किसान आंदोलन पर नोएडावासियों ने दी बेबाक राय, कुछ लोग किसानों के पक्ष में, तो कुछ ने किसानों को बताया गलत
ABHISHEK SHARMA
नोएडा-दिल्ली बाॅर्डर, यूपी गेट, सिंघु बॉर्डर पर सैंकड़ों की संख्या में किसान डटे हैं। कुछ दिल्ली के बुराड़ी में प्रदर्शन करने पहुंचे हैं, कुछ किसान संगठनों का कहना है कि यूपी समेत अलग-अलग राज्यों के किसान भी जुट सकते हैं। इन किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को वापस लिया जाए, उनकी बात सुनी जाए।
अब जब आंदोलन दिल्ली तक पहुंच गया तो केंद्रीय कृषि मंत्री कहते हैं कि सरकार किसान यूनियन से बात करने के लिए पूरी तरह तैयार है। उनको 3 दिसंबर यानि आज का आमंत्रण भेजा गया है, रास्ता निकाला गया है। लेकिन कृषि मंत्री को ऐसा भी लगता है कि किसानों के नाम पर सियासत हो रही है।
वहीं शाहीन बाग में धरने देने वाली बिलकिस दादी भी किसानों के समर्थन में आ गई हैं। मंगलवार को सिंधू बॉर्डर पर किसानों का समर्थन करने पहुंची दादी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। उन्होंने कहा कि हम किसानों की बेटियां हैं, हम किसानों के विरोध का समर्थन करेंगे। हम अपनी आवाज उठाएंगे, सरकार को हमारी बात सुननी चाहिए।
किसानों के देशव्यापी आंदोलन को लेकर नोएडा के प्रबुद्ध जन एवं समाजसेवी अपनी अलग-अलग राय रख रहे हैं। कुछ का कहना है कि जो असली किसान हैं, वह इस आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं। बल्कि जिन लोगों को किसानों के नाम पर राजनीति करनी हैं, वह लोग इस धरने को बढ़ावा दे रहे हैं। जबकि इस कानून में किसानों के खिलाफ कोई प्रावधान नहीं है।
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि किसानों के देशव्यापी आंदोलन को देखते हुए सरकार को कानूनों में बदलाव करना चाहिए और किसानों की मांगें जायज हैं।
*किसान आंदोलन पर नोएडावासियों की राय*
दिनेश सिंह का कहना है कि कितने फर्जी किसान नेता किसानों के नाम पर राजनीति करते करते मुख्यमंत्री बन गए, मंत्री बन गए और केंद्र सरकार में भागीदार रहे 20 साल तक लेकिन विकास के नाम सिर्फ झूठे वादे झूठे दावे और झूठे काम हुए हैं। ठीक उसी तरह से जिस तरह से हरिजन और पिछड़े के नाम पर राजनीति होती रही लेकिन उनका कोई विकास नहीं। कांग्रेस ने कुछ कार्य किए होते तो आज यह दर्दनाक स्थिति किसानों की नहीं हुई होती। कुछ प्रदेशों के किसान तो फिर भी बहुत सक्षम है और थोड़ा राष्ट्रीय राजधानी के आसपास के जिलों को छोड़ कर के चले जाएंगे तो किसान की स्थिति देखकर आंखों में आंसू आ जाएंगे।
समाजसेवी व आरडब्लयूए अध्यक्ष अमित गुप्ता का कहना है कि यह पिछले 30-40 सालों का गुस्सा है जो अब निकल रहा है। शायद इस बिल में इतनी कमियां नहीं है परंतु जो पिछले 30-40 साल में नहीं हुआ उसके कारण यह सब हो रहा है। हर आंदोलन में कुछ खराब लोग होते हैं इसका मतलब यह नहीं कि वह पूरा आंदोलन खराब हो जाए। इस आंदोलन को हम शाहीन बाग से नहीं जोड़ सकते। शाहीन बाग तो बिल्कुल ही अलग और बे फालतू की बात थी। इस आंदोलन में किसानो की हक की बात है। शायद पिछले 30 40 साल का गुस्सा अब निकल रहा है।
नोएडा के निवासी ए.एस आर्य का कहना है कि किसान कमजोर है, किसान बिखरा हुआ है। इस बार इस प्रकार की भीड़ हुई है, उसमें किस सोच के आदमी हैं, कितने सच्चे किसान हैं, कुछ कहना समझना उलझन है। क्या ऐसा बर्ताव आप एक रेहड़ीवाले या मिठाई वाले या किसीअन्य के साथ कर सकते हैं। शायद नहीं। फिर किसान के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों हो रहा है। किसान को अपने उत्पाद का दाम तय करने की आजादी होनी चाहिए। आखिर मेहनत वह करें और दाम हम डिसाइड करें यह कहां का न्याय है?
अनिता सिंह का कहना है कि आज मध्य प्रदेश में अपनी सब्ज़ी को किसान मवेशियों को खिलाने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि जो बैंगन शहर मे 30 रूपये बिक रहा है, पैदा करने वाले को 1/2 रूपया, मंडी में ले कर जाने की कीमत भी नहीं मिल रही है। यहाँ हम किसी पार्टी की बात न करके किसानों की बात करें तो अच्छा होगा, क्योंकि सभी का गाँव से किसानी से नाता है। अगर वह दुखी तो देश दुखी। उनकी ज़मीन और शरीर की मेहनत का कोई मोल नहीं मिलता, शहर मे मकान किराए पर लगता है और हर साल 10% बढ़ाने का तय किया जाता है।
नोएडावासी देवेंद्र का कहना है कि इस बिल की सबसे बड़ी खामी है कि इसमें एमएसपी के विषय में लिखित नहीं है कि अगर कोई उससे कम पर फसल लेगा तो किसान क्या करेगा। जो कम पर खरीदेगा उनके लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं है। क्योंकि एमएसपी को फिक्स करना आसान है लेकिन उसके लिए सजा का प्रावधान बहुत मुश्किल। क्योंकि पैदावार कम ज्यादा होने पर कोई भी सरकार एमएसपी पर खरीदने की हिम्मत नहीं दिखा सकी है। फिर चाहे वो किसी भी पार्टी की सरकार रही हो। इसके पीछे चाहे समस्या बजट की हो या अन्य कोई मुद्दा। या तो एमएसपी से कम कोई भी खरीदता पाया जाता है तो सरकार उसकी जिम्मीदारी सुनिश्चित करे या कोई दूसरा आर्थिक स्वरुप का खाका तैयार करे। अन्यथा धरनों के बीच में राष्ट्र विरोधी तत्व इसे दूसरी शक्ल देने में कामयाब होते जायेंगे फिर चाहे वो कोई पार्टी हो।