पूर्व राज्यमंत्री बालेश्वर त्यागी से टेन न्यूज़ ने की खास बातचीत , बताई अपने जीवन संघर्ष के महत्वपूर्ण बातें

Ten News Network

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गाज़ियाबाद :– बालेश्वर त्यागी की पहचान उत्तर प्रदेश की राजनीति और समाजसेवी के रूप में रही है , उन्होंने काफी पदों पर अपना योगदान दिया है। आपको बता दे कि इस पहचान को बनाने के लिए बालेश्वर त्यागी ने कड़ी मेहनत की है , जिसके चलते उत्तर प्रदेश में शिक्षा मंत्री बने ।

 

 

टेन न्यूज़ लाइव के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री, पूर्व गृह राज्य मंत्री, पूर्व वित्त राज्य मंत्री, पूर्व पंचायती राज्य मंत्री, गाजियाबाद से तीन बार के विधायक, गाजियाबाद बार एसोसिएशन के तीन बार के अध्यक्ष, हरिश्चंद्र त्यागी पब्लिक लाइब्रेरी के संस्थापक और महर्षि दयानंद विद्यापीठ के संस्थापक बालेश्वर त्यागी से खास बातचीत की। इस खास बातचीत में प्रश्न पूछने के लिए टेन न्यूज़ नेटवर्क के युवा पत्रकार दुर्गेश तिवारी उपस्थित रहे।

 

 

दुर्गेश ने बालेश्वर त्यागी से प्रश्न किया कि आपने एक लंबा जीवन उत्तर प्रदेश की राजनीति को दिया, वकालत की, पुस्तकालय की स्थापना की और महर्षि दयानंद विद्यापीठ नामक विद्यालय भी शुरू किया एक तरह से आपका अधिकांश जीवन समाज के लिए बीत गया आपकी नजर में आप अपने जीवन को कैसा देखते हैं?

 

इस सवाल का उत्तर देते हुए बालेश्वर त्यागी बोले की, ” मैं गांव से आया था मेरे पिता कभी पंचायत के सदस्य भी नहीं रहे, लेकिन मुझे गाजियाबाद जैसे महानगर में तीन बार विधायक चुना गया । वकालत में कदम रखे तो तीन बार, बार एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। उत्तर प्रदेश में कई मंत्री पदों पर कार्य करने का मौका मिला और अब सामाज के लिए जीवन जी रहा हूं तो उसमें भी सब अच्छा ही जा रहा है। यह सब उपलब्धियां जब मैं देखता हूं तुम मुझे पर बहुत गर्व होता है और संतुष्टि महसूस होती है कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ नहीं किया।

बातचीत आगे बढ़ाते हुए दुर्गेश ने प्रश्न किया कि आप एक सामान्य परिवार से आए और आपने इतना कुछ हासिल किया यह सब करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

 

जिस पर बालेश्वर त्यागी बोले, मेरा जीवन मुंबई में चलने वाली लोकल ट्रेन की तरह है मुंबई में जैसे लोकल ट्रेनों में सफर करना हो तो आप बस गेट के पास खड़े हो जाइए आपके आसपास वाले आपको ट्रेन के अंदर ले जाएंगे उसी तरह मैंने भी वकालत में कदम रखा तो मेरे साथ के लोगों ने मुझे बार एसोसिएशन का अध्यक्ष बना दिया, राजनीति में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा तो साथ के लोगों ने आगे मंत्री बना दिया और अब समाज के लिए काम कर रहा हूं तो समाज मेरी सोच से सोच मिला रहा है।

 

बातचीत का क्रम आगे बढ़ा तो दुर्गेश ने प्रश्न किया कि एक समय था जब भारतीय राजनीति में लिखने वाले राजनेता बहुत होते थे समाज को समझने वाले नेता बहुत होते थे लेकिन आज की राजनीति में देखा जाता है कि लिखना और समझना तो दूर की बात वर्तमान परिवेश की राजनीति में व्यक्तिगत टिप्पणियां और तू तड़ाक के सिवा कुछ नहीं दिखता है ऐसे में आप भारतीय राजनीति को किस नजर से देखते हैं क्या भारतीय राजनीति में पुराने मूल्य बचे हुए हैं या भारतीय राजनीति का स्तर गिरा है?

 

इस प्रश्न के जवाब में बालेश्वर त्यागी बोले कि भारतीय राजनीति में बहुत परिवर्तन आया है परिवर्तन यह हुआ है कि भारतीय राजनीति में परिश्रम की जगह पैसे ने ले ली है सामाजिक चेतना का स्थान जातीय समीकरण ने ले लिया है आज यदि किसी को राजनीति में जाना है तो उसके पास अच्छी भी होनी चाहिए, जातीय समीकरण होना चाहिए या फिर राजनीति में कोई गॉडफादर होना चाहिए।
भारतीय राजनीति में पहले लिखने वाले और समझने वाले राजनेता इसलिए थे क्योंकि पहले बहुत बड़ी-बड़ी जनसभाएं होती थी और जनता से संपर्क हेतु यही एक माध्यम होती थी लेकिन आज ट्विटर का जमाना आ गया है जिसमें 20, 30 शब्दों में अपनी बात कही जाती है पहले के समय में जन सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए भी राजनेता काम करते थे जन सभाओं में भाषण भी राजनेता देते थे और जनसभाओं में बिकने वाली टाटा पट्टी भी पार्टी के कार्यकर्ता ही बिछाते थे लेकिन आज यह सभी कार्य ठेके पर किए जा रहे हैं तो ऐसा परिवर्तन आज भारतीय राजनीति में देखने को मिलता है मैं इस प्रकार की राजनीति को बुरा भी नहीं मानता लेकिन इस प्रकार की राजनीति अच्छी भी नहीं कहूंगा।

 

बातचीत में कोरोनावायरस का जिक्र हुआ तो लॉकडाउन के समय में ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बालेश्वर त्यागी को फोन करके उनका हालचाल लिया था जिस का स्मरण करते हुए दुर्गेश ने उनसे पूछा कि आपको कैसा लगा जब उनका फोन आपके पास आया?

 

मुस्कुराते हुए बालेश्वर त्यागी बोले कि सच कहूं तो मुझे लगा ही नहीं की प्रधानमंत्री बात करने वाले हैं, जिस अफसर ने मुझे फोन किया उसने कहा पीएम आपसे बात करेंगे लेकिन मुझे सुनाई दिया डीएम आपसे बात करेंगे पर जब प्रधानमंत्री अपने फोन पर मुझसे बात की तो मुझे उनकी आवाज से आभास हुआ कि प्रधानमंत्री मुझसे फोन पर बात कर रहे हैं और जब मुझे आभास हुआ तो बहुत खुशी हुई और आश्चर्य भी हुआ कि प्रधानमंत्री ने हमें भी याद किया।

दुर्गेश ने बातचीत के क्रम में बालेश्वर त्यागी से प्रश्न किया कि आप शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से जुड़े हुए हैं आप उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री भी रहे आपने हरिश्चंद्र त्यागी पब्लिक पुस्तकालय का निर्माण करवाया और महर्षि दयानंद विद्यापीठ के आप संरक्षक हैं आपका केंद्र सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति पर क्या विचार है?

जिसके जवाब में बालेश्वर त्यागी बोले कि केंद्र सरकार द्वारा जो नई शिक्षा नीति लाई गई है वह अपने आप में बहुत आकर्षक है और उम्मीदों से भरी हुई है लेकिन मुझे लगता है कि धरातल पर नई शिक्षा नीति को लागू होने में अभी काफी समय लगेगा क्योंकि मेरा जो अनुभव है सत्ता में वहां पर बैठे हुए लोग एक्सीलेटर का काम नहीं करते हैं ब्रेक का काम करते हैं तो कोई भी काम जमीनी स्तर पर बहुत वर्षों के संघर्ष के बाद दिखाई देता है मुझे लगता है अभी इसमें समय लगेगा।

जैसे-जैसे बातचीत आगे बढ़ती रही दुर्गेश ने एक ज्वलंत मुद्दे पर प्रश्न किया दुर्गेश का प्रश्न था कि आए दिन भारत की आरक्षण पद्धति पर प्रश्नचिन्ह उठते रहते हैं ऐसे में आरक्षण पर आपके क्या विचार हैं आपको क्या लगता है कि भारत में आरक्षण की व्यवस्था बदलनी चाहिए या यही सही है?

इसके जवाब में बालेश्वर त्यागी बोले कि आरक्षण बिजली का एक नंगा तार है जिसको यदि कोई छुएगा तो राख हो जाएगा, आज आरक्षण की स्थिति ऐसी हो गई है कि यदि कोई राजनेता इस पर बात भी कर ले तो उसका राजनीतिक कैरियर संकट में आ सकता है जब भारत में आरक्षण लाया गया तो बहुत ही पवित्र इसका मकसद था लेकिन आज आरक्षण की जो व्यवस्था है वह भ्रष्ट हो चुकी है और विकास की गति को अवरोधित करने वाली हो चुकी है जिसमें परिवर्तन होना बहुत आवश्यक है लेकिन इसमें परिवर्तन करना भी बहुत मुश्किल है।

बातचीत के अंत में दुर्गेश ने बालेश्वर त्यागी से कहा की आप भविष्य का भारत कैसे देखते हैं क्या भविष्य का भारत उज्जवल है या परिस्थितियां संघर्षपूर्ण होने वाली हैं?

इसके जवाब में बालेश्वर त्यागी बोलेगी भारत का भविष्य दुनिया के मुकाबले तो बहुत बेहतर होने वाला है, लेकिन भारत का जो अपना मूल है वह छूटता दिखाई दे रहा है, भारत का जो अपनत्व का भाव था जो जीवन को खुलकर जीने का भाव था वह कहीं ना कहीं आज वर्चुअल दुनिया के आगे झुकता दिखाई दे रहा है, भारत “सादा जीवन उच्च विचार” को बढ़ावा देने वाला देश था किंतु आज परिस्थितियां ऐसी है कि सादा जीवन उच्च विचार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ऐसी परिस्थितियों इस कारण बनी कि हमने संस्कार को शिक्षा से अलग कर दिया हमने, “देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखें” वाली भावना समाप्त कर दी यह समझ कर कि यह तो हिंदुत्व का आधार है जिसके परिणाम स्वरूप आज शिक्षित लोग भी समाज में सदाचार की जगह असुरक्षा का माहौल बना रहे हैं।

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