नाशूर बनती जम्मू कश्मीार समस्या ?

जम्मू-कश्मीर के हालात दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। इंडिया टुडे समूह के एक स्टिंग ऑपरेशन में इस बात का खुलासा होने के बाद कि कश्मीर में अमन चैन को भंग करने के लिए पाकिस्तान ने हुर्रित कांफ्रेंस के माध्यम से अपना कालाधन झोक रखा है। हुर्रित कांफ्रेंस के देशद्रोही नेता नईम ने कैमरे के सामने यह स्वीकार किया है कि कश्मीर में जब तक काला पैसा आता रहेगा, घाटी की सड़कों और गलियों में बर्बादी का नंगा नाच चलता रहेगा। इस स्टिंग ऑपरेशन के सार्वजनिक होने के बाद एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि कश्मीर में पत्थरबाजी और आग सुलगाने के पीछे असली ताकत जो काम कर रही है वह है पाकिस्तान। ऐसे में अहम सवाल यह है कि इस गूढ़ होती कश्मीर समस्या का समाधान कैसे हो ?
एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान कश्मीर में आग सुलगाने की खातिर हाल ही में लगभग 400 करोड़ रुपये झोक चुका है। पाकिस्तान का कालाधन साउदी अरब और कतर के माध्यम से कश्मीर पहुंचता है। इस कालाधन को अलगाववादियों तक पहुंचाने में दिल्ली स्थित बल्लीमारन और चांदनी चौक के हवाला व्यापारी भी अहम भूमिका निभाते हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन ने एक बात तो साफ कर दी है कि कश्मीर में स्थानीय निवासी पत्थर अपनी मर्जी से नहीं बरसा रहे। इसके पीछे छिपी हुई है पाकिस्तान की कुत्सिक मानसिकता है, जिसके माध्यम से वह भारत में शांति और सौहार्द को भंग करना चाहता है।
ध्यान रहे कि कश्मीर की समस्या कोई एक दिन में पैदा नहीं हुई। इसको समझने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा। जब हमारा देश आजाद हुआ तो उस दौरान हमारे देश में 570 स्वतंत्र रियासतें थीं। अंग्रेजों ने सभी रियासतों को उनकी मनमर्जी पर छोड़ दिया था कि वे पाकिस्तान या भारत में कहीं भी शामिल हो जाएं।
देश के त्तकालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की एक गलती ने कश्मीर समस्या को नासूर बना दिया। जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान अपने साथ रखना चाहता था, जबकि कश्मीर के राजा हरीसिंह कश्मीर को सवतंत्र देश बनाएं रखना चाहते थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध चल रहा था। चूंकि कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान और चीन से मिलती हैं। ऐसे में ब्रिटेन इस पक्ष में था कि हरीसिंह कश्मीर का विलय पाकिस्तान में कर दे। लार्ड माउंटबेटन राजा हरीसिंह के पास पाकिस्तान में कश्मीर विलय का प्रस्ताव भी लेकर गए थे, जिसे हरी सिंह ने अस्वीकार कर दिया था।
ब्रिटेन की मंशा को समझते हुए पाकिस्तान ने अक्टूबर 1947 में कश्मीर में हमला कर दिया। हालांकि भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ पटेल ने अपनी सूझबूझ से राजा हरी सिंह को कश्मीर का विलय करने के लिए राजी कर लिया। और भारतीय सेना को कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने के लिए भेज दिया। लेकिन भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय लार्ड माउंटबेटेन ने बेहद चालाकी के साथ पंडित नेहरू को कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाने के लिए राजी कर लिया। नेहरू ने यूएन में यह प्रस्ताव जनवरी 1048 में रख दिया। उसके बाद इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया और इसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं।
लेकिन पाकिस्तान ने घाटी में जिस तरीके से भोले:भाले लोगों को दिग्भ्रमित करने का कुचक्र रचा है, वह बेहद चिंताजनक है। कश्मीर समस्या का समाधान महज पाकिस्तान की मंशा का पर्दाफाश करने से नहीं होगा। केंद्र सरकार को इस समस्या का समाधान बेहद संवेदनशीलता और संजीदगी के साथ खोजना होगा। सरकार को प्रायोजित गतिविधियों को रोकने के लिए अर्जुन के लक्ष्यभेदी बाणों के समान प्रहार कर पाकिस्तानी कुचक्र को भेदना होगा । इसके लिए पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों को विशेष प्रशिक्षण देना होगा। वहीं घाटी के बेरोजगार युवाओं को रोजगार में लगाने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। कुला मिलाकर इस मुद्दे पर सरकार जितना अधिक पारदर्शिता के साथ काम करेगी, नतीजा उतना ही स्पष्ट होने वाला है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)