चुनाव में मिड-डे-मील सप्लाई करने वाली एनजीओ की कटी चांदी.

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लोकसभा चुनाव में प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के व्यस्त रहने से जहां बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है, वहीं मीड डे मिल वितरण करने वाली एजेंसियों की भी चांदी कटी है। स्कूल में टीचर नहीं रहने के कारण बच्चे भी स्कूल नहीं पहुंचे, जिसके चलते करीब 20 फीसदी कम मीड डे मिल का वितरत किया गया है।
फरवरी के अंतिम सप्ताह में चुनाव आयोग ने आचार संहिता लागू कर दी थी। जिसके बाद जिले में चुनाव की तैयारियां भी तेज कर दी गई। जिले में 10 अप्रैल को मतदान संपन्न हुआ है। चुनाव को सकुशल संपन्न कराने के लिए जिले में स्थित प्राथमिक विद्यालयों के लगभग 70 फीसदी शिक्षकों को ड्यूटी पर लगा दिया गया था। जिससे अधिकांश स्कूलों में एक ही शिक्षक बचे और कई स्कूलों को बंद करना पड़ा था। स्कूल में शिक्षकों के न होने के कारण बच्चे भी आने से कतराने लगे। कुछ बच्चे आए भी तो वह मिड डे मील खाकर वापस चले गए। एक महीने से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई। लेकिन इसका सबसे अधिक फायदा मिल डे मिल वितरण करने वाली एनजीओ को मिला है। अमूमन हर महीने औसतन 60 फीसदी बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति दर्ज होती है और एनजीओ को 60 फीसदी बच्चों के लिए खाना बनाकर सप्लाई करना पड़ता है। लेकिन चुनाव के चलते जब शिक्षक ड्यूटी में लग गए और उनके चलते बच्चे भी स्कूल नहीं आए, तो उनकी उपस्थित अचानक घटकर करीब 40 से 42 फीसदी रह गई। जिससे एनजीओ को फायदा मिला। इस एक महीने तक एनजीओ द्वारा 20 फीसदी कम भोजन की सप्लाई करनी पड़ी है। जबकि इन्हें औसतन 60 फीसदी बच्चों की उपस्थिति के आधार पर भुगतान किया जाएगा। मिड डे मील के प्रभारी अधिकारी पुनित का कहना है कि बच्चों की औसतन उपस्थिति 60 फीसदी मानकर ही भुगतान किया जाता है।



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