Statement issued by Sri Manish Sisodia, Sri Gopal Rai, Sri Pankaj Gupta and Sri Sanjay Singh

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4 मार्च को आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में पार्टी में आये गतिरोध को दूर करने के लिए श्री योगेन्द्र यादव व श्री प्रशांत भूषण को PAC से मुक्त करके नई जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया गया।

पार्टी ने यह सोचकर PAC से हटाने के कारणों को सार्वजनिक नहीं किया कि उससे इन दोनों के व्यक्तित्व पर विपरीत असर पड़ेगा, लेकिन बैठक के बाद मीडिया में लगातार बयान दे कर माहौल बनाया जा रहा है जैसे राष्ट्रीय कार्यकारणी ने अलोकतांत्रिक और गैरजिम्मेदार तरीके से यह फैसला लिया। मीडिया को देखकर कार्यकर्ताओ में भी यह सवाल उठने लगा है की आखिर इनको PAC से हटाने की वजह क्या है। पार्टी के खिलाफ मीडिया में बनाये जा रहे माहौल से मजबूर हो कर पार्टी को दोनों वरिष्ठ साथियों को PAC से हटाये जाने के करणों को सार्वजनिक करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनावों में ऐतिहासिक जीत मिली है। यह जीत सभी कार्यकर्ताओं की जी-तोड़ मेहनत की वजह से संभव हुई।

लेकिन जब सब कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए अपना पसीना बहा रहे थे, उस वक़्त हमारे तीन बड़े नेता पार्टी को हराने की पूरी कोशिश कर रहे थे। ये तीनों नेता हैं – प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव और शांति भूषण।

इनकी ऐसी कोशिशों के कुछ उदाहरण –

1. इन्होने, खासकर प्रशांत भूषण ने, दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं को फ़ोन कर कर के दिल्ली में चुनाव प्रचार करने आने से रोका। प्रशांत जी ने दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं को कहा – “मैं भी दिल्ली के चुनाव में प्रचार नहीं कर रहा। आप लोग भी मत आओ। इस बार पार्टी को हराना ज़रूरी है, तभी अरविन्द का दिमाग ठिकाने आएगा।” इस बात की पुष्टि अंजलि दमानिया भी कर चुकी हैं की उनके सामने प्रशांत जी ने मैसूर के कार्यकर्ताओं को ऐसा कहा।

2. जो लोग पार्टी को चन्दा देना चाहते थे, प्रशांत जी ने उन लोगों को भी चन्दा देने से रोका।

3. चुनाव के करीब दो सप्ताह पहले जब आशीष खेतान ने प्रशांत जी को लोकपाल और स्वराज के मुद्दे पर होने वाले दिल्ली डायलाग के नेतृत्व का आग्रह करने के लिए फ़ोन किया तो प्रशांत जी ने खेतान को बोला कि पार्टी के लिए प्रचार करना तो बहुत दूर की बात है वो दिल्ली का चुनाव पार्टी को हराना चाहते है. उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश यह है की पार्टी २०-२२ सीटों से ज्यादा न पाये, पार्टी हारेगी तभी नेतृत्व परिवर्तन संभव होगा.

4. पूरे चुनाव के दौरान प्रशांत जी ने बार-बार ये धमकी दी कि वे प्रेस कांफ्रेंस करके दिल्ली चुनाव में पार्टी की तैयारियों को बर्बाद कर देंगे. उन्हें पता था की आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर है. और अगर किसी भी पार्टी का एक वरिष्ठ नेता ही पार्टी के खिलाफ बोलेगा तो जीती हुई बाजी भी हार में बदल जाएगी.

5. प्रशांत भूषण और उनके पिताजी को समझाने के लिए, कि वे मीडिया में कुछ उलट सुलट न बोलें, पार्टी के लगभग 10 बड़े नेता प्रशांत जी के घर पर लगातार 3 दिनों तक उन्हें समझाते रहे। ऐसे वक़्त जब हमारे नेताओं को प्रचार करना चाहिए था, वो लोग इन तीनों को मनाने में लगे हुए थे।

6. दूसरी तरफ पार्टी के पास तमाम सबूत है जो दिखाते है की कैसे अरविंद की छवि को ख़राब करने के लिए योगेन्द्र यादव जी ने अखबारों में नेगेटिव ख़बरें छपवायी. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अगस्त माह 2014 में दी हिन्दू अख़बार में छपी खबर जिसमे अरविंद और पार्टी की एक नकारातमक तस्वीर पेश की गयी. जिस पत्रकार ने ये खबर छापी थी, उसने पिछले दिनों इसका खुलासा किया कि कैसे यादव जी ने ये खबर प्लांट की थी. प्राइवेट बातचीत में कुछ और बड़े संपादकों ने भी बताया है कि यादव जी दिल्ली चुनाव के दौरान उनसे मिलकर अरविंद की छवि खराब करने के लिए ऑफ दी रिकॉर्ड बातें कहते थे।

7. ‘अवाम’ भाजपा द्वारा संचालित संस्था है। ‘अवाम’ ने चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी को बहुत बदनाम किया। ‘अवाम’ को प्रशांत भूषण ने खुलकर सपोर्ट किया था। शांति भूषण जी ने तो ‘अवाम’ के सपोर्ट में और ‘आप’ के खिलाफ खुलकर बयान दिए।

8. चुनावों के कुछ दिन पहले शांति भूषण जी ने कहा कि उन्हें भाजपा की CM कैंडिडेट किरण बेदी पर अरविंद से ज्यादा भरोसा है। पार्टी के सभी साथी ये सुनकर दंग रह गए। कार्यकर्ता पूछ रहे थे कि यदि ऐसा है तो फिर वे आम आदमी पार्टी में क्या कर रहे हैं, भाजपा में क्यों नहीं चले जाते? इसके अलावा भी शांति भूषण जी ने अरविंद जी के खिलाफ कई बार बयान दिए।

ये दुःख की बात है कि जब सब कार्यकर्ता अपना पसीना बहा रहे थे, तो हमारी पार्टी के ये सीनियर नेता पार्टी को कमज़ोर करने और पार्टी को हराने में लगे थे।

जरा सोचिये आज अगर दिल्ली चुनाव में इनकी चाहत के अनुरूप आम आदमी पार्टी हार गई होती तो दिल्ली में कौन जीतता और फिर आम आदमी पार्टी की इमानदारी के सिद्धांतों की लड़ाई का भविष्य क्या होता? देश में बदलाव के सपने को लेकर अपना सब कुछ दांव पर लगा कर दिन-रात काम करने वाले कार्यकर्ताओं व देश की जनता की उम्मीदों का क्या होता??? ऐसे बहुत सारे प्रश्नों और तथ्यों पर गहनता से विचार-विमर्श के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने बहुमत से दोनों वरिष्ठ साथियों को PAC से मुक्त करके नई जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया.

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