मान-सम्मान के लिए शिक्षित होना बेहद जरुरी, बिमटेक विद्या केंद्र कर रहा नारी सशक्तिकरण पर कार्य

प्रोफ़ेसर ऋषि तिवारी बिमटेक

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Greater Noida 08 August : जब से ईश्वर ने सामाजिक कार्यों को करने की सदबुद्धि दी एवं बिमटेक और खास तौर पर डॉ.हरिवंश चतुर्वेदी के कुशल मार्गदशन में इस कार्य को विधिवत करने का अवसर प्राप्त हुआ। कई ऐसी मार्मिक घटनाओं से साक्षात्कार हुआ कि वे एक तरफ प्रेरणा श्रोत है तो दूसरी और मानवीय संबंधों को झकझोर देने वाली भी है। घटना दस दिन पुरानी है।

“बिमटेक विद्या केंद्र” परी चौक मेट्रो स्टेशन वाले प्रोजेक्ट पर एक महिला आयी जिसका नाम पूजा (परिवर्तित नाम), उम्र ये ही कोई 48-50 के आसपास होगी। वेशभूषा से भी बहुत ही साधारण परिवार से प्रतीत होती थी। विद्या केंद्र की एक शिक्षिका ने हमसे उनका परिचय कराया और बताया कि पूजा “अक्षर ज्ञान” की क्लास ज्वाइन करना चाहती हैं | पूजा जी क्यों पढ़ना चाहती है एवं कितना पढ़ना चाहती है, यह कहानी बताते – बताते वे रोने लगी।



पूजा की एक बेटी एवं एक बेटा है, बेटी एमबीए करके नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैं और स्वाभाविक तौर पर अच्छी पगार भी पा रही है। बेटा भी बीबीए कर चुका है और अपने पिता के छोटे से व्यवसाय में हाथ बंटाने के साथ साथ एमबीए की भी तैयारी कर रहा है। पति की तुगलपुर में छोटी सी दुकान है और पूजा स्वयं भी वर्षों से कुछ विभिन्न प्रकार की मेहनत मजदूरी करके घर की आर्थिक दुर्बलता को सुधारने के प्रयास में पूरी ईमानदारी एवं श्रद्धा से लगी हुई है।

दोनों बच्चे अभी अविवाहित है और घर के आर्थिक हालात भी काफी कुछ ठीक हो चुके है। दोनों बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके है और ऊपरी सतह पर सब ठीक चल रहा है परन्तु अंदर ही अंदर पूजा जी बहुत ही टूटी हुई है, थकी हुई है एवं बहुत ही दुखी है, किन्तु हार नहीं मान रही है। फिर से जूझने को तैयार है, तैयार है एक नई जंग लड़ने को, उनको ज़रूरत है तो सिर्फ एक अवसर की। थोड़े से मार्गदर्शन की और प्यार भरे सहयोग की।

पूजा का दुःख है उनके अपने बच्चों द्वारा उनका अनादर और अनादर का कारण है उनकी अशिक्षा, उनका निरक्षर होना। बताते – बताते कई बार आंसुओं के रूप में छलके अपने दर्द को पौंछती है और बताती है कि किस तरह संघर्ष करके उन्होंने अपने आप को निरक्षर रखते हुए अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा का सपना सजोया और उसको पूरा भी किया। परन्तु अब वे ही बच्चे उनको अनपढ़, निरक्षर करकर अपमानित करते है। उनको अपने दोस्तों से मिलवाने में अपमानित महसूस करते है, अपने साथ कहीं बाहर लेकर जाने में उनको शर्म आती है। बेटी बोलती है कि आप तो अनपढ़ है, हमारी “फीलिंग्स” को नहीं समझ सकती हो। रोते-रोते पूछती है हमसे कि “सर, आप बताइये कि अपनी कोख से जन्मी बच्ची की “फीलिंग्स” को समझने के लिए किताबी ज्ञान और पढ़ा-लिखा होना ही ज़रूरी है क्या?

बेटी अब बड़ी हो गई है, बड़ी कंपनी में काम करती है 40-50 हजार रुपए महीना कमाती भी है पर हमेशा उलाहना देती है कि आपकी वजह से हम अपने किसी “फ्रेंड” को घर पर भी नहीं ला पाते है। परन्तु उन रोती हुई आँखों में एक दृण शक्ति भी है आत्मविश्वास भी। वे कहती है “सर, अब मैं अपने लिए जीना चाहती हूँ, पढ़ना चाहती हूँ, अपने सारे काम खुद ही करना चाहती हूँ। दिखाना चाहती हूँ अपने बच्चों को कि जिनकी खातिर ताउम्र अपने आप को निरक्षर रखते हुए उनको उच्च शिक्षा दिलाई।

अब मैं भी शिक्षित होकर दिखाउंगी। आप तो बस अपने “जनता स्कूल ” में एडमिशन दे दो” और मैं निःशब्द एकदम से शून्य, जब पूछा कि क्या पढ़ना चाहती हो , कितना पढ़ना चाहती हो और क्यों पढ़ना चाहती हो तो बहुत ही मासूमियत परतुं दृंढ़ता से बताती है कि इतना पढ़ना चाहती हूँ कि मोबाइल में अपने जानने वालों के “नंबर्स सेव” कर लूँ और ज़रूरत पड़ने पर उनसे मदद ले सकू या उनसे बात कर सकूँ। क्योंकि अब बच्चों का तो कोई भरोसा नहीं है। थोड़े बहुत शब्द पढ़ना सीख लूँ और फिर अपने बच्चों से कह सकूँ कि मैं अब अनपढ़ नहीं हूँ।

उसी दिन से उनके विधिवत “अक्षर ज्ञान” की शिक्षा प्रारम्भ की गई तो पता चला की उनकी आँखों की रौशनी कम है। लगन की दाद देनी होगी, उसी दिन पूजा ने चश्मा भी ले लिया। अब वे “बिमटेक विद्या केंद्र ” की नियमित “छात्रा” है, समय पर आना, पूरी ईमानदारी और लगन के साथ सीखना एवं औरों को भी प्रेरित करना, ये पूजा जी की खूबी है। कक्षा ख़तम होने पर केंद्र के लिए श्रमदान भी करती है। गाँव में, बस्ती में जाकर अन्य अशिक्षित महिलाओं को जाग्रत करने एवं उन्हें केंद्र तक लाने का कार्य वे “बिना कहे” पूरी ईमानदारी से कर रही है।

पूजा ने हिम्मत नहीं हारी और एक नई मंज़िल की ओर बढ़ चली, पर न जाने ऐसी कितनी पूजा हैं इस समाज में। अशिक्षित होने के कारण अपमानित होकर जी रही है या यूँ कह लें कि घुट -घुट कर मर रही है। चंद संस्थाओं के भरोसे या सरकार को कोसने से तो काम होने से रहा, सबको अपनी सामर्थ के अनुसार अशिक्षा जैसे कलंक को दूर करने हेतु प्रयास करने होंगे।

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