विश्व हिन्दू परिषद् के पूर्व केन्द्रीय मंत्री व सांसद बैकुंठ लाल शर्मा “प्रेम” नहीं रहे

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      नई दिल्ली. सितम्बर 28, 2019. दिल्ली में दो बार सांसद तथा विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मंत्री रहे जुझारू नेता श्री बैकुंठ लाल शर्मा “प्रेम” उर्फ़ प्रेम सिंह “शेर” का आज नई दिल्ली में निधन हो गया. वे 90 वर्ष के थे. उनका पार्थिव शरीर रविवार प्रात: 9 बजे से सोमवार प्रात: 8  बजे तक दक्षिणी दिल्ली के राम कृष्ण पुरम, सेक्टर 6 स्थित विश्व हिन्दू परिषद् मुख्यालय में अंतिम दर्शनों के लिए रखा जाएगा. अंतिम संस्कार दिल्ली के निगम बोध घाट में सोमवार सुबह 9 बजे किया जाएगा.

       विहिप उपाध्यक्ष श्री चम्पत राय ने उन्हें किसी भी पद-प्रतिष्ठा से ऊपर रह कर समाज के हर वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र-धर्म के लिए आजीवन समर्पित व्यक्तित्व करार दिया है. उन्होंने उनकी दिवंगत आत्मा की शान्ति तथा परिजनों को धैर्य प्रदान करने की प्रभु से प्रार्थना की है.

       विस्तृत जानकारी देते हुए विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री विनोद बंसल ने बताया कि 17 दिसंबर 1929 में अविभाजित भारत के सियालाकोट में जन्मे श्री बैकुंठ लाल शर्मा वाल्याकाल से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े तथा मात्र 18 वर्ष की अल्पायु में हुई भारत विभाजन की विभीषिका से उनके बाल मन पर गहरा प्रभाव पडा. उन्होंने भारतीय सेना में नौकरी की तथा बेटे को मर्चेंट नेवी में भर्ती कराया. किन्तु दुर्भाग्य से उनका वह इकलौता बेटा एक जहाज के साथ ही डूब जाने से उनसे सदा के लिए अलग हो गया. श्री प्रेम ने दशकों तक विश्व हिन्दू परिषद् दिल्ली के महामंत्री के रूप में कार्य करते हुए राजधानी के हिन्दुओं की विविध समस्याओं का निराकरण कराया. झंडेवालान देवी मंदिर मुक्ति का कार्य हो या श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन हेतु दिल्ली से राम भक्तों को संगठित करने का, उनका उत्साही नेतृत्व जग जाहिर है.

       वे दो बार दिल्ली के सांसद रहे तथा बाद में राजनीति में व्याप्त भृष्टाचार से छुब्द होकर उन्होंने वहां से सन्यास लेकर पुन: विश्व हिन्दू परिषद् का कार्य किया. वे विहिप के केन्द्रीय मंत्री संरक्षक व मार्गदर्शक रहे. श्री अशोक सिंहल जी का उनसे विशेष लगाव था. बाबरी विध्वंस मामले में वे अभियुक्त भी थे. अखंड हिन्दुस्थान मोर्चा के संस्थापक संरक्षक रह कर उन्होंने एक मासिक पत्र “अखंड भारत” का सम्पादन भी किया जिसे वे विशेष रूप से सेना के अधिकारियों तथा देश के प्रतिष्ठित प्रशासनिक अधिकारियों को भेजते थे. इस पत्र को उन्होंने अपनी सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन से चलाया.

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