शिक्षा क्षेत्र में ‘स्किल डेपलपमेंट प्रोग्राम’ मोदी सरकार की सबसे बडी उपलब्धि, शिक्षकों की आवाज करेंगे बुलंद : अनिल अग्रवाल, राज्यसभा सांसद

Abhishek Sharma

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Noida : पूरे देश में ही कोरोना महामारी का दौर चल रहा है वर्तमान में मरीजों की संख्या 13 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है। ऐसे में सबसे अधिक नुकसान शिक्षा क्षेत्र को झेलना पड़ रहा है। छात्रों की पढ़ाई अधूरी रह रही है, ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं लेकिन उसका भी उतना अधिक प्रभाव नहीं हो रहा है। वहीं उच्च शिक्षा की भी हालत यही है। टेन न्यूज़ नेटवर्क लगातार शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव एवं चुनौतियां पर कार्यक्रम आयोजित करता आ रहा है। हर बार पैनल में शिक्षा से जुड़े लोगों की राय ली जाती है। टेन न्यूज के डॉक्टर आर के खांडल ‘राष्ट्र पुनर्निर्माण ‘ संचालित कार्यक्रम में शिक्षा क्षेत्र की बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल हुई। खास बात यह है कि पैनल में राज्यसभा सांसद एवं राज्य मंत्री भी शामिल हुए।

कार्यक्रम के पैनलिस्ट

– अतुल गर्ग, स्वास्थ्य मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार एवं KIET एजुकेशन ग्रुप के संस्थापक

– डॉक्टर अनिल अग्रवाल, राज्यसभा सांसद एवं संस्थापक, एचआरआईटी एजुकेशन ग्रुप, गाजियाबाद

– महेंद्र अग्रवाल, चेयरमैन, सुंदरदीप ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, गाजियाबाद

-प्रमोद अग्रवाल, चेयरमैन, आई एम एस एजुकेशनल ग्रुप, गाजियाबाद

-अनिल कुमार अग्रवाल, चेयरमैन, आर आर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, लखनऊ

 

कार्यक्रम का संचालन उत्तर प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर डॉक्टर आरके खांडल ने किया। इस दौरान उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर पैनलिस्टस से सवाल-जवाब किए और शिक्षा का किसी भी देश की उन्नति और विकास में कितना अहम रोल होता है, यह बात लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कि। उनका मानना है कि शिक्षकों और एडुप्रेन्योर्स को उतना सम्मान नहीं मिलता है जितना कि उनको मिलना चाहिए। देश में जब तक शिक्षक को सम्मान नहीं मिलेगा तब तक देश का विकास नहीं हो सकता।

उन्होंने मांग की ‘देश में हर बड़े कार्यक्रम में शिक्षकों और एडुप्रेन्योर्स को भी उतना ही सम्मान दिया जाना चाहिए जितना किसी और क्षेत्र के हस्तियों को दिया जाता है। प्रोफेसर आरके खांडल का कहना है कि जब कोरोना वायरस महामारी कि देश में आएगी तो सरकारों ने सब को राहत पैकेज दिए सरकार ने मजदूरों , लघु उद्योग बड़े-बड़े आदमियों को राहत पैकेज दिए लेकिन किसी ने भी एक बार नहीं सोचा कि टीचिंग इंस्टीट्यूशनस को भी राहत पैकेज की जरूरत है जब एक शिक्षण संस्थान बंद होता है तो उस पर भी राजनीति की जाती है।

राज्यसभा सांसद डॉ अनिल अग्रवाल ने एडुप्रेन्योर्स की भूमिका पर अपनी राय रखते हुए कहा कि यह बात सही है कि एडुप्रेन्योर्स को बाकी क्षेत्र के लोगों के बराबर सम्मान नहीं मिल पाता है। लेकिन धीरे-धीरे इसमें बदलाव आ रहे हैं केंद्र और प्रदेश सरकार इस ओर हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकारें शिक्षाविद और एडुप्रेन्योर्स के न्याय को दिलाने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं।

उन्होंने आगे कहा कि हमारे देश की संस्कृति ऐसी रही है कि यहां शिक्षक को इतना ऊंचा दर्जा दिया गया है कि उसके सामने भगवान भी कम है। इसको लेकर दोहे भी बने हैं और हमारी सैकड़ों वर्षो की प्राचीन संस्कृति चली आ रही है, जिसमें शिक्षक का दर्जा भगवान के बराबर होता है। उन्होंने कहा कि मैं शिक्षकों और शिक्षाविदों की बात राज्यसभा सांसद होने के नाते देश और प्रदेश सरकार के समक्ष रखुंगा। मोदी सरकार देश में नई शिक्षा पॉलिसी लाने जा रही है, उस पर काफी समय से काम चल रहा है। क्योंकि लॉर्ड मैकाले की जो एजुकेशन पॉलिसी थी उससे ज्यादा एंटरप्रेन्योर, कुशल प्रशासक नहीं बन सकते थे। उन्होंने एक ऐसी शिक्षा पद्धति हिंदुस्तान में लागू की थी जो हिंदुस्तान की संस्कृति को बर्बाद करें और केवल बाबू टाइप के लोग बनाएं। अब उसमें धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है।

