ट्रांसपोर्टरों ने नोटबंदी के कारण हो रही मुश्किलों पर सरकार से ध्यान देने की अपील की*

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*ट्रांसपोर्टरों ने नोटबंदी के कारण हो रही मुश्किलों पर सरकार से ध्यान देने की अपील की*

नई दिल्ली (9 दिसम्बर 2016) नोटबंदी ने ट्रांसपोर्ट उद्योग की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है इसलिए सरकार को ट्रांसपोर्ट उद्योग को राहत देने के लिए उदारता दिखानी चाहिये। उक्त मांग दिल्ली गुडस ट्रांसपोर्ट ऐसोसियेशन के अध्यक्ष त्रिलोचन सिंह ढिल्लो, वरिष्ठ उपाध्यक्ष राकेश शर्मा, प्रधान महासचिव परमीत सिंह गोल्डी, पूर्व अध्यक्ष बी.डी.शर्मा, दीपक सचदेवा तथा मीडिया प्रभारी परमिन्दर पाल सिंह ने प्रैस क्लब में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उठाई।

उन्होंने बताया कि आॅल इंडिया परमिट के तहत लगभग 48 लाख ट्रक असंगठित क्षेत्र के देश के इस सबसे बड़े उद्योग में पंजीकृत है जिन पर लगभग प्रत्यक्ष तौर पर 2 करोड़ तथा अप्रत्यक्ष तौर पर 5 करोड़ लोगों की आजीविका निर्भर है। नोटबंदी की मार ने नगदी से चलने वाले इस उद्योग की मुख्य कड़ी छोटे मोटर मालिकों की कमर तोड़ दी है। क्योंकि डीजल से लेकर टोल टैक्स सहित मार्ग के सभी खर्चाे का भुगतान ड्राईवरों द्वारा नगदी में करने का चलन है और अधिकतर मालभाड़ा भी ड्राईवरों को नगदी मंे प्राप्त होता है। नोटबंदी के बाद नगदी की कमजोर तरलता ने गाड़ीयों का चलना मुश्किल कर दिया है।

त्रिलोचन सिंह ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार लगभग 20 लाख ट्रक नोटबंदी के कारण काम मंे पैदा हुई रूकावट की मार झेल रहे हैं। जिस कारण उन्हें अपना घर चलाने तथा बैंको का कर्जा वापिस करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। त्रिलोचन सिंह ने साफ किया कि हम नोटबंदी के खिलाफ नहीं है, परन्तु सदियों से चली आ रही हमारी नगदी व्यवस्था के पटरी पर आने से पहले यह फैसला हमारे उद्योग को समाप्त करने की दिशा में सुनामी साबित हो रहा है। आंकड़ो का हवाला देते हुए उन्हांेने बताया कि नोटबंदी से केवल ट्रांसपोर्टर ही प्रभावित नहीं हो रहें हैं बल्कि सरकार को भी भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। 6 रूपये प्रति लीटर का सेस डीजल और पेट्रोल पर लगने के कारण सरकार के खजाने में 70 हजार करोड़ रूपये एकमुश्त इस वित्तिय वर्ष में आने की उम्मीद थी। उसी प्रकार सरकार को राजमार्गाे पर लगे टोल टैक्स से 17 हजार करोड़ का टोल टैक्स प्राप्त होना था। जिसके लक्ष्य की प्राप्ति अब मुमकिन नहीं लग रही है।

उन्होंने कहा कि जब एक ट्रक सड़क पर चलता है तो ड्राईवर, खलासी, मालिक एवं बैंक को प्रत्यक्ष रूप से तथा पेट्रोल पम्पों, ढाबे, मिस्त्री, मजदूर, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय, बीमा कम्पनी तथा कई अन्य लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर कमाई का जरिया प्राप्त होता है। इस नोटबंदी की मार से राहत देने के लिए सरकार को गुहार लगाते हुए उन्होंने कई मांगे सामने रखी। जिसमें प्रमुख हैंः चालू खाते से नगदी निकालने की सीमा 50 हजार रूपये साप्ताहिक से बढ़ाकर ट्रांसपोर्टरों के लिए 5 लाख करना, बैंको के कर्ज पर चल रही गाड़ियों को 6 महीने बाद ब्याज मुक्त किश्त की अदायगी की सुविधा देना, चल रही बीमा पाॅलिसी को बिना किसी भुगतान के अगले 6 महीने के लिए अवधि बढ़ाना तथा सरकारी टैक्स के भुगतान मंे छूट देना शामिल है।

उन्होंने अपील करते हुए कहा कि पहले से मंदी की मार झेल रहे इस उद्योग पर नोटबंदी के कारण आई मुसीबत को यदि सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया तो जहां बड़ी तदाद में बेरोजगारी बढ़ेगी वहीं देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित होगी। क्योंकि बैंक से कर्जा लेकर 1-2 गाड़ी चला रहे मोटर मालिक स्टाफ को वेतन तक देने की स्थिति में नहीं हैं। जिस कारण उनसे जुड़े लाखों लोगों के सिर बेरोजगार होने की तलवार लटक गई है। अगर समय रहते हमें राहत ना दी गई तो उद्योग को भारी नुकसान होगा। उन्होंने असंगठित क्षेत्र के अपने व्यवसाय मंे अधिकतर लोगों के अशिक्षित होने का कारण गिनाते हुए डिजिटल इंडिया से जुड़ने के लिए ट्रासपोर्ट उद्योग को समय देने और उदारता पूर्वक मांगों को मानने की भी सरकार से अपील की।

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