Text of PM’s remarks at the inauguration of the birth centenary celebrations of Rani Gaidinliu
उपस्थित सभी महानुभाव,
रानी मां की शताब्दी हम मनाने जा रहे हैं। मैं नतमस्तक हो करके रानी मां को आदर पूर्वक अंजलि देता हूं और रानी मां का जीवन हम सबको प्रेरणा देता रहे, देश की एकता, अखंडता बरकरार रखते हुए विकास की नई ऊंचाइयों को हम कैसे पार करते चलें – उन सपनों को जिन्होंने संजोया था उनमें एक रानी मां भी थीं।
ये हमारे देश का बड़ा दुर्भाग्य रहा कि आजादी के इतने सालों के बाद भी आजादी के अनेक वीर सेनानी हिन्दुस्तान के अनेक कोने में, वे अभी भी इतिहास के झरोखे से ओझल हैं। किसी भी जीवन समाज का ये दायित्व बनता है कि अपने महान पराक्रमों की, महान इतिहास की पूंजी को संजोए रखना चाहिए और पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसका संक्रमण होता रहना चाहिए। गाथाएं जुड़ती जानी चाहिए। और तभी समाज के लिए जीने की, मरने की प्रेरणा मिलती है।
और कभी-कभार ये भी सोच रही है कि इतिहास राजघरानों के आस पास, शासकों के आस-पास ही चित्रित होता रहता है। भारत एक अलग प्रकार की परम्परा से पला-बढ़ा देश है। यहां जन-सामान्य के पराक्रमों को अधिक महत्व दिया जाता है। इस देश की सोच कभी ये नहीं रही है कि ये देश राजाओं-महाराजाओं ने बनाया है, ये देश शासकों ने बनाया है। इस देश की मूलभूत सोच ये है कि यह देश सामान्य जनों ने बनाया है। उनके पुरूषार्थ से, उनके पराक्रम से, उनके पसीने की महक से ये देश पल्लवित हुआ है। और इसलिए जब तक हम इन शासकों के दायरे से बाहर नहीं आते, राजकर्ताओं के दायरे से बाहर नहीं आते, हमारा कैमरा वहां से बाहर नहीं हटता, तब तक हमें जन-सामान्य की शक्ति का एहसास नहीं होता है।
और जब रानी मां की शताब्दी मना रहे हैं तब, दिल्ली में भी कई लोग सवाल पूछते थे कि भई ये कौन है? क्या है? ये क्या कर रहे हो आप? दोष उनका नहीं है जो सवाल पूछते थे। दोष हमारी व्यवस्थाओं में जो विकृति आई है उसका है। और उसके कारण ऐसे अनगिनत महापुरूष जो हमें पल-पल प्रेरणा दे सकते हैं – या तो हम उन्हें भूल गए है या जान-बूझ करके उनको भूला दिया गया है। और किसी भी समाज को ये भूलना ऐसी बातों पर दुर्लक्ष करना शक्ति नहीं देता है, प्रेरणा नहीं देता है। मैं मानता हूं कि अगर पिछले 60 साल में रानी मां जैसे नार्थ इस्ट के अनेक महापुरूष है, रानी मां के अतिरिक्त भी अनेक महापुरूष है। नार्थ इस्ट की मैं बात हर रहा हूं। जिनका जीवन इतना प्रेरक रहा है। अगर पिछले 60 साल में हमारी सभी पीढि़यों को – दो पीढ़ी, तीन पीढ़ी, चार पीढ़ी जिसका भी हिसाब लगा लें – उनको अगर उनकी शिक्षा मिली होती, उनकी बातों को जानने का अवसर मिला होता तो मैं नहीं मानता हूं कि उस भूमि में कभी अलगाववाद का विचार भी पैदा हो सकता था। क्योंकि ये लोग थे जो देश की एकता के लिए जीते थे, मरते थे।
कोई कल्पना कर सकता है कि एक परम्परा और इस परम्परा के मुखिया जादोनांग – उनको भर जवानी में फांसी हो जाए क्योंकि वे आजादी का आवाज बने थे। और एक प्रकार से ऐसी स्थिति में पूरा संगठन बिखर सकता है। लोगों को लग सकता है कि भई इतनी छोटी आयु में ये तो फांसी पर चढ़ गए, अब हम क्या कर सकते है? मन में तीव्र इच्छा होन के बाद भी बिखराव संभव है। हम कल्पना करें कि रानी मां में वो कौन सा संगठन कौशल्य था कि उन्होंने 12-15 साल की उम्र के बीच में अपने गुरु जी की फांसी के बाद उस झंडे को झुकने नहीं दिया, संगठन को बिखरने नहीं दिया परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अपने आप को झोंक दिया?
