मास्क या कफ़न – करना है आपको चयन

वरिष्ठ कवि ,लेखक एवं मंच संचालक पंकज शर्मा

Galgotias Ad

12/04/2021: ।। छुपे रहो तुम जहां कहीं भी छुपे हुए हो, मौत तुम्हें धप्पा करने को निकल चुकी है ।।

कोरोना ज़िंदगी को रौंद रहा है। रोज़ कितने ही परिचित-अपरिचित एक तस्वीर बनकर रह जा रहे हैं। अबकी जो हो रहा है वो असहनीय है। वो पत्थर कर दे रहा है। वो सुन्न कर दे रहा है। वो काठ कर दे रहा है।

नीचे जो पहली तस्वीर देख रहे हैं वो अमित अज्ञेय आत्मन जी की है/थी
सनातनी जीवन पद्धति, आध्यात्मिक व्यक्तित्व, अमित जी से परिचय नहीं था मेरा कोई, लेकिन उनका जाना मन को झकझोर रहा है। वो चार-पांच दिन पहले अपने कोरोना संक्रमित पिता को अंतिम विदाई देकर लौटे थे। अब वो दुनिया से चले गए। आज उनकी मां भी कोरोना से जूझती हुईं दुनिया को विदा कह गईं। मृत्युपरांत संस्कारों की तो कौन बात करे, यहां तो मृत्यु के दंश को भी सहन कर पाना परिवार के लिए असंभव हो चला है।

दूसरी तस्वीर प्रयागराज के एडवोकेट अंजनी त्रिपाठी जी की है/ थी। इसी महीने महाकाल के यहां हाजिरी भी लगाई थी। कल इनके पिता इस दुनिया से चले गए। आज कोरोना इन्हें भी ले गया।

सूचनाएं मिलती हैं तो दिल दहल जाता है। सूरत के श्मशान में ये लड़ाई छिड़ गई गई पैसे देकर पहले अंतिम संस्कार कराया गया है। टोकन मिले हैं। लाशें मोक्ष की अग्नि का इंतज़ार कर रही हैं। मध्य-प्रदेश के कई शहरों में, महाराष्ट्र के कई शहरों में, दिल्ली में। लाशें इंतज़ार में हैं।

कहीं 25, कहीं 40, कहीं 8, कहीं 10, बुजुर्ग, नौजवान, बच्चे सब एक साथ एक चिता पर स्वाहा।

आह ! ये कौन सा दौर आ गया। खबरें तो ये भी हैं कि बेटे ने पिता का शव लेने से इंकार कर दिया। असमर्थता जता दी। सामाजिक संस्थाएं उन शवों का अंतिम संस्कार या सुपुर्द-ए-ख़ाक कर रही हैं जिनके अपने मौत की ख़बर के बाद मोबाइल स्विच ऑफ कर ले रहे हैं।

मशालें बुझ रही हैं, दीपकों की लौ फड़फड़ा रही है। रस्सियां हाथों से छूट रही हैं।
सरकारें क्या कर रही हैं ? संस्थाएं क्या कर रही हैं ? कोरोना कुछ है ही नहीं बस एक षड़यंत्र है सरकारों का ? अगर आप भी ऐसा सोच कर मास्क नाक के नीचे कर रहे हैं या वाह-वाहियों के लिए भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं तो आप अपने साथ अपने परिजनों को भी मौत के संकट की तरफ धकेल रहे हैं।

आपको अगर लग रहा है कि आप मास्क नहीं लगाएंगे तो कौन देख लेगा। मौत देख लेगी, शर्तिया

नया वैरिएंट बहुत ख़तरनाक है। किसी को को नहीं छोड़ रहा। रक्षा कीजिए अपनी ताकि आप दूसरों के रक्षक बन सकें। आस्थाएं बची रहेंगी अगर आप बचे रहेंगे। उत्सवों के दिन बचे रहेंगे अगर आप बचे रहेंगे। बहुत कठिन समय है। नफरत की हद तक जाकर दूरियां बनाइए।

सूत्र: https://www.facebook.com/100002504569422/posts/3880329262060521/?d=n

Leave A Reply

Your email address will not be published.