मुहब्बत-इश्क़, वतनपरस्ती और सियासत पर तंज, राहत इन्दोरी ने खूब जमाया ग्रेटर नॉएडा में रंग!

स्टोरी: आशीष केडिया

फोटो वीडियो : रोहित शर्मा/ जीतेन्द्र

शनिवार रात इंडिया एक्सपो मार्ट, ग्रेटर नॉएडा में दैनिक जागरण ग्रुप द्वारा एक भव्य कवी सम्मलेन का आयोजन किया गया। इस कवी सम्मलेन का सञ्चालन दैनिक जागरण के ग्रेटर नॉएडा के ब्यूरो चीफ और वरिष्ठ पत्रकार धर्मेंद्र चंदेल द्वारा किया गया।

इस कवी सम्मलेन में देश के नामचीन कवियों और शायरों ने शिरकत की। मशहूर शायर राहत इन्दोरी की अध्यक्षता में आयोजित हुए इस कवी सम्मलेन में बड़ी संख्या में हर उम्र के लोगों मौजूद रहे और देर रात तक मुग्ध हो कविताओं का आनंद लेते रहे।
लम्बे इंतजार के बाद कवी-सम्मलेन जब आखिरी चरण में पहुंचा और जैसे ही संचालक ने राहत इन्दोरी को मंच पर काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया लोग अपनी सीट से उठ कर तालियां बजाने लगे।
राहत इन्दोरी ने भी किसी को निराश नहीं किया और एक के बाद एक शेरों  मुक्तकों और ग़ज़लों से ऐसा समां बाँधा की लोग और सुनने की ख्वाहिश करते रह गए. आते ही राहत इन्दोरी ने अपने अंदाज में लोगों को परखना शुरू किया और बोले, ” किसने दस्तक दी ये दिल पर, कौन है? आप तो अंदर हैं बाहर कौन है ?”
उन्होंने आगे सुनाया, “आग़ के पास कभी मोम को लाकर देखूं , हो इजाजत तो तुझे हाथ लगाकर देखूं, दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है, सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूं ” .
उनके मशहूर मुक्तक, ” फैसला जो कुछ भी हो मंजूर होना चाहिए, जंग हो या इश्क़ हो भरपूर होना चाहिए, कट चुकी है उम्र जिसकी सिर्फ पत्थर तोड़ते, अब तो उन हाथों में कहिनूर होना चाहिए “, पर जमकर लोगों ने तालियाँ बजाई।

फिर बात वतनपरस्ती की निकली तो उन्होंने बोला, “हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है, मुहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं”.

 

 

सियासी सूरमाओं के सामने चले राजनीतिक व्यंग के तीर :

इस भव्य कवी सम्मलेन में सांसद, विधायक, मंत्री समेत जिले के अनेक गड़मान्य व्यक्तियों की मौजूदगी में राहत इन्दोरी हास्याप्रद कटाक्षों के जरिये राजनीति को भी आइना दिखाने से नहीं चुके। इसके पश्चात उन्होंने संसद में होने वाले शोर-गुल पर भी एक तीखा कटाक्ष जड़ा और सबको हँसते हुए सोचने पर मजबूर कर दिया। 
बड़ी संख्या में मौजूद युवाओं की ओर देखते हुए उन्होंने पढ़ा, “ये कैंचियां हमे उड़ने से ख़ाक रोकेंगी, हम पैरों से नहीं हौंसलो से उड़ते हैं”.

अंतिम में राहत इन्दोरी ने अपने मशहूर ग़जलों और नग्मों से महफ़िल की समाप्ति की और लोगों ने खड़े हो कर दोनों हाथों से ताली बजा उनका अभिवादन किया।

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