गुरु की इच्छा अनुसार, शिष्य जीवन लगा देते हैं। और उनके संवाद की भी चर्चा होती है। मैं मानता हूँ गुरु-शिष्य परम्परा का कोई इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता है, कि अपने गुरु फांसी के तख्ते पर चढ़ जाएँ और एक १३ साल की युवती उस झंडे को हाथ में ले, और शिष्या के नाते, गुरु के आदर्शों का पालन करने के लिए अपनी ज़िन्दगी खपा दे, ये बहुत कम होता है। जवानी के महत्त्वपूर्ण वर्ष जेल में गुजार दे। और ये व्यक्तित्व छोटा नहीं होगा कि पंडित नेहरू उनको मिलने के लिए जेल चले जाएं – ये असामान्य व्यक्तित्व होगा, तभी तो ये संभव हुआ होगा। जब सुभाष बाबू कांग्रेस के अध्यक्ष बने तब गुजरात के हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस के जीवन में… वरना जो सशस्त्र क्रांति में विश्वास रखते थे, उनके लिए एक वर्ग था कुछ बोलने का साहस नहीं करता था। लेकिन रानी मां एक अपवाद थी कि गुजरात के अंदर जब हरिपुरा कांग्रेस हुई सुभाष बाबू अध्यक्ष बने, रानी मां की मुक्ति के लिए वहां प्रस्ताव किया गया। ये अपने आप में कांग्रेस पार्टी का उस समय का एक बहुत बड़ा अहम निर्णय था।
लेकिन देश आजाद होने के बाद भी रानी मां को जेल से बाहर निकलने में तीन-चार महीने लग गए थे। आजादी के बाद भी तीन-चार महीने रानी मां जेल में थी। और इससे भी बड़ा दुर्भाग्य – इससे भी बड़ा दुर्भाग्य ये था कि आजादी के बाद रानी मां को राजनीतिक कारणों से… और हमारे यहां जो राजनीति में विकृतियां आई हैं, उन विकृतियों के दर्शन वहां होते है कि आजादी के बाद रानी मां को उनके गांव में प्रवेश नहीं दिया गया।
आजादी के.. हिन्दुस्तान में जो रानी मां आजादी के लिए अपने जीवन को खपाने के लिए तैयार थीं, जिसने कभी अंग्रेजों के सामने सर नहीं झुकाया था उस रानी मां को 10 साल तक अपने ही आजाद हिन्दुस्तान में भूगर्भ में रहना पड़ा था। और कारण? सांप्रदायिक असहिष्णुता थी। वे प्रकृति में पूजा करती थी, वो प्रकृति को परमात्मा मानती थी। और आज जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया संकट में है, उनको अगर रानी मां के उपदेश है, जो कि प्रकृति प्रेम के उपदेश है, वो अगर समझे, तो आज environment के जो issues हैं, उसका जवाब भी रानी मां की philosophy में मिलता है।
वे प्रकृति की पूजा का पुष्कार थीं। और उनकी सारी जो परम्परा थी उनका जो हरा का संप्रदाय रहा, वो प्रकृति पूजा का संप्रदाय रहा है। लेकिन उसको नकारने वालों ने उनका जीना दुष्कृत कर दिया था। और हिन्दुसतान में 10 साल तक उनको भू-गर्भ में जीवन बिताना पड़ा था। और बाद में जा करके स्थितियां थोड़ी संभली। वो अपने सेवा कार्य में जीवन खपाती रही थी। समय-समय पर मान-सम्मान के कारण कभी-कभार वो खबरों में आया करती थीं। लेकिन उन्होंने जीवन के अंत तक समाज सेवा का अपना मार्ग नहीं छोड़ा था।
प्रकृति पूजा विपरीत माहौल में भी उस मार्ग को बनाए रखना, लोगों को प्रेरित करते रहना। और संघर्ष का राह अपना करके नहीं, वो वीरांग्ना थीं, लेकिन समन्वय का मार्ग अपना करके उन्होंने आजादी के काल में पूरा जीवन समाज के उत्कर्ष के लिए लगाया था। और उस अर्थ में, मैं मानता हूं कि खास करके हमारे इन-इन इलाके – सिर्फ नार्थ-इस्ट नहीं हिन्दुस्तान के ऐसे कई कोने है – जहां के महापुरूषों को हम अगर हमारे प्रेरणा पुरूष के रूप में हमारे प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में अगर प्रस्तुत करते रहते तो हमारी नई पीढि़यों का.. महात्मा गांधी को रानी मां सशस्त्र क्रांति के कारण जेल गई थीं। उनके गुरूदेव को फांसी हुई थी। लेकिन रानी मां खुद 1932-35 के कालखंड में महात्मा गांधी का गौरव गान पूरे नार्थ-ईस्ट में किया करती थी। एक प्रकार से महात्मा गांधी को पूरे नार्थ ईस्ट में परिचित कराने का बड़ा काम रानी मां ने किया था।
