“स्त्री-सशक्तिकरण नहीं बल्कि परिवार-सशक्तिकरण ध्येय होना चाहिए” मृदुला सिन्हा, पूर्व राज्यपाल, गोवा; समाज सेवी, पत्रकार एवं प्रख्यात साहित्यकार | टेन न्यूज़ लाइव परिचर्चा

डॉ पूनम माटिया, अध्यक्ष, अंतस्क, वयित्री, शायरा, मंच-संचालिका, स्वतंत्र लेखन

Galgotias Ad

ज्ञात हो भागीरथ सेवा संस्थान तथा सद्विचार मंच, ग़ाज़ियाबाद के संयुक्त तत्त्वावधान में 17 जुलाई शाम पाँच से सात बजे तक एक विशेष ई–संगोष्ठी आयोजित हुई जिसका विषय था–‘परिवार, विश्व में सुख-शांति का आधार’| सूर्या संस्थान नोयडा और वेव इंडिया सहयोगी संस्था के रूप में साथ जुड़ीं|

भारतीय संस्कृति, सभ्यता के उत्कर्ष की ध्वजावाहक एवं मनसा, वाचा, कर्मणा से सात्विक राजनीति, ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी मुख्य वक्ता डॉ मृदुला सिन्हा ने अपने उद्बोधन में कहा कि तकनीकी विकास के कारण दूर-दूर बैठे भी आज हम साथ हैं| विश्व की सुख-शांति का परिवारिक सुख-शांति ही आधार है क्योंकि विश्व भी एक परिवार है| “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दुख भाग भवेत्|” यदि मनुष्य पशु, पक्षी, ताल-तलैया, पौधे सब सुखी हैं तो ही हम सुखी हैं| अपने भारत में करोना-पीड़ा में परिवार कैसे संगठित रखा जाए-इस बिंदु पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा- 3 महीने से कोरोना-काल में पूरा विश्व एक हो गया क्योंकि इस बीमारी ने किसी को नहीं छोड़ा| परिवार को चिंतकों-दार्शनिकों ने आधारभूत इकाई माना है| सम्पूर्ण परिवार स्वस्थ होना चाहिए| बड़े परिवार में एक अतिथि का सत्कार सहजता से हो जाता है| यदि कोई मेहमान एक भरे-पूरे परिवार में अचानक आ जाए तो उसके खाने की परेशानी नहीं होती क्योंकि एक संयुक्त परिवार में इतना खाना तो निकल ही आता है लेकिन दूसरी ओर ऐसा भी परिवार होता है जहाँ गिने-चुने लोग होते हैं और उतना ही खाना बनाया जाता है तो कोई अचानक आ जाए तो आने वाला ख़ुद ही कहता है –“नहीं जी हम तो खा कर आए हैं|” मेहमान की चिंता गाँव में आस-पड़ोस के लोग भी किया करते थे क्योंकि वह भी वृहद् परिवार होता था|

संयुक्त परिवार में अक्सर ऐसा देखा जाता था कि दो-तीन माताएं ऐसी होती थीं जिनके छोटे बच्चे होते थे तो एक के व्यस्त या बीमार होने पर कोई दूसरी माँ उस बच्चे को दूध पिला दिया करती थी| परिवार को संस्कार का केंद्र माना गया है| उपनयन संस्कार में घर की औरतें अक्सर ऐसे लोकगीत गाती थीं जिसमें पिछली सात पीढ़ियों को याद किया जाता था और उन्हें बुलाकर आशीर्वाद लिया जाता था|

क़िस्से-कहानियों के माध्यम से अपने वक्तव्य को रोचक व् ग्राह्य बनाते हुए मृदुला जी ने यह बात भी रेखांकित की कि गांव की बेटी सब की बेटी होती थी और परिवार का लक्ष्य भी एक ही होता था कि आगे आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम चले| परिवार में नारी को अर्धांगिनी कहा गया और यह भी कि वह अपने दायित्व पूरा करते-करते अधिकार प्राप्त कर जाती है| अनपढ़ गंवार कुली को भी पता था कि औरत वह खूंटा होती है जिससे पूरा परिवार बंधा होता है|

वेदों में भी यह कहा गया है कि औरत जिस घर में ब्याह कर जाती है वहां वह साम्राज्ञी होती है,दो परिवार जो शादी के बंधन में बंधते हैं वे बराबरी के होते हैं| इसलिए ही समधी और समधन कहा गया| मृदुला जी ने यह भी कहा कि महिलाओं को बराबरी के दंगल में नहीं फंसना चाहिए क्योंकि महिलाओं का हाथ तो ऊपर है, देने वाला हाथ है, बराबरी के चक्कर में क्यों अपने हाथ को झुकाया जाए| कर्तव्य की लागत लगाकर अधिकार अर्जित करो अर्थात अधिकारों को छीना या मांगा नहीं जाता बल्कि अर्जित किया जाता है| अंदर की संवेदना की धारा को सूखने नहीं देना चाहिए| यह तथ्य उन्होंने अपने एक गीत की कुछ पंक्तियों द्वारा उकेरा जिसमें बताया कि माता तो ममता से ओतप्रोत होती है और संवेदना हृदय का आभूषण होता है, सब अपने ही हैं- यही भाव लेकर आगे चलना चाहिए| शादी-विवाह में यह बात विशेष ध्यान रखने वाली होती है कि लड़की के मां-बाप उसके नये घर अर्थात ससुराल में अधिक ताका-झांकी या दख़ल न दें| दही-जमाने के उदाहरण से इस बात पर जोर डाला कि जैसे एक निश्चित अवधि के बाद दही स्वयं जम जाता है उसी तरह नये रिश्ते में बार-बार लड़की के माता-पिता को घुसना नहीं चाहिए| बेटी को पढ़ा लिखा कर, गृहणी के गुण सिखा कर जब ससुराल भेजा जाता है तो बार-बार पूछने की आवश्यकता नहीं|

आगे उन्होंने यह कहा कि यदि घर में सम्मान मिलता है तो बाहर भी मिलता है| संस्कारों का बीजारोपण परिवार में ही होता है| बहुत ही स्वयंसेवी संस्थाएं परिवार के महत्व को रेखांकित करते हुए परिवार को बचाने की बात करती हैं| परिवार को कैसे बचाएं इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए परिवार के विघटन का दोषी अक्सर लड़की वालों को या लड़की को ही ठहराया जाता है इसलिए विवाह को, परिवार को बचाए रखने के लिए लड़की के परिवार की अहम भूमिका होती है| लोकगीतों के माध्यम से उन्होंने फिर बताया कि जब लड़की छोटी-सी शिकायत अपने मायके में अपने भाई से करती है तो भाई किस तरह उसे अच्छी सीख देता है| वह कहता है जिससे तुम्हारी शादी हुई है उसे पर-पुत्र कहना छोड़ दे क्योंकि कुछ ही दिन में वह तुम्हारा प्राण हो जाएगा|

अपने व्यवहार से परिवार को बांध कर रखना महिलाओं और पुरुषों, दोनों की ज़िम्मेदारी है| बहुत महत्वपूर्ण बात उन्होंने यह कही कि जैसे हर कोर्स, हर पद के लिए प्रशिक्षण होता है वैसे विवाह का कोई प्रशिक्षण नहीं होता विशेषकर आज की परिस्थिति में जब संयुक्त परिवार छोटे होकर एकल परिवार बन गए हैं| पढ़ाई और कैरियर की बात करते हुए उन्होंने कहा-वैसे तो सारा आकाश बेटियों के लिए खुला है, हर क्षेत्र, हर कैरियर में उनका स्वागत है लेकिन उनको यह भी याद रखना चाहिए कि माँ भी उनको ही बनना है, पुरुष को यह वरदान प्राप्त नहीं है|

आजकल कैरियर और कंपटीशन के दौरान शादी-विवाह का प्रशिक्षण नहीं हो पाता, दूसरे घर जाकर कैसा व्यवहार करना है इसका प्रशिक्षण नहीं हो पाता और न ही यह बात बच्चों के दिमाग में आती है विशेषकर लड़कियों के| ऐसे में परिवार का टूटना आम बात हो गई है, ‘दांपत्य की धूप-छाँव’ नाम की अपनी पुस्तक में मृदुला जी ने बताया है कि शादी के बाद केवल ख़ुशियाँ ही नहीं होतीं, उतार-चढ़ाव भी आते ही रहते हैं| संबंध-विच्छेद यदि होता है तो केवल पति-पत्नी और बच्चों का ही नहीं पूरे परिवार का होता है| उन्होंने यह भी कहा कि जो बच्चा दादी-नानी की गोद में पलता है वह अधिक संवेदनशील होता है और जब दादी-नानी द्वारा अपने पोता-पोती का प्यार से नहलाना, मालिश करना, खाना बना कर खिलाना आदि किया जाता है तो वह परिवार को जोड़ने का प्रयास में वह लगी रहती है|

आगे उन्होंने कहा कि विवाह दो परिवारों का मिलन है| संस्कार, व्यवहार, कुंडली का मिलाना यह सब एक हिस्सा है दोनों परिवार के आपसी संबंधों को प्रगाढ़ करने का| बिना कानून परिवार नहीं चलता| आजकल अक्सर यह देखा गया है कि लडकियां परिवार से अलग रहना पसंद करती है पर यह बात समझने की है कि शादी के बाद सास-ससुर या अन्य बुज़ुर्ग साथ हों तो पति-पत्नी के व्यवहार पर नज़र रखते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें समझाते -बुझाते भी हैं|

मृदुला जी के अनुसार घर में कम से कम दो बच्चे तो होनी ही चाहिए क्योंकि जब वे आपस में प्यार करते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं, छीना-झपटी,रूठना-मनाना करते हैं, मिलकर खेलते-खाते हैं तो वे सीखते हैं|

चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह से वृद्धाश्रम बढ़ते जा रहे हैं उस तरह से पालना- घरों का बढ़ना भी देखा गया है| अगर वृहद संयुक्त परिवार न हो जो कि आजकल मुश्किल भी हैं तो कम से कम तीन पीढ़ियाँ तो साथ रहें |

एक अलग बिंदु पर रोशनी डालते हुए मृदुला जी ने कहा-पिछले 10 वर्षों में मैंने नारा दिया कि नारी सशक्तिकरण की बजाय परिवार का सशक्तिकरण होना चाहिए| परिवार में नारी, पुरुष, वृद्ध और बच्चों, सबका सशक्तिकरण होना चाहिए ताकि परिवार एक सुगठित इकाई बनकर समाज, देश, विश्व में शांति स्थापित कर सकें|

कोरोना के कारण भारतीय संस्कृति की ओर विश्व तेजी से बढ़ रहा है| वैश्विक-एकता के लिए प्रधानमंत्री मोदी भी प्रयासरत हैं|भारत को यदि विश्व-गुरु बनना है तो भारत को शिक्षक की भूमिका में रहना होगा और इसलिए पहले अपना घर संवारना आवश्यक है|

प्रतिनिधि वक्ता स्वामी विवेकानंद समिति, शिकागो एवं ओरिगामी योग के आविष्कारक कृष्ण कुमार दीक्षित ने आयोजन का सुगठित व रोचक सञ्चालन करते हुए कहा कि गोवा की राज्यपाल रहते हुए भी साड़ी, बिन्दी, सिन्दूर और स्त्री-सुलभ मर्यादा रखते हुए संगठित परिवार का सन्देश वर्तमान समाज को देती रहीं हैं| अत: विषय पर डॉ मृदुला का वक्तव्य भारतीय जनमानस के लिए मन्त्र और मील का पत्थर सिद्ध होगा|

भागीरथ सेवा संस्थान के संस्थापक कुसुमाकर सुकुल ने गोष्ठी की मुख्य वक्ता मृदुला सिन्हा जी के बारे में बोलते हुए कहा कि वे एक सरल और पारिवारिक राजनेता रही हैं और राजनीति में इस प्रकार के नेताओं और नेत्रिओं की आवश्यकता है| विश्वास है कि आपके निर्देशन में पारिवारिक विघटन कम होगा और परिवार सशक्त होंगे|

गणितज्ञ, संस्थापक-वेब अमेरिका, दार्शनिक व चिंतक प्रो. भूदेव शर्मा जी ने कहा भगवान राम ने मर्यादा का महत्त्व स्थापित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया| तीन पीढ़ियों में परिवार में सब का व्यवहार कैसा हो- इस पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने परिवार को विश्व की सुख-शांति के लिए आवश्यक बताया|

दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष डा. राम शरण गौड़ ने अपने समीक्षात्मक वक्तव्य में कहा कि वर्तमान परिवारों में आपसी संवाद की भारी कमी देखी जा रही है| अपनी सांस्कृतिक जड़ों से कटकर पाश्चात्य संस्कृति का अनुगमन तथा पैसे कमाने की अंधी दौड़, परिवार के प्रति पुरुष एवं महिलाओं की उदासीनता प्रमुख कारण है जो सुख-शांति कम कर रहा है| सामाजिक सामूहिक कार्यक्रमों में बच्चों की सहभागिता नहीं रही उतनी जितनी पहले हुआ करती थी| आपसी प्रेमभाव समाप्त होता जा रहा है | हमें अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होंगीं|
सदविचार मंच के उपाध्यक्ष आर एन पांडे जी द्वारा मंगलाचरण किया गया|

रिजर्व बैंक अधिकारी धनंजय कुमार दीक्षित जी द्वारा युवा पीढ़ी और माता पिता के बीच में सामंजस्य स्थापित करने के लिए मृदुला जी के उद्बोधन की अनुशंसा करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया|

Leave A Reply

Your email address will not be published.