उत्तर भारतीयों की जानकारी के लिये जल्लीकट ्टू #jallikattu

By AWADESH, GREATER NOIDA

उत्तर भारतीयों की जानकारी के लिये जल्लीकट्टू पर विशेष.

हम सभी जानते हैं कि हमारी अधिकतर परंपराओं के पीछे कुछ न कुछ ठोस कारण अवश्य हैं, वैसे ही जल्लीकट्टू परंपरा देशी गौवंश के उन्नत सरंक्षण हेतु है. देशी गाय की प्राजतियों में ए-2 प्रोटीन होता है, जोकि माता के दूध के समान है.

जल्लीकट्टू का वास्तविक उद्देश्य प्रत्येक गाँव में एक उन्नत प्रजाति के साँड का चुनाव करना है, ताकि गौवंश की उन्नत प्रजाति विकसित होती रहे. इसमें जिस सर्वश्रेष्ठ साँड का चुनाव होता है, उसे कोविल कालाई (मंदिर का साँड) कहते हैं एवं उसका पोषण मंदिर के संसाधनों से ही किया जाता है एवं वह आवश्यकता पड़ने पर ग्रामवासियों को नि:शुल्क उपलब्ध रहता है. जिस गाय के सबसे अधिक दूध होता है, उसी के बछ़ड़े को पवित्र नंदी मानकर कोविल कालाई के लिये तैयार किया जाता है. कोविल कालाई के चुनाव के पश्चात जो भी बछ्ड़े बचते हैं, उसे कृषक जुताई आदि अन्य कार्यों में ले लेते हैं. जल्लीकट्टू के प्रारंभ में सबसे पहले यही पवित्र कोविल कोलाई छोड़ा जाता है, जिसे कोई नहीं रोकता और लोग उसे हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं. उसके पश्चात अन्य साँड छोड़े जाते हैं, जिनमें से अगला कोविल कालाई चुनने की परंपरा है. अत: यह परंपरा में एक उन्नत प्रजाति का एक पवित्र साँड चुनने के लिये हैं, जिसमें अत्याचार का कोई स्थान ही नहीं है…..


Discover more from tennews.in: National News Portal

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Comments are closed.