और वो हमेशा सपना देखती थी, वो कहती थी कि नागा कल्चर, नागा परंपरा ये सब बना रहना चाहिए। मुझे नागा होने का गर्व है। लेकिन ये सब देश की एकता और अखंडता के लिए होना चाहिए। ये रानी मां उस समय कहती थीं। वो संपूर्ण भारत की आजादी की बात करती थी। और वो उनकी भाषा में कहा करती थी कि गांधी एक दिन राजा बनेगा, महात्मा गांधी एक दिन राजा बनेगा। क्योंकि वो लोकतंत्र की परिभाषा जो उनके वहां थी, उसके हिसाब से, लेकिन मूल बात ये थी कि भारत स्वतंत्र होगा। और महात्मा गांधी उसका सुकांत समाज का नेतृत्व करेगें। ये सपने रानी मां लगातार बोलती रहती थीं। अपने लोगों को वो प्रशिक्षित करती रहती थीं।
जिन्होंने इस प्रकार का जीवन दिया, हम सबका दायित्व बनता है कि ऐसे हमारे जितने भी अज्ञात महापुरूष है… आज कभी हम अंडमान-निकोबार के सेल्युलर जेल में चले जाए, और वहां देश की आजादी पर मर-मिटने वालों की सूची देखें, तो पता तक नहीं चलता है कि इतिहास के किस कोने में होगा। वहां तो एक पत्थर पर उनके नाम छपे हुए हैं। लेकिन शायद देश के और कोने में, शायद जिस गांव में वो पैदा हुए होंगे, उन गांव के बच्चों को भी मालूम नहीं होगा कि हमारे गांव का कोई व्यक्ति था जो आज से 100 साल पहले अंडमान-निकोबार की जेल में जा करके, भारत मां की आजादी के लिए लड़ रहा होगा – पता नहीं होगा।
ये जो हमने बहुत बड़ा… हमारे समाज जीवन का घाटा रहा गया है, कमी रह गई है। इसको हम सबने पूरा करना है। हमारी यूनिवर्सिटीज़ Research scholars research करते है। क्यों न हमारी universities में हर batch में एक-दो, एक-दो students ऐसे भी हो, कि जो समाज के ऐसे लोगों पर research करें, Ph.D. करें? अगर नार्थ-ईस्ट के इन महानुभावों, सामाजिक क्रांति करने वाले, राष्ट्रीय क्रांति करने वाले, अगर इन पर हमारी universities research करें – और उस इलाके की नहीं दूसरे छोर की – साउथ से, पश्चिम से, उत्तर से, तो जा करके उनको लगेगा “अच्छा भई, ऐसे-ऐसे लोग यहां थे?”
ये integration के लिए भी बहुत बड़ा काम आता है। और मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में जो बात मणिपुर के मुख्यमंत्री जी ने कही है, नागालैंड के मुख्यमंत्री जी ने कही है। उनकी भावना, उसको आदर करते हुए हम कैसे आगे बढ़ाएं हम इन चीजों को? ये पूरे देश का दायित्व बनता है। जिसको हमें पूरा करना चाहिए।
उसी प्रकार से आखीर रानी मां ने अपनी जिंदगी अपनी जेल में क्यों खपा दी? व्यक्तिगत तो कुछ पाने के लिए नहीं था। सपना यही था कि हमारा देश नई ऊँचाइयों को पार करे, प्रगति करे। और देश तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब कि पूर्वी भारत प्रगति नहीं करता, जब कि उत्तर-पूर्व प्रगति नहीं करता, जब तक ये हमारी अष्ट लक्ष्मी प्रगति नहीं करती है।
और इसलिए विकास की इस बात को लेकर के आपने देखा होगा इस सरकार ने infrastructure के लिए सबसे ज्यादा धन नार्थ-इस्ट के लिए लगाया है। क्योंकि एक बार infrastructure बन जाएगा तो वहां तो… मैं उस इलाके में रहा हूँ मुझे मालूम है क्या परमात्मा के आशीर्वाद हैं देश के अन्य भू-भाग को पता तक नहीं है कि क्या ईश्वर के अशीर्वाद इस भू-भाग पर है। थोड़ा सा Connectivity का मामला बन जाए, आप देखिए मैंने इन दिनों University के Students को कहा था कि जरा टूरिस्ट के नाते आप वहां जाने की आदत तो डालो।
पिछले साल गए काफी विद्यार्थी। वो हैरान हो गए वहां के जीवन को देख करके। वो आकर के लोगों को बताते रह गए कि अरे भई हमने वहां ये, देखा वो देखा। हमें लगातार जोड़ना है। जैसे अरूण जी ने कहा, बंग्लादेश सीमा विवाद का समाप्त होना उसका जो सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो भारत के हित में है, वो ये है कि अब हमें हमारे नार्थ-इस्ट के साथ जुड़ने में जो कठिनाइयां थी, उस कठिनाइयों से मुक्ति मिल गयी है। एक प्रकार से Geographically, नार्थ-इस्ट हमारे बहुत निकट आ गया है। वरना वो इलाका था जो बंग्लादेश में होने के कारण, हमारी Connectivity नहीं थी, अब सरल हो गया है। जैसे ही Infrastructure बनेगा, इसका फायदा मिलने वाला है।
नार्थ-इस्ट के State Capitals को Railway से जोड़ने में बहुत तेजी से काम चल रहा है। नार्थ-इस्ट हिंदुस्तान का Organic Capital बन सके, इतना सामर्थ्य रखता है। आपने दुनिया भर के पाइनेपल टेस्ट किए होंगे कभी एक बार नार्थ-इस्ट जा करके वहां पाइनेपल का टेस्ट कीजिएगा, पता चलेगा कि परमात्मा ने क्या दिया है, क्या दिया है!
मैं एक बात का उल्लेख करता हूँ ….देखिए, हमारे जेलियांग जी कहते है कि आप सिर्फ पाइनेपल का उल्लेख क्यों करते हैं? हमारे मिर्ची का उल्लेख क्यों नहीं करते हैं? बहुत कम लोगों को मालूम होगा, सारी दुनिया में सबसे हॉट चिली कहीं की है तो वो नागालैंड की है। ये-ये विविधताओं भरा हुआ देश है। आर्थिक विकास में ये क्षेत्र बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि हिंदुस्तान उनका विकास करेगा। उनका विकास, हिंदुस्तान के विकास का एक नया कारण बनेगा – ऐसा मैं देख रहा हूँ।
और इसलिए नार्थ-इस्ट के विकास को हम प्राथमिकता दे करके आगे बढ़ रहे हैं। नागालैंड, यहां पर आजादी के पहले से ही, अतिवाद, उग्रवाद, अलगाववाद – ये स्वर उसके साथ शस्त्र जुड़ गये। हर सरकारों ने कोई-न-काई प्रयास किया। कुछ, कभी सुधार आया, कभी फिर रूकावट आयी, सुधार आया, फिर रूकावट आयी – क्रम चलता रहा। हर किसी का अपना-अपना सहयोग रहा है। किसी एक सरकार को इसकी क्रेडिट न जाती है, और न लेनी चाहिए। हर किसी ने अच्छा करने में कोई न कोई योगदान किया है। और उसी का परिणाम है कि आज नागालैंड में उन लोगों के साथ सफल वार्ता हुई है। मुख्य धारा से जुड़ करके कंधे-से-कंधा मिला करके, न सिर्फ नागालैंड का विकास, न सिर्फ नार्थ-इस्ट का विकास – पूरे हिंदुस्तान के विकास का सपना सबने देखा है।
मुझे विश्वास है कि ये जो यात्रा प्रारंभ हुई है, साथ-साथ चलने की यात्रा प्रारंभ हुई है, वो उत्तम परिणाम दे करके रहेगी। और देश नई ऊँचाइयों को प्राप्त करेगा। आज रानी मां की स्मृति में, ये coin… यहां बैठे हुए लोगों को अंदाज नहीं होगा, नार्थ-इस्ट के घरों में इस coin का क्या सात्विक मूल्य होगा, जिसका हम अंदाज नहीं कर सकते हैं।
उनके लिए ये एक ऐसी पवित्र घटना के रूप में देखा जाएगा। इतना बड़ा ये प्रेरक व्यक्तित्व रहा है। सरकार के लिए खुशी की बात है कि हम इस महान विभुति की जीवन के साथ वर्तमान को जोड़ने में सफल हो रहे हैं, और भविष्य के निर्माण के लिए उन व्यक्तित्व से हमेशा-हमेशा हमें प्रेरणा मिलती रहेगी, ताकत मिलती रहेगी, इसी शुभभाव के साथ मैं फिर एक बार रानी मां के चरणों में वंदन करता हूँ। उनका आशीर्वाद बन रहे, और हम सब मिल करके रानी मां का “देश समृद्ध हो, देश एक हो, देश अखंड हो” – उन सपनों को पूरा करने के लिए कोई कमी न रहे, इसी एक कल्पना के साथ, बहुत-बहुत शुभ कामनाएं।
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