‘द ब्रदरहुड’ पर सेंसर बोर्ड की सारी आपत्तियां खारिज.

the-brotherhood

Galgotias Ad

ब्रदरहुडपर सेंसर बोर्ड की आपत्तियां खारिज

देश में सांप्रदाायिक सौहार्द्र का प्रशंसनीय प्रयास है डॉक्यूमेंटरी फिल्म द ब्रदरहुड: फिल्म ट्रिब्यूनल

-फिल्म ट्रिब्यूनल ने सेंसर बोर्ड की आपत्तियों को गलत करार दिया

-फिल्म को यूए की बजाय यूवी कैटेगरी में प्रदर्शित करने का आदेश

नई दिल्ली। बिसाहड़ा कांड की पृष्ठभूमि में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बनी डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ को फिल्म ट्रिब्यूनल ने मंजूरी दे दी है। फिल्म देखने के बाद ट्रिब्यूनल ने कहा, यह देश में हिन्दू और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने वाला प्रशसंनीय प्रयास है। सेंसर बोर्ड की आपत्तियों का कोई आधार नहीं है। फिल्म न केवल बिना काट-छांट के प्रदर्शित होगी बल्कि सेंसर बोर्ड को यूए की बजाय यूूवी सर्टिफिकेट देने का आदेश दिया है।

सांप्रदायिक सौहार्द्र और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बनी डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ पर भी बोर्ड को कई आपत्ति थीं। महज 24 मिनट की फिल्म में तीन बड़े कट लगाने का आदेश बोर्ड ने दिया था। उसके बाद भी बोर्ड यू/ए सर्टिफिकेट देना चाहता था। जबकि निर्माता यूवी सर्टिफिकेट मांग रहे थे।

डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ का निर्माण जर्नलिस्ट पंकज पाराशर ने किया है। यह फिल्म बिसाहड़ा गांव में अखलाख हत्याकांड (दादरी लिंचिंग केस) के बाद पैदा हुए हालातों की पृष्ठभूूमि में ग्रेटर नोएडा के दो गांवों घोड़ी बछेड़ा और तिल बेगमपुर के ऐतिहासिक रिश्तों पर आधाारित है। निर्माता और निर्देशक पंकज पाराशर ने बताया, फिल्म की कहानी और विषयवस्तु लोगों के लिए प्रेरणादायक है। घोड़ी बछेड़ा गांव में भाटी गोत्र वाले हिन्दू और तिल बेगमपुर गांव में इसी गोत्र के मुस्लिम ठाकुर हैं। लेकिन घोड़ी बछेड़ा गांव के हिन्दू तिल बेगमपुर गांव के मुसलमानों को बड़ा भाई मानते हैं। मतलब, एक हिन्दू गांव का बड़ा भाई मुस्लिम गांव है। फिल्म बताती है कि अखलाख हत्याकांड जैसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से यहां के सामाजिक ताने-बाने पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां के लोग इसे केवल राजनीति करार देते हैं।

बोर्ड की आपत्तियां खारिज

बोर्ड ने तीन कट लगाने का आदेश दिया था। पहली आपत्ति थी कि हिन्दुओं और मुसलमानों के गोत्र एक नहीं हो सकते हैं। दूसरी आपत्ति ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गांव में 02 अप्रैल 2016 को एक मस्जिद की नींव वैदिक मंत्रोच्चार के साथ रखने के दृश्य पर थी। सेंसर बोर्ड का कहना था कि ये सांप्रदायिकता विरोधी तथ्य हैं। निर्माता-निर्देशक ने ट्रिब्यूनल के सामने ऐतिहासिक दस्तावेज पेश किए। ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस मनमोहन सरीन, सदस्यों शाजिया इल्मी और पूनम ढिल्लों ने सुनवाई के दौरान फिल्म देखी। फिल्म देखने के बाद ट्रिब्यूनल ने एकमत आदेश पारित किया है। सेंसर बोर्ड की आपत्तियों को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया है। ट्रिब्यूनल ने कहा, यह डॉक्यूमेंटरी फिल्म देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र और खासतौर से सबसे बड़े हिन्दू और मुस्लिम संप्रदायों के बीच एकता का संदेश देने के लिए एक प्रशंसनीय प्रयास है। दृश्यों का हटाने का सेंसर बोर्ड का देश निराधार है।

निर्माता पंकज पाराशर ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी से संबंधित एक वाक्य को हटाने के लिए हमने खुद माननीय ट्रिब्यूनल के सामने सहमति दी है। उससे फिल्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। दो दृश्यों पर बेवजह के कट और सर्टिफिकेट की श्रेणी पर हमें आपत्ति थी। जिसे अपील के जरिए हमने चुनौती दी थी। ट्रिब्यूनल ने दोनों  कट खारिज कर दिए हैं। सर्टिफिकेट यूए की बजाय यूवी श्रेणी में सेंसर बोर्ड को देने का आदेश दिया है। ट्रिब्यूनल ने डॉक्यमेंटरी की प्रशंसा की है। जिसके लिए हम लोग उनके आभारी हैं।

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.