उन्होंने कहा कि मैं मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं, वह स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम है। बहुत सारे कॉलेजों में स्किल डेवलपमेंट के लिए सेंटर बनाए गए।

उन्होंने कहा कि सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान शिक्षण संस्थानों को भी मदद पहुंचाई है। जितने भी कॉलेज थे उनको एक टेंपरेरी ओडी लिमिट दी गई है, वह भी बहुत कम ब्याज दर पर, ताकि वह इस कठिन समय में अपना संस्थान सुचारू रूप से चला सके। उन्होंने कहा कि जो बात संचालक डॉ खांडल ने कही कि शिक्षकों को राष्ट्रपति के डिनर में, 15 अगस्त की परेड में आमंत्रित नहीं किया जाता है तो इस बात को सरकार तक पहुंचाया जाएगा और इस कार्यक्रम की आवाज पूरे देश में बुलंद होगी।

उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री एवं KIET एजुकेशन ग्रुप के संस्थापक अतुल गर्ग ने अपने वक्तव्य में कहा कि शिक्षकों का सम्मान होना बेहद जरूरी है लेकिन आजकल शिक्षक फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। एक के नाम पर 20 से ज्यादा लोग नौकरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षक की नौकरी करने वाला शिक्षक नहीं है, तो हर टीचर को क्यों सम्मान दिया जाए। उन्होंने बताया कि मैं एक मीटिंग में था, जहां तमाम बड़े नेता और हरदीप पुरी जी मीटिंग में मौजूद थे। इस दौरान सभी ने एक सुर में प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस का विरोध किया। जबकि इस बैठक में कई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी मौजूद थे। उन्होंने भी इसका विरोध किया। लेकिन हरदीप पुरी चाहते थे की प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान का 60 हजार करोड़ रुपए पढ़ाई के लिए देश से बाहर जा रहा है, देश के जो कर्णधार हैं शिक्षक व वाइस चांसलर हैं, उनके बच्चे 50-50 लाख रुपए देकर पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन हिंदुस्तान के अंदर कोई बदलाव मंजूर नहीं है। अगर कोई करता है तो कह देते हैं कंट्रोल खत्म होता नजर आ रहा है, इसका विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक भारत 2 लाख करोड़ के हथियार विदेशों से खरीद रहे थे, पहली बार हिंदुस्तान में हथियार बनाने की फैक्ट्री शुरू की गई।

उन्होंने शिक्षकों पर बात रखते हुए कहा कि आज शिक्षक की सैलरी 50 हजार से शुरू होकर ज्यादा से ज्यादा ₹4 लाख होती है। क्यों शिक्षकों को एक करोड़ नहीं मिलता है। उन्होंने कहा कि टीचर का सिलेक्शन प्रोसेस ही गलत है। जो प्रोसेस एक क्लर्क के लिए है, वही एक शिक्षक के लिए है। किसी भी विकसित देश में वहां की जो बेस्ट चीज है, वह एक टीचर है। लेकिन हमारे यहां कोई बच्चा टीचर नहीं बनना चाहता।

मंत्री अतुल गर्ग ने आगे कहा कि शिक्षा कार्डर पर चर्चा के लिए राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल के साथ एक बैठक बुलाएंगे। एचआरडी मिनिस्ट्री में शिक्षा के लिए कमेटी बनी है उसकी एक बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। इस बैठक में अलग-अलग क्षेत्र के लोग शामिल किए जाएंगे। बैठक के दौरान में कोशिश करूंगा कि शिक्षक कार्डर वाली बात पर चर्चा की जाएगी अगर इसमें कुछ आशा की किरण नजर आती है तो यूपी में लागू कराने की कोशिश की जाएगी।

वही सुंदरदीप ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस गाजियाबाद के चेयरमैन महेंद्र अग्रवाल ने अपने संबोधन में कहा कि 1947 में मिली आजादी के बाद भी गांव देहात में प्राइमरी स्कूल नहीं थे। मिडल और हाई स्कूल की भी बड़ी दिक्कत थी। सरकार ने इसके बारे में सोचना शुरू किया, 72 साल की आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में एक लेवल तक पहुंचे हैं। इस लेवल तक पहुंचने में काफी कठिनाई हैं और उन कठिनाइयों का जिस प्रकार से समाधान होना चाहिए था वह हर सेक्टर में हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में समाधान तो हुए लेकिन उस तरह से नहीं हुए जिस तरह से होने चाहिए थे। आज भी हमारे देश के हजारों बच्चे विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं।

उन्होंने कहा कि मैं कई वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा हुआ हूं। शिक्षा के लिए कई नीतियां बनती हैं, लेकिन वह सही ढंग से इंप्लीमेंट नहीं होती हैं। जिस प्रकार 2006 में इंजीनियरिंग कॉलेज खुले थे, उस दौरान सब संतुष्ट थे। उसके बाद कुछ प्राइवेट यूनिवर्सिटीज आ गई फिर भेदभाव हो गया। उस भेदभाव की भावना से हम लोग सही रास्ता भूल जाते हैं। जितने भी शिक्षा के क्षेत्र में इंस्टीट्यूशंस खुले हुए हैं सरकार के द्वारा उनकी मान्यता की जांच करने के बाद सरकार के सभी पैरामीटर पूरे होने चाहिए तभी हम लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि जब तक समाज में शिक्षक और शिक्षाविदों को इज्जत की दृष्टि से नहीं देखा जाएगा, तब तक शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव नहीं आएगा। लोगों को अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। शिक्षाविद डिग्री नहीं बेचते हैं बल्कि एक बच्चे के हुनर को बाहर लाने की कोशिश की जाती है।

आईएमएस एजुकेशनल ग्रुप के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने कहा कि पूरे देश में हर जगह शिक्षा की एक नीति होनी चाहिए, हर यूनिवर्सिटी के लिए एक जैसी नीति लागू होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों का एडमिशन हो सकता है। लेकिन एक इंस्टिट्यूशन में विदेशी छात्र को नहीं लिया जा सकता। प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस के लिए कई तरह की पाबंदियां हैं , लेकिन यूनिवर्सिटी अपने हिसाब से सीट बढ़ाकर एडमिशन कर सकती है। मेरी मांग है कि यूनिवर्सिटी एवं प्राइवेट इंस्टिट्यूशन के लिए एक जैसे नियम लागू होने चाहिए।

उन्होंने कहा कि अब तक कॉलेजों में छात्र-छात्राएं पढ़ लिख कर अपने लिए नौकरी देखते थे। लेकिन अब यह जिम्मा भी इंस्टिट्यूट के मत्थे मढ़ दिया है। इंस्टिट्यूट ने पढ़ा लिखा कर छात्र को किसी योग्य बना दिया है। अब यह इंस्टिट्यूट की जिम्मेदारी कैसे हो गई कि उसको नौकरी भी हमें ही दिलानी है। आज के समय में जॉब प्लेसमेंट लगभग हर शिक्षण संस्थान देने का दावा कर रहे हैं। अगर आज के समय में कोई प्लेसमेंट की गारंटी नहीं दे रहा है तो वह अच्छा इंस्टिट्यूट नहीं माना जाता है। इस मुद्दे पर भी लोगों को विचार करना चाहिए।

आर आर ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन, लखनऊ के चेयरमैन अनिल कुमार अग्रवाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि पहला बिंदु तो यह है कि भारत में ट्रस्ट या किसी सोसाइटी को ही इंस्टिट्यूशन चलाने की मान्यता मिल सकती है। मैं समझता हूं कि अगर इसमें प्राइवेट लिमिटेड या किसी भी काबिल व्यक्ति को शामिल किया जाए तो देश और शिक्षा के लिए बहुत ही बेहतर होगा। इससे हम दूसरे देशों की शिक्षा को चैलेंज कर सकते हैं।

उन्होंने दूसरा बिंदु रखते हुए कहा कि एकेटीयू में परीक्षाएं इंग्लिश में देनी पड़ती हैं। जबकि हमारे देश की मातृभाषा हिंदी है। हमारे देश में 75% लोग हिंदी माध्यम स्कूलों में पढ़ते हैं और लगभग 25% बच्चे ही अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाई ग्रहण करते हैं। परीक्षा हिंदी में देनी है या अंग्रेजी में इस बात का चयन छात्र के ऊपर ही छोड़ देना चाहिए। जिन बच्चों को हिंदी अच्छी आती है, वह अगर अंग्रेजी में पेपर देने के लिए बाध्य हो तो कैसे उसके अच्छे नंबर आ सकते हैं। इस स्थिति में वह छात्र केवल रट कर परीक्षा देकर पास होते हैं और कॉलेज, यूनिवर्सिटी उनको डिग्री दे देती हैं।

टेन न्यूज के डॉक्टर आर के खांडल ‘राष्ट्र पुनर्निर्माण ‘ संचालित कार्यक्रम में शिक्षा क्षेत्र की बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल होने का और विचार मंथन का यह सिलसिला हर शनिवार सुबह ब्रॉड्कैस्ट होता है

 

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