा गौरव से जोड़ रहा है |

अभिव्यक्ति के आजादी की दुहाई देने वाला विपक्ष जब सत्ता में आता है तो सारा ज्ञान खूँटी पर टाँग देता है | एक अभिनेत्री जिसने अपना आधा जीवन महाराष्ट्र में ही खपा दिया ,उसके प्रति असहिष्णुता पर बोलने वालों की संख्या भी न के बराबर है |सहयोगी पार्टियों के हाथ बटेर लगे हैं ,वो भला क्यों बोलेंगे ? पर मैं हैरान हूँ राष्ट्रीय विपक्ष की महारानी और राजकुमार भी इस पर मौन हैं जबकि कंगना भी उसी प्रकार से एक महिला हैं जैसी महिला रेणुका चौधरी हैं |

पीएम मोदी के रेणुका पर की गयी हास्यपद टिप्पणी पर घंटों चीखने वाले सुरजेवाला कंगना के उत्प्रीड़न पर क्यों चुप हैं भई ? वो आत्मा कहाँ गयी जिस पर कभी बहुत बड़ा ठेस पहुँचा था | क्या सत्ता में शीर्ष पर बैठे एक मन बढ़े नेता का एक अभिनेत्री के ऊपर इस प्रकार से टिप्पणी करना जायज है ? क्या उद्धव ठाकरे का यूँ फटाफट कंगना का ऑफिस गिराना शोभा देता है ?आप या आपकी पार्टी के लोगों के जुबान पर ताला क्यों लगा है ?क्या हरामखोर का मतलब आपको नहीं पता या महिलाओं के प्रति उदारता का सीजन नहीं चल रहा है ? दरअसल ऐसा दोनों नहीं है | सच यह है कि आपके शब्दों की डिक्शनरी सत्ता और विपक्ष के हिसाब से बदल जाती है |

ऐसी कोई कार्यवाही योगी आदित्यनाथ के तरफ से हुई होती तो आप महिलाओं के अपमान पर लेक्चर देते फिरते |सच तो यह है कि है आपको सत्ता का दुरूपयोग करते केवल अमित शाह और योगी जी नजर आते हैं | हरामखोर अगर आपके किसी सहयोगी के मुँह ने निकले तो वो आशीर्वाद हो जाती है | राजनेताओं को छोड़िये मीडिया का एक धड़ा भी तटस्थ है | रविश जी को भी कंगना के उत्प्रीड़न में कुछ गलत नहीं नजर आ रहा क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा नहीं लगाया | क्या वहां की सरकार सुशांत के केस में सहयोग करती तो मराठा पुलिस का अपमान होता ? क्या पालघर की सच्चाई सामने लाते तो मराठा सरकार का अपमान होता ?

एक अभिनेत्री का ऑफिस गिरा कर उन्होंने बहुत बड़ा काम किया है | यह वीरता है जो हमें खीझ नजर आ रही है | यह खीझ है सुशांत के केस में सकारात्मक प्रगति का , यह खीझ है कंगना का सुशांत केस में मुखर हो कर बोलने का ,यह खीझ यह बड़े लेवल पर डग्स माफियाओं के पकडे जाने के डर का | सच तो यह है कंगना के साथ-साथ उन सभी को डराने की कोशिश है जो बॉलीवुड में मुखर होकर बोलते हैं क्योंकि अगर इसी रफ़्तार से सच्चाई सामने आती रही और दबे-दबाये लोग खुल कर बोलते रहे तो इडस्ट्री छोड़िये सरकार में शामिल कई बड़े बड़े-बड़े चेहरे बेनकाब होंगे |असली खीझ यही है ,असली डर यही है |

यह सब कुछ बहुत दुःखद है | राजनीति में इसको असली वाला ओछापन कहते हैं | लेकिनपूँछ दबी हो तो और कर भी क्या सकते हैं ?

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