प्रसिद्धि हेतु दीपावली मनानेका शास्त्रीय आधार.

Galgotias Ad

अधर्मी असुरोंके नाशकी सीख देनेवाला उत्सव
भगवान श्रीकृष्णने जब नरकासुरका वध किया, तबसे नरकचतुर्दशी मनाई जाती है । लक्ष्मीपूजनके दिन अलक्ष्मीका नाश करने हेतु धार्मिक विधियां की जाती हैं । बलिप्रतिपदा बलि राजाके नाशका प्रतीक है, तो भाईदूज शकटासुर नामक असुरका नाश कर असंख्य बहनोंको उनके भाई श्रीकृष्णद्वारा मुक्त किए जानेके आनन्दमें मनाई जाती है । इस प्रकार दीपावलीका प्रत्येक दिवस असुरोंके संहारका तथा धर्मकी अधर्मपर विजय प्राप्त करनेके स्मरणमें मंगलमय दीपोंसे उजाला करनेका दिवस है, ऐसा हमारी संस्कृति कहती है । इस वर्ष लक्ष्मीपूजन २३ अक्टूबरको है । इस निमित्त प्रस्तुत है दीपावली सम्बाqन्धत शास्त्रीय जानकारी –

नरकचर्तुदशी
नरकचतुर्दशीसे एक दिन पूर्व, रात्रि १२ बजेसे वातावरण दूषित तरंगोंसे युक्त हो जाता है; क्योंकि, इस तिथिपर ब्रह्माण्डकी चन्द्रनाडीrका सूर्यनाडीमें स्थित्यन्तर होता है । पातालकी अनिष्ट शक्तियां इसका लाभ उठाती हैं । पातालसे प्रक्षेपित नादयुक्त कंपन तरंगें वातावरणमें कष्टदायी ध्वनिकी निर्मिति करती हैं । इस ध्वनिकी निर्मिति, तरंगोंकी रज-तमात्मक कणोंकी हलचलसे उत्पन्न ऊर्जाद्वारा होती है । ये तरंगें विस्पुटित तरंगोंसे सम्बन्धित होती हैं । इनके ध्वनि कंपनोंको नियन्त्रित करने हेतु सुबहके समय अभ्यंगस्नान कर, घीका दीप जलाकर, मनोभावसे दीपोंकी पूजा की जाती है । इस कारण दीपसे प्रक्षेपित तेजतत्त्वात्मक तरंगोंके माध्यमसे वातावरणकी कष्टदायी तरंगोंके रज-तम कणोंका विघटन होता है । इस विघटनात्मक प्रक्रियाके कारण अनेक सूक्ष्म शक्तियोंके कोषके रज-तम कण भी पिघल जाते हैं और अनिष्ट शक्तियोंका सुरक्षाकवच नष्ट हो जाता है । इसीको ‘दीपकी सहायतासे आसुरी शक्तियोंका वातावरणमें संहार’ कहते हैं । इसीलिए इस दिन अनिष्ट  शक्तियोंका निर्दालन कर, दीपावलीके अन्य दिन जीवको शुभकार्यका आरम्भ करना होता है । असुरोंके संहारका दिन, अर्थात एक प्रकारसे नरकसे पृथ्वीपर अवतीर्ण हुई अनिष्ट तरंगोंके विघटनका दिन । इसीलिए नरकचतुर्दशीको विशेष महत्त्व है ।
लक्ष्मीपूजनका महत्त्व
अमावस्या काल होनेके कारण इस दिन लक्ष्मीका मारक तत्त्व कार्यरत होता है । इस मारक तत्त्वका अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने हेतु संध्याके समय धन-सम्पत्तिकी यथाविधि पूजा की जाती है; क्योंकि पूजामें पूजकके भावसे श्री लक्ष्मीका मारक तत्त्व कार्यरत होता है और वायुमण्डलकी कष्टदायी तरंगोंका वह उच्चाटन करता है ।
इस दिन लक्ष्मीके पीछे-पीछे इंद्रादि देवता भी पूजास्थलपर आकृष्ट होते हैं । इस प्रकार पांचों तत्त्वोंका लाभ प्राप्त होकर वास्तुमें सुख, ऐश्वर्य, समाधान एवं सम्पत्ति का वास होता है ।
दीपावलीमें साभ्यंगस्नानका महत्त्व
दीपावलीमें साभ्यंगस्नान करनेसे अन्य दिनके स्नानकी तुलनामें जीवको ६ प्रतिशत अधिक मात्रामें लाभ होता है । सात्विक सुगन्धित तेल शरीरपर लगाकर मालिश करनेसे जीवकी सात्विकता एवं तेजतत्त्वमें वृद्धि होती है । साभ्यंगस्नानके पश्चात तुरंत सूर्यदेव एवं कुलदेवताको नमस्कार करें । इस दिन देवी-देवताओंकी कृपा अधिक होती है ।
लक्ष्मीपूजनके दिन श्री लक्ष्मीमातासे क्या प्रार्थना करें
श्री लक्ष्मी धनप्राप्तिके  समय उनके चरणोंमें अर्पित धनमें उनकी शक्ति कार्यरत होती है एवं उसका लाभ पूजकको प्राप्त होता है । श्री लक्ष्मीकी पूजाके समय निरन्तर नामजप करें । पूजा हो जानेपर श्री लक्ष्मीमातासे प्रार्थना करें – ‘हे श्री लक्ष्मीदेवी, इस दिन आप हमें जिन विभिन्न रूपोंमें शक्ति देंगी, उसका उपयोग सत्के कार्यके लिए होने दें । आपकी तथा गुरु की हमपर निरन्तर कृपा बनी रहे । मैं जो धन कमाऊं, वह मुझे सत्के मार्गसे प्राप्त करनेकी शक्ति दें ।’
बलिप्रतिपदा
इस दिन बलिराजाकी प्रतिमाका पूजन क्यों किया जाता है ?
इस दिन बलिराजाकी प्रतिमाका पूजन कर उन्हें नैवेद्य चढाया जाता है, अर्थात उनकी क्षुधा-तृष्णाको शान्त किया जाता है । उनकी प्रतिमाकी पूजाका आधारभूत भाव यह होता है कि इसके उपरान्त वर्षभर बलिराजाद्वारा अपनी काली शक्तिके बलपर पृथ्वीके जीवोंको कष्ट न दें; अन्य अनिष्ट शक्तियोंको शान्त, अर्थात अपने नियन्त्रणमें रखें और उन्हें दिए गए पातालके राज्यमें आनन्दसे विहार करें । हिन्दू धर्ममें अनिष्ट शक्तियोंको अथवा उनके अधिपतिको उतारा देकर उन्हें सन्तुष्ट कर, वायुमण्डलमें उनके संचारपर अंकुश लगाया जाता है । इससे पृथ्वीका जीव सहजतासे साधना कर सकता है । अनिष्ट शक्तियोंको उतारा चढाकर, उनके लिए निर्धारित तिथिनुरूप दिवस त्यौहारके रूपमें मनाना, इस बातको भी हमारा धर्म महत्त्व देता है । हिन्दू धर्म इष्टके साथ-साथ अनिष्टका भी उतना ही गहन विचार करता है, इसीलिए वह सहिष्णु है ।
यमद्वितीया
१. महत्त्व : इस दिन यमदेवका नरकपर आधिपत्य होता है । यमदेव मत्र्यलोक, अर्थात मृत्युलोकके अधिपति हैं व अनिष्ट शाqक्तयोंके विविध लोकोंके संचारपर बंधन अथवा नियन्त्रण भी रखते हैं । इस दिन यमदेवतासे प्रक्षेपित तरंगेें विविध नरकोंके स्तरपर प्रवेश कर, वहांकी परिाqस्थतिका निरीक्षण करती हैं । अतः इस दिन नरककी अनिष्ट शाqक्तयोंसे प्रक्षेपित तरंगेें संयमी अवस्थामें होती हैं और इस कारण पृथ्वीपर नरक तरंगोंकी मात्रा भी न्यून होती है । इसलिए इस दिन कृतज्ञभावसे यमदेवकी पूजा कर संध्याके समय दीप जलाकर, यमदेवका स्वागत कर दीर्घायु प्राप्त करने हेतु प्रार्थना की जाती है एवं आनन्दोत्सव मनाया जाता है ।
२.  १३ दीप यमदेवताको अर्पित करना : दीपोंकी संख्या १३ मानकर उनकी पूजा की जाती है, क्योंकि इस दिन ठीक १३ पल के लिए यमदेवतासे प्रक्षेपित तरंगेें नरकमें वास्तव्य करती हैं । इसके प्रतीकस्वरूप १३ दीप यमदेवताको अर्पित किए जाते हैं और उनका आवाहन किया जाता है । इस विधिको ‘यमतर्पण’ कहते हैं ।
भाईदूजके दिन भाईकी आरती क्यों उतारी जाती है ?
इस दिन वायुमण्डलमें विद्यमान यम तरंगोंके संचारके कारण वातावरण तप्त ऊर्जासे अभिमाqन्त्रत होता है । इन तरंगोंके अधोगमनसे पितृलोककी अनेक अतृप्त आत्माएं पृथ्वीकी कक्षामें प्रवेश करती हैं । इस कारण अपमृत्यु होना अथवा अपघात होना, स्मृतिभ्रंश होकर अचानक पागलपनका दौरा आना, शरीर ऐंठना अथवा हाथ लिए कार्यमें अनेक अडचनें आना, जैसे कष्ट हो सकते हैं । इस दिन बहन अर्थात पृथ्वी, भाईके रूपमें यमकी पूजा कर उनका आवाहन करती है । इस दिन उनका योग्य आदर-सत्कार कर उन्हें भूलोकमें संचार करनेवाली यमतरंगोंपर अंकुश लगाने हेतु प्रार्थना की जाती है । इससे वास्तुका वायुमण्डल शुद्ध होता है एवं परिजनोंको यमतरंगोंसे संभावित कष्ट न्यून होता है और उनका रक्षण होता है । अतः इस दिन यमलोकसे भूलोककी ओर प्रक्षेपित गतिमान तरंगोंके कारण मत्र्यलोकका वातावरण मर्यादित कालके लिए यातनाविरहित, अर्थात आनन्दमय होता है ।
भाईदूजपर चन्द्रकी आरती क्यों की जाती है ?
यमका प्रतिकात्मक रूप पूजने हेतु भाई न हो, तो चन्द्रको भाई मानकर पूजा करें । भाई हों, तो प्रथम चन्द्रकी आरती कर, तदुपरान्त अपने भाईकी आरती करें । बहनद्वारा किए गए चन्द्रके आवाहनसे चन्द्र तरंगेें कार्यरत होकर, वायुमण्डलमें प्रवेश कर, अपनी शीतलतासे यम तरंगोंको शान्त करती हैं व वातावरणकी दाहकताको कम कर यमका क्षोभ मिटाती हैं । उसके उपरान्त निर्माण हुए प्रसन्न वातावरणके परिणामस्वरूप बहनका अनाहतचक्र जागृत होता है और प्रत्यक्ष यमरूपी भाईकी पूजाविधिमें भाववृाqद्ध होनेसे उसका इष्ट फल प्राप्त होता है ।

Leave A Reply

Your email address will not be published.