(08/08/2019) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस आयुक्त से यह जानना चाहा कि प्राथमिकी (एफआईआर) में उर्दू या फारसी के शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है, जबकि शिकायतकर्ता इनका इस्तेमाल नहीं करते हैं।
साथ ही अदालत ने कहा कि प्राथमिकी में भारी-भरकम शब्दों के बजाय सामान्य भाषा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वही इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने दिल्ली पुलिस से कहा कि प्राथमिकी शिकायतकर्ता के शब्दों में होनी चाहिए और इसमे ‘लच्छेदार भाषा’ का इस्तेमाल नहीं किया जाए, जिनका मतलब शब्दकोश में ढूंढना पड़ता हो।
अदालत ने कहा कि पुलिस आम आदमी का काम करने के लिए है, सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जिनके पास उर्दू या फारसी में डॉक्टरेट की डिग्री है। पीठ ने दिल्ली पुलिस से कहा, “अत्यधिक लच्छेदार भाषा, जिनका अर्थ शब्दकोश में ढूंढना पड़े, वो इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। एफआईआर शिकायतकर्ता के शब्दों में होनी चाहिए , एफआईआर भारी भरकम शब्द की जगह आसान भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। लोगों को जानना होता है कि क्या लिखा गया है। यह अंग्रेजी के इस्तेमाल पर भी लागू होता है , भारी भरकम शब्दों का इस्तेमाल नहीं करें।
अदालत ने पुलिस आयुक्त को एक हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने के कहा है कि उर्दू-फारसी का इस्तेमाल एजेंसी(पुलिस) करती है या शिकायतकर्ता करते हैं।
बहरहाल अदालत ने इस विषय की सुनवाई 25 नवंबर के लिए सूचीबद्ध कर दी । अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दिल्ली पुलिस को एफआईआर में उर्दू या फारसी के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
वहीं, पुलिस की ओर से पेश हुए दिल्ली सरकार के अतिरिक्त अधिवक्ता ने कहा कि एफआईआर में इस्तेमाल किये गए उर्दू और फारसी के शब्दों को थोड़ी सी कोशिश कर समझा जा सकता है।