दोस्तों अगर आप भी उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते है, जिसका बचपन अमीन सयानी की सीबाका गीत माला सुनकर गुज़रा, जिसने श्वेत श्याम टेलीविजन हर बुधवार पर चित्रहार का इन्तेज़ार किया, जिसने किशोरावस्था में रामायण और महाभारत के युद्ध की गाथायें उस रुपहले पर्दे पर जीवंत होते देखी और फिर “पापा कहते है… बड़ा काम करेगा…” गाते हुए नब्बे के दशक में प्रवेश किया तो शायद लॉकडाउन के इन दिनों में किसी ना किसी दिन उस दशक में गुजारे अपने युवावस्था के दिनों को जरूर याद किया होगा।
जी हां दोस्तों, नब्बे का वो दशक बॉलीवुड के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा, जिस दशक में बॉलीवुड का रुपहला पर्दा नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा था।
उस दशक में रोमांस हवाओं में था, संगीत फिजा में बिखरा हुआ था।
आज की पीढ़ी ने कहाँ उस जुनून से ipod पर गाने सुने होंगे जो हमारी पीढ़ी ने सोनी वॉकी पर कैसैट चलाकर सुने थे।
अपने चुनिंदा गानों को रिकार्ड कराकर उन्हें पूरा सुनना, और फिर उसी कैसैट की कॉपी बनाकर दोस्तों में बांटना, कौन भुला पाएगा।
उसी नब्बे के दशक में कई रुपहली फ़िल्में आई, जो Archies के कार्ड से लेकर कॉलेज की कॉपी के कवर तक चलती रही।
इस सीरीज में उसी दशक से कुछ यादें ताजा की जाएं,
पहले एपिसोड में दस बेहतरीन मूवीज का जिक्र करते हैं, और आशा हैं , आप भी इस लिस्ट से सहमत होंगे।
१. आशिकी ( १९९०)- महेश भट्ट द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने जहां रोमांस को पर्दे पर जीवंत किया, इंडस्ट्री को कुमार सानू, टी सीरीज, और नदीम श्रावण भी दिए।
२. दिल (१९९०)- घायल, और स्वर्ग जैसी मूवीज के साथ आई आमिर खान और माधुरी दीक्षित की इस फिल्म ने कॉलेज में लड़के ल़डकियों की नींद उड़ा दी थी।
३. लम्हे (१९९१) – यश चोपड़ा की इस रोमांटिक कहानी ने हिना, दिल है कि मानता नहीं, साजन, सौदागर, फूल और कांटे जैसी फ़िल्मों को धराशायी कर दिया था।
४. बेटा ( १९९२)- शाहरुख और आमिर खान की बहुचर्चित फ़िल्में दीवाना, जो जीता वही सिकंदर, जैसी फ़िल्में भी “बेटा “को नहीं पछाड़ पाई, हालांकि “रोजा ” को भी उसी के साथ रखा जा सकता है।
५. बाजीगर (१९९३)- शायद “रुदाली”, और “हम हैं राही प्यार के ” फ़िल्में शाहरुख खान की बाजीगर से बाजी नहीं जीत पाई,। रोमांस, थ्रिलर, बदले की अभूतपूर्व कहानी थी यह फिल्म।
६. हम आपके हैं कौन (१९९४)
मैंने प्यार किया के पांच साल बाद सूरज बड़जात्या ने माधुरी एवं सलमान खान से ऐसी ऐक्टिंग करायी कि इस फिल्म से नब्बे के दशक में उन्हें बेस्ट डायरेक्टर कहलाने से कोई नहीं रोक पाया। सही मायनों में एक परिवारिक फिल्म।
७.दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (१९९५)-
आपको सिर्फ इतना ही बताना काफी होगा कि DDLJ दुनिया की उन 1000 फ़िल्मों में शामिल है, जिन्हें मरने से पहले जरूर देखने के लिए नामित किया गया है।
८.दिल तो पागल है (१९९८)-
युवा रोमांस, संगीत, निर्देशन, कहानी, इस फिल्म में सभी कुछ सर्वोत्तम था, इसीलिए फिल्म फैयर के सारे पुरस्कार इस फिल्म ने जीते थे, जयपुर के “राजमंदिर” सिनेमा में लगातार सत्तर सप्ताहांत यह फिल्म प्रदर्शित हुई थी।
९.कुछ कुछ होता है (१९९८)-
फिल्म फैयर के सारे पुरस्कार जीतने के अलावा “छोटे सरदार” के तारे गिनना 😊इस फिल्म की पहचान थी।
करण जौहर ने इस फिल्म से निर्देशन की शुरुआत की, और आपको बता दें कि यह एक हास्य प्रेम कहानी थी।
१०.हम दिल दे चुके सनम (१९९९)-
संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित, निर्देशित यह फिल्म, “वो सात दिन” पर आधारित थी। गुजरात एवं बुडापेस्ट को एक साथ बड़ी खूबसुरती से दर्शाया गया है। दशक को विदा करते हुए एक बेहतरीन फिल्म थी।
अमिताभ की सूर्यवंशम, शाहरुख की बादशाह, परदेश, आमिर की इश्क, गुलाम, सरफरोश और सलमान की जुड़वा भी इस दशक की कुछ और बेहतरीन फ़िल्में थी। और हाँ, जाते जाते, काजोल की दुश्मन को भी याद रखिए , एक बार अवश्य देखने के लिए।
अगले एपिसोड में इसी दशक से कुछ और अनोखी रोमांचित यादों के साथ…
– विष्णु सैनी , अर्पणा सैनी