नई खेल नीति से बने पदक जीतने की रणनीति

डॉ. अवधेश कुमार श्रोत्रिय

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Greater Noida : किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा खेलों में उसके प्रदर्शन एवं राष्ट्र की खेल नीति की उत्कृष्टता से सम्बंधित होती हैं।  सत्रहवीं  लोकसभा में अपनी मजबूत पैठ बनाने को तमाम राजनैतिक पार्टियाँ जनता को लुभाने को तरह तरह के दांव खेल रही हैं। शायद इसलिए आवश्यकता के अनुरूप इस बार चुनावी घोषणा पत्र में सत्ताधारी पार्टी द्वारा खेल को खासा तवज्जों दिया गया हैं।  भारत की पहली खेल नीति वर्ष 1984 में बनी थी जिसको संशोधित वर्ष 2001 में किया गया था। उसके बाद 2007 को एक पुनः संशोधित ड्राफ्ट बना, पर पता नहीं किन कारणों से उसको आधिकारिक नीति का प्रारूप नहीं दिया गया ? इसलिए आज भी 2001 की खेल नीति के सहारे खेलो में चैम्पियन बनाने कीप्रक्रिया चल रही हैं, इसको खेल मंत्रालय का खेल एवं खिलाड़ियों के प्रति उदासीन रवैया ही समझा जा सकता हैं।
पिछले एक दशक में आयोजित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के परिणामों का अध्यन करने सा साफ प्रतीत होता है, खेलो में भारत के प्रदर्शन का ग्राफ ऊंचाई तो छू रहा है लेकिन फिर भी जनसँख्या के अनुरूप हमें अनुकूल परिणाम नहीं मिल पा रहे है।  इस बात के कारण और सुझाव तो कई लिखे जा सकते हैं पर सबसे पहले विचारणीय पहलु हैं की मजबूत खेलनीति का अभाव और फिर उसको सफल बनाने की नियति / वर्ष 1900 से अब तक भारत नें 24 बार ओलिंपिक में भाग लेकर मात्र 28 पदक ही जीते हैं (9 स्वर्ण ,7 रजत ,12 कांस्य) जो की इस बात का प्रमाणित करती है  की आखिर क्यों एक संशोधित मजबूत खेल नीति किसी भी प्रभावशाली योजना के धरातल पर क्रियान्वन एवं उसके प्रभाव को मापने के लिए जरूरी है।

 



आज के समय में खेलो में बढ़ते हुए लोगो की सक्रियता के चलते समझा जा सकता हैं की वर्तमान में खेल व् शारीरिक गतिविधियां बेहतर को प्राप्त करने का मूलमंत्र है / विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक स्तर पर लोगो के स्वस्थ रहने के लिए काम करते हुए समय समय पर अपनी रिपोर्ट्स में शारीरिक गतिविधियों एवं खेल कूद के माध्यम से गंभीर बीमारियों से बचाने हेतु लोगो को जागरूक कराता रहता है  / संयुक्त राज्य अमेरिका केचिकित्स्कों के द्वारा वहां के नागरिको को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए खेल को अपने दैनिक जीवन में शामिल करने की सलाह भी दी जाती है।
 संशोधित खेल नीति में जनता के सर्वांगीण विकास के साथ साथ, आबादी के अनुरूप खेलों के आधारभूत ढांचे, बेहतर प्रशिक्षक, राजनीती मुक्त खेल, खेल में समान प्रायोजन जैसे घटकों का समावेश होना चाहिए / खिलाड़ियों की आर्थिक स्तिथि के सुधार हेतु एक समान उपलब्धि के लिए एक समान इनाम राशि का होना भी जरुरी है जिसकी मांग समय समय पर कई खिलाड़ियों द्वारा उठाई जाती रही हैं / नयी नीति में ग्रामीण क्षेत्रो के खिलाडियों को ध्यान में रखने की काफी जरुरत हैं, आज भी कई ग्रामीण अंचल से जुड़े खिलाड़ियों को न चाहते हुए भी शहर की ओर रुख करना पड़ रहा हैं सिर्फ बुनियादी सुविधाओ के अभाव के चलते।
भारत में खेल नीतियों की बात करे तो सबसे बेहतर खेल नीति हरियाणा राज्य की हैं, हरियाणा सरकार की ’पदक लाओ-पद पाओ’ की नीति खिलाड़ियों एवं उनके अभिभावकों में खेलो के प्रति एक नया जोश पैदा करती हैं इसलिए भी अब तक प्रमुख खेल प्रतियोगिताओ में पदक लाने में सर्वश्रेष्ठ स्थान हरियाणा का है।
चीन हर ओलिंपिक से पहले अपनी खेल नीति में बदलाव करते हुए पदक तालिका में सम्मानजनक स्थान हासिल करता रहता है।  नई खेल नीति बनाने के साथ सरकार का कर्तव्य यह भी होना चाहिए की उसको हर पांच वर्षो के बाद समीक्षा कर आवश्यक बिन्दुओ को पुनः संशोधित किया जा सके तभी हमारे हुनरमंद खिलाड़ी देश के नाम अपनी मेहनत  और लगन से और पदक समर्पित कर पाएंगे।
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