टेन न्यूज़ नेटवर्क के शो में शामिल हुई देश की मशहूर नृत्यांगना पद्म विभूषण व राज्यसभा सांसद डॉ सोनल मानसिंह, महत्वपूर्ण मुद्दों पर दी अपनी राय 

ROHIT SHARMA

Galgotias Ad

नई दिल्ली :– देश मे ऐसे अनोखे लोग होते है , जिन्होंने कड़ी परिश्रम करने के बाद एक बड़ा मुकाम हासिल करते है , उन अनोखे लोगों से प्रेरणा लेकर अपना भविष्य बनाना बड़ी बात होती है , क्योंकि उनके गुण हमारे जीवन को सरल बनाते है । इन महान हस्तियों के बारे में सुनना और देखना आज के समय दुर्लभ हो गया है , लेकिन इस मुश्किल को टेन न्यूज़ नेटवर्क खत्म कर रहा है । जी हाँ वो महान हस्तियां हमारे टेन न्यूज़ नेटवर्क के शो में देखने को मिल रही है । जिसके माध्यम से आप उनसे बहुत सीख सकते है ।

 

 

इसी कड़ी में आज टेन न्यूज़ नेटवर्क के “एक खास मुलाकात” शो में देश की मशहूर नृत्यांगना पद्म विभूषण व राज्यसभा सांसद डॉ सोनल मानसिंह शामिल हुई । आपको बता दें कि देश की मशहूर नृत्यांगना पद्म विभूषण व राज्यसभा सांसद डॉ सोनल मानसिंह का नाम विदेशों तक फैला हुआ है , उनके शो को देखने के लिए लोगों को काफी ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है , क्योंकि उनके शो में काफी ज्यादा भीड़ रहती है ।

वही इस कार्यक्रम का संचालन मशहूर नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव ने किया । ज्योति श्रीवास्तव ने अपनी पहचान अंतराष्ट्रीय स्तर पर बनाई हुई है , ज्योति श्रीवास्तव एक मशहूर कथक नृत्यांगना है , साथ ही एक लेखक और समाजसेवी भी है । ज्योति श्रीवास्तव ने देश की मशहूर नृत्यांगना पद्म विभूषण व राज्यसभा सांसद डॉ सोनल मानसिंह से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न किए , जिसका जवाब आसान भाषा मे देश की मशहूर नृत्यांगना पद्म विभूषण व राज्यसभा सांसद डॉ सोनल मानसिंह द्वारा सभी सवालों का जवाब दिए गए।

 

आपको बता दे की सोनल मानसिंह एक भारतीय शास्त्रीय नर्तक और गुरु भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्य शैली हैं; जो अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली में भी कुशल है। सोनल मानसिंह का जन्म मुंबई में हुआ | उनके दादा एक स्वतंत्रता सेनानी मंगल दास पाकवास थे, और भारत के पहले पांच गवर्नरों में से एक थे |

 

उन्होंने चार साल की उम्र में मणिपुरी नृत्य, नागपुर के एक शिक्षक से अपनी बड़ी बहन के साथ सीखना शुरू कर दिया, फिर सात साल की उम्र में उन्होंने पांडानल्लुर स्कूल के विभिन्न गुरूओं से भरतनाट्यम सीखना शुरू किया, बॉम्बे में कुमार जयकर सहित। उन्होंने भारतीय विद्या भवन और बीए से संस्कृत में “प्रवीण” और “कोविद” डिग्री ली है। एलफिन्स्टन कॉलेज, बॉम्बे से जर्मन साहित्य में(ऑनर्स)डिग्री हासिल की |

 

सोनल ने 1962 से पेशेवर नृत्य करना शुरू किया। उन्होंने भरतनाट्यम का प्रशिक्षण प्रोफेसर यू।एस कृष्ण राव और चंद्रभगा देवी से प्राप्त किया। उन्होंने विभिन्न प्रसिद्ध गुरुओं से ओडिसी नृत्य सीखा। सोनल एक प्रसिद्ध नर्तक के साथ-साथ एक प्रशिक्षित हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक भी हैं। उन्होंने प्रोफेसर के।जी। गिन्गे से शास्त्रीय संगीत सीखा है।

 

इस बहुमुखी नर्तकी ने दिवंगत मैलापुर के अभिनय में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया और वह एक प्रशिक्षित कुचीपुड़ी नर्तकी भी हैं। वह छऊ और भारतीय संगीत की एक विशेषज्ञ हैं, उन्होंने कई भारतीय पौराणिक कथाओं के माध्यम से कई नृत्य कलाएं बनाई हैं। उन्होंने अपने नृत्य के माध्यम से पर्यावरण की बचत, महिलाओं की मुक्ति जैसे मामले प्रदर्शित किए और इन सामाजिक मुद्दों पर नृत्य के माध्यम से अपनी चिंता व्यक्त की।

https://www.youtube.com/watch?v=bY_eeoSxXbw

जब इन्होंने कहा कि मुझे सिर्फ नृत्य करना है तो घर वाले नाराज हो गए। उनकी नाराजगी को नजरअंदाज कर इस कलाकार ने 1963 में अपना घर छोड़ दिया और अपने गुरु के पास चली गईं। बाद में उस कलाकार ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर जबरदस्त शोहरत कमाई। जीवन में तरह तरह की चुनौतियां आईं लेकिन उन्होंने हमेशा जीत हासिल की। उन्हें पद्मभूषण, पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। यहां तक कि जब मौजूदा सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के लिए नवरत्न चुने तो उसमें इन्हें भी जगह दी गई। चलिए अब आपको इस विश्वविख्यात कलाकार का नाम बता ही देते हैं। वो कलाकार हैं प्रख्यात भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्यांगना डॉ। सोनल मानसिंह।

 

 

महाराष्ट्र और दिल्ली दोनों ही राज्यों की मानी जाने वाली 74 वर्षीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने औपचारिक पढ़ाई की सबसे बड़ी डिग्री डी लिट हासिल की है। उन्होंने अपनी पढ़ाई भारतीय विद्या भवन, एलिफिंस्टन कॉलेज, मुंबई, जीबी पंत यूनिवर्सिटी, उत्तराखंड और संबलपुर यूनिवर्सिटी ओडीशा से की है। छह दशक से भरतनाट्यम और ओडीसी नृत्य की प्रस्तुति करनेवाली मानसिंह ने मनिपुरी, कुचिपुरी के साथ संगीत का भी प्रशिक्षण लिया है। वह डांसर, कोरियोग्राफर, शिक्षक, वक्ता और सामाजसेवी के रूप में मशहूर हैं।

 

 

उनकी उपलब्धियों में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1987), राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड (1991), इंदिरा प्रियदर्शिनी अवार्ड (1994), मध्य प्रदेश सरकार का कालीदास सम्मान (2006), सबसे कम उम्र में पद्म भूषण सम्मान (1992) शामिल है। वहीं साल 2003 में पद्म विभूषण पाने वाली देश की दूसरी महिला बनीं। सोनल मानसिंह साल 2003 से 2005 तक संगीत नाटक अकादमी की चेयरपर्सन भी रह चुकी हैं।

साल 2016 से वह इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर ऑफ आट्र्स की ट्रस्टी और सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ कल्चर की मेंबर हैं। उन्होंने साल 1974 में भीषण हादसे की शिकार होने के बावजूद मंच पर वापसी की और साल 1977 में दिल्ली में सेंटर फॉर इंडियन क्लासिक डांसेस की स्थापना कर सैकड़ों प्रशिक्षुओं की लगातार मदद कर रही हैं। साल 2002 में फिल्म निर्देशक प्रकाश झा ने सोनल मानसिंह के चार दशकों के डांस कैरियर पर केंद्रित एक डॉक्यूमेंट्री का निर्माण किया था।

डॉ सोनल मानसिंह ने कहा कि भारतीय होना एक गर्व की बात है , भारतीयता हमारे जीवन मे वसी हुई है , उसको लाकर नही रख सकते , लेकिन हमारे जीवन भारतीयता है उसको एहसास दिलवाते रहना चाहिए । जिस देश मे हम रहते है उस देश की संस्कृति , हवा , पानी हमारे  जीवन वसी हुई है । हमारे प्रबुज इस मिट्टी में जन्मे और इस मिट्टी में जा मिले , हम आने वाले समय मे इस मिट्टी में मिल जाएंगे ।आज हमारा देश ऊचाईयों पर दिख रहा है , हमे गर्व होना चाहिए कि भारतीय नागरिक है ।देश की संस्कृति , कला और संस्कारों को कभी भूलना नही चाहिए , साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी देश की संस्कृति से अवगत कराना चाहिए ।

 

साथ ही उन्होंने की मुझे आज युवा पीढ़ी से डर लगता है कि आज युवाओं की भाषा क्या है , शब्द बदल गए , अपने को ढालना , विचारों और परम्पराओ को ढालना ये आज सबसे बड़ी चुनौती हो गई है । उनके पास कैसे पहुचा जाए , ये कोशिश हमे करनी पड़ रही है , उसके लिए हमे सेतु बनाना पड़ रहा है , जिससे हमारी देश की परंपरा , विचार , संस्कृति से युवा जागरूक हो सके । जब लॉकडाउन हुआ था , तब मुझे सीखने की जरूरत पड़ी , किस तरह ऑनलाइन के माध्यम से कैसे काम किया जाए । आज समय बदल गया है ।

 

साथ ही उन्होंने कहा कि भारत एक सामाजिक श्रेणी भी है, जो समाज द्वारा रचित और स्वीकृत है। यह उस सामाजिक आकांक्षा का प्रतीक भी है जो एक आदर्श स्थिति की दिशा में जाने के लिए प्रेरित करती है। आधुनिक युग में एक स्वतंत्र जनतंत्र के रूप में एक राज्य की स्थापना हुई और सहमति से एक संविधान बना और सामाजिक आकांक्षा को एक मूर्त रूप मिला। हमने उसमें आवश्यकतानुसार बदलाव भी किया है। इस इकाई सदस्य के रूप में हमारी एक भारतीय पहचान है।

 

‘भारत देश’ के बारे में सोचने की एक बड़ी मुश्किल यह है कि हमारी अपनी परिभाषा के पैमाने हमारे अपने न होकर किसी और के दिए हुए हैं। वे हमारे बौद्धिक मानस में इतने गहरे पैठ चुके हैं कि अब हम अपने पैमाने के बारे में भरोसा ही नहीं कर पा रहे हैं और खुद को परिभाषित करने का अधिकार ही खोते जा रहे हैं। आर्थिक और तकनीकी प्रगति के पसराव की दुनिया में आज हमारा आत्म-संशय इतना गहराता जा रहा है कि ‘भारत’ और ‘भारतीयता’ की बात करना पुराना, दकियानूसी और इसलिए अप्रासंगिक माना जाने लगा है।

 

आज अपनी पहचान के लिए हम पश्चिमी देशों के विद्वानों के द्वारा प्रमाण और गवाही चाहते हैं। आज भारत की सांस्कृतिक विविधता को संपन्नता और समृद्धि के स्नोत के रूप में समझने की जरूरत है, जिसका उपयोग समाज के विकास में किया जाए। इसके लिए भारत को भारत के नजरिये से देखना होगा, बिना इस भय के कि भारतीय होना किसी क्षमायाचना की अपेक्षा करता है।

 

पद्मविभूषण डॉ. सोनल ने नृत्य और संगीत को जीवन का आधार बताया और कहा, “नृत्य ही वो सर्वश्रेष्ठ योग है, जो जीवन में प्रवाह उत्पन्न करता है.” उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के दशावतार का प्रसंग भी सुनाया और कहा, “कला, संस्कृति को सु²ढ़ करने का मार्ग सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् से होकर गुजरता है. जिसमें समानता, सौन्दर्य-बोध एवं कला-संस्कृति की झलक दिखती है |

 

प्रख्यात नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने मंदिरों में भारतीय वेशभूषा में प्रवेश करने की परैवी की है. राजधानी के विधानसभा परिसर में चल रहे तीन दिवसीय लोक-मंथन में सोमवार को ‘राष्ट्र निर्माण में कला, संस्कृति और इतिहास की भूमिका’ विषय पर सामूहिक सत्र को संबोधित करते हुए सोनल मानसिंह ने कहा, “मंदिरों में भारतीय वेशभूषा के साथ प्रवेश करने की आवश्यकता है. अन्य समुदाय के लोग अपने मस्जिद और गुरुद्वारों में वेशभूषा का विशेष ध्यान रखते हैं, जबकि हिन्दू समुदाय मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए जाते वक्त इन बातों का ध्यान नहीं रहते हैं. इसे हमें ठीक करना होगा |

 

सोनल ने आगे कहा, “भारत के ऋषि-मुनि तथा गुरुओं ने जो दृष्टांत हमें दिए, उनमें उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि यह उनकी उक्ति है, बल्कि उन्होंने हमेशा अपने दृष्टांत में कोट किया कि ऐसा उन्होंने सुना है. समाज की रीतियों, परंपराओं को ऋषियों ने आगे बढ़ाया है |

 

उन्होंने आगे कहा, “वर्तमान दौर में हम सामाजिक कुरीति के रूप में स्त्री और पुरुष में बढ़ते हुए भेद को पाते हैं. इस भेदभाव के कारण कला, संस्कृति सहित अन्य क्षेत्रों में कार्य करने वाली महिला विदुषियों को वह स्थान नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वह हकदार हैं |

 

सोनल ने कहा कि मानव का सबसे बड़ा धर्म स्व-धर्म है। हमारा गौरवशाली अतीत इस बात का साक्षी है कि अपने धर्म, सिद्धान्त, देश और मानवता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहें। स्व-धर्म के माध्यम से संस्कृति और परम्परा की जड़ें मजबूत करें। उन्होंने कहा कि नमस्ते करते हैं, इसका सीधा संबंध हमारी संस्कृति और जीवन दर्शन से है। हम नमन करेंगे तभी हमारा प्रणाम स्वीकार होगा।

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति और दर्शन की परम्परा ‘श्रुति परम्परा’ है, जो वेदों से चली आ रही है। यह अत्यन्त प्राचीन है, सनातन है और यह ऋषियों से हमें प्राप्त हुई है। निरोगता में पंचतत्व की प्रधानता है। उन्होंने कहा कि आज विश्व भारतीय संस्कृति का अनुपालन कर रहा है।

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