मुझे सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु का कोई दुख नहीं है
By दीपक श्रीवास्तव
जाने वाला तो चला जाता है किंतु जो दर्द वह अपने प्रियजनों को दे जाता है उस पीड़ा से उबरना अत्यन्त कठिन हो जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में यदि कोई घटना घटती है तो तो उसका समाज पर क्या परिणाम पड़ने वाला है या पड़ रहा है, यह महत्वपूर्ण है। एक इंजीनियर, एमबीए एवं प्रतिभावान कलाकार की मृत्यु कोई सामान्य घटना नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है बहुत प्रतिभावान होने के बावजूद यदि जीवन में असफलता का अनुभव नहीं है तो अक्सर कड़े संघर्ष एवं तथाकथित षड्यंत्रों के दौर में जब व्यक्ति टूटने लगता है तो वही घटनाएं घटती हैं जो आज सुशांत सिंह राजपूत के रूप में देखने को मिली है। फिल्म इंडस्ट्री में ही अनेक ऐसे कलाकार रहे हैं जो एक समय कभी आसमान की बुलंदियों पर थे परंतु कुछ ही क्षणों में कुछ ही वर्षों में वे खाने-पीने तक के मोहताज हो चुके थे। उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय होने के बावजूद उन्होंने अपनी जीवनी शक्ति को कमजोर नहीं होने दिया। वरिष्ठ कलाकार स्वर्गीय ए के हंगल जी संगीत निर्देशक श्री केशवलाल इसके अत्यन्त सजीव उदाहरण हैं। स्वर्गीय किशोर दा के जीवन में भी इससे बुरा दौर आया था जब उनके विरुद्ध एक वर्ग लामबन्द था और इतना ही नहीं, तत्कालीन सरकार ने भी उनके गीतों को बैन कर दिया था लेकिन उन्होंने सिद्ध किया कि उनका जीवन किसी भी प्रकार के संघर्ष से ऊपर है और आज वे करोड़ों लोगों के हृदय में जीवित हैं।
यह सत्य है कि वर्तमान में शिक्षा के बदलते स्वरूप एवं अतिशीघ्र सफलता के साथ मोटी कमाई की चाहत ने लोगों के अंदर असंतोष का तेजी से विस्तार किया है। माता-पिता भी अपने बच्चों की थोड़ी सी पीड़ा को अपने आंचल से ढककर उन्हें दर्द से बचा लेते हैं। एक माता पिता के तौर पर यह बात भले ही उचित लगती है किंतु जीवन के महासमर में अक्सर यही बात उन्हें कमजोर कर देती है। यदि जीवन में सफलता ही सफलता है तो उसका अपना आनंद हो सकता है, किंतु यदि व्यक्ति को असफलता का अभ्यास नहीं है तब बड़ी से बड़ी तो क्या छोटा सा संघर्ष भी उसे टूटने को विवश कर देता है। सुशांत सिंह के रूप में यह पहली घटना नहीं है मैंने अनेक लोगों को देखा है जो सन 2009 की विभीषिका के दौरान नौकरी छूटने पर तथा घर की ईएमआई ना दे सकने की स्थिति में यही खौफनाक एवं पीड़ादायक कृत्य कर चुके थे।आरामतलब जीवन की आदत एवं चाह के साथ संघर्षहीन जीवन तथा स्वयं को औरों से ऊपर मानने के अहंकार ने बहुतों की जिंदगी जीनी है तथा आगे स्थिति अत्यंत भयावह है।
कविताओं में, लेखों में उस पीड़ा का जिक्र होता है तथा परिवार के प्रति भी संवेदनाएं व्यक्त होती हैं किंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि भविष्य में इस प्रकार की घटना न हो यह सुनिश्चित किया जाए। यह तभी संभव है जब बच्चों के अंदर संघर्ष की आदत हो तथा असफलताओं के दौर में उनकी जीवन शक्ति एवं निरन्तर चलने की प्रवृत्ति का विकास किया जाय।
आज इस घटना पर बहुत लोगों की टिप्पणियां आ रही हैं जिसमें इस बेहतरीन कलाकार के विरुद्ध हो रहे षड्यंत्रों की बात है, कहीं उसका महिमामंडन तथा कहीं उसकी कमजोरियों पर चर्चा हो रही है। आगे भी विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां आती रहेंगी तथा जांच के बाद भी बहुत सारे रहस्य खुलेंगे। किंतु इस सत्य को कोई नहीं बदल सकता कि जिसे जाना था वह जा चुका है और दोबारा लौटकर नहीं आ सकता। अतः हम सभी को अपने अंदर, अपने परिवार के अंदर, समाज के अंदर तथा देश के अंदर झांक कर देखना होगा कि कहीं हम जरूरत से ज्यादा मिठास देकर बच्चों को शुगर की बीमारी तो नहीं दे रहे। यदि ऐसा है तो इससे तुरंत रोकने की आवश्यकता है ताकि हमारी भावी पीढ़ी एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सके।