MAI #MATHURA NAGARI HOON , GHATAL HOON SATTA JE CHATONSE @YADAVAKHILESH
मैं मथुरा नगरी हूँ,घायल हूँ सत्ता की चोटों से,
कैसे कहूँ वेदना अपनी इन झुलसाये होठों से,
मैं तो प्रेम रंग में डूबी मदमस्तों की नगरी थी,
होली के रंगों में छायी प्रेम सुधा की बदरी थी,
वंशीवट पर बजी बांसुरी,मैं खुल कर इठलाई थी,
मैं कान्हा के बाल रूप पर मंद मंद मुस्काई थी,
मैं मीरा का प्रेम ग्रन्थ थी,सूर दास की स्याही थी,
वासुदेव की लीलाओं की पावन एक गवाही थी,
मैं यमुना के निर्मल तट पर ग्वालों के संग झूमी थी,
गोवर्धन से वृन्दावन तक कृष्णप्रेम मे घूमी थी,
लेकिन आज बहुत घायल हूँ,ह्रदय कष्ट में रोया है,
कांधों पर अपने मैंने चौबिस लाशों को ढोया है,
लुटी पिटी हूँ,पूछ रही हूँ लखनऊ के सरपंचो से,
मेरा सीना क्यों घायल है कट्टों और तमंचो से,
मोहन की मुरली को आखिर किसने चकनाचूर किया,
किसने दो सालों तक गुंडों को सहना मंजूर किया,
लगता है अपने ही कुत्ते पाल रहे थे नेता जी,
रामवृक्ष की जड़ में पानी डाल रहे थे नेता जी,
क्या कारण था,मथुरा की रखवाली नही करा पाये,
दो सालों से बाग़ जवाहर खाली नही करा पाये,
जिस में सारी खीर पकी है,बोलो बर्तन किसका था,
दो सालों तक इसके पीछे मौन समर्थन किसका था,
20 लाख में दो वर्दी वालों का मरण भुलाया है,
अब देश की पुकार कहे,वर्दी की यही कहानी है,
खुद नेता का हुक्म बजाएं,खुद देनी कुर्बानी है.
कब तक खेल चलेगा भईया,अब जवाब देना होगा,
आने वाले हैं चुनाव सबका हिसाब देना होगा!
गीता भारव्